बड़ी रुला गई बहना आज तेरी विदाई _विपिन दिलवरिया
बड़ी रुला गई बहना आज तेरी विदाई खुशियों की इस घड़ी में जाने क्यों आज मेरी आँख भर आई बड़ी रुला गई बहना आज तेरी विदाई जाने क्यों जहन में आज बीते दिनो की बात लौटकर आई मिन्नतो बाद वो रात आई श्रावण माह वो बरसात आई चहल पहल थी घर पर मेरे घर में जमा थी खूब लुगाई वो पल मेरे समझ ना आया सब चहरों पर हंसी आई जब रोने की एक आवाज आई एक अलग सा शोर हुआ और सब नें दी बधाई देखो घर में तुम्हारे बिटिया आई बिटिया आई खिल उठी थी वो आँगनाई जब नन्हें पैर तेरे खुशियों की सौगात लाई कदम पड़े थे घर में तेरे जब घर में थे हम भाई भाई खुशियों की इस घड़ी में जाने क्यों आज मेरी आँख भर आई बड़ी रुला गई बहना आज तेरी विदाई याद है तुझे वो कहानियाँ याद है तुझे वो शैतानियाँ जब खेल-खेल में हम करते थे बेईमानियाँ याद है वो बचपन की लड़ाई याद है वो बचपन की पिटाई याद है वो जब लैम्प के चारो ओर बैठकर हम करते थे पढाई याद है वो पिताजी का पढाना किताब लेकर जबरदस्ती बैठना याद है वो पढते पढते सो जाना और पिताजी की एक आवाज पर नींद का उड़ जाना हँसते खेलते लड़ते झगड़ते जाने कब दिन गुज़र गये पिता की डांट से माँ के लाड़ से जाने कब दिन संवर ग