" हे ईश्वर " क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? By Vipin dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )
" हे ईश्वर " क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? हे ईश्वर , छमा करना मेरी गलती को एक प्रश्न है मेरे मन में जो अंदर ही अंदर कचोटता है ? हे ईश्वर , तुम इस श्रृष्टि के रचनाकार हो और मैं भी एक छोटा सा कलाकार हूं , तेरे बनाए मिट्टी के पुतले इंसान है और मेरे बनाए मिट्टी के पुतले बेजान है ।। हे ईश्वर , बहुत कष्ट होता है ये देखकर , रूह समाई पुतला रूह समाई पुतले को धिक्कार कर घर से बाहर फेंकता है और बेजान मिट्टी की मूरत को घर में लाकर पूजता है ।। हे ईश्वर , क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? मैं तो छोटा सा कलाकार बिज़नेस मैन हूं और तु तो इस श्रृष्टि का रचनाकार सर्वशक्तिमान है ।। हे ईश्वर , फिर क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? तेरे बनाए मिट्टी के पुतले कहलाते इंसान है और मेरे बनाए मिट्टी के पुतले कहलाते भगवान है ।। हे ईश्वर क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? __विपिन दिलवरिया