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Showing posts from September, 2019

" हे ईश्वर " क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? By Vipin dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

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" हे ईश्वर " क्या फर्क है तेरी मिट्टी और  मेरी  मिट्टी  में ? हे ईश्वर , छमा करना मेरी गलती को  एक प्रश्न है मेरे मन में जो  अंदर ही अंदर कचोटता है ? हे ईश्वर , तुम इस श्रृष्टि के  रचनाकार हो और  मैं भी एक छोटा सा कलाकार हूं , तेरे बनाए मिट्टी के पुतले  इंसान है  और मेरे बनाए मिट्टी के पुतले  बेजान है ।। हे ईश्वर , बहुत कष्ट होता है  ये देखकर , रूह  समाई  पुतला रूह समाई पुतले को धिक्कार कर घर से बाहर फेंकता है  और बेजान मिट्टी की मूरत को घर में लाकर पूजता है ।। हे ईश्वर ,  क्या फर्क है तेरी मिट्टी और  मेरी  मिट्टी  में ? मैं तो छोटा सा कलाकार बिज़नेस मैन हूं  और तु तो इस श्रृष्टि का रचनाकार सर्वशक्तिमान है ।। हे ईश्वर , फिर क्या फर्क है तेरी  मिट्टी और  मेरी  मिट्टी  में ? तेरे बनाए मिट्टी के पुतले कहलाते इंसान है  और मेरे बनाए मिट्टी के पुतले कहलाते भगवान है ।। हे ईश्वर क्या फर्क है तेरी मिट्टी और  मेरी  मिट्टी  में ? __विपिन दिलवरिया

" खूबसूरती निहारती आइने में " ( एसिड अटैक ) by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

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  " खूबसूरती निहारती आइने में " (  एसिड अटैक  ) खुशहाल  थी   मेरी  ज़िन्दगी  कुछ भी गम नहीं था जीने में हंसती   इठलाती  फिरती  थी कोई  खौफ  नहीं था  सीने में पिता की लाडली, मां की परी खूबसूरती  निहारती आइने में उम्र  बढ़   रही ,  जवानी  का  दौर कुछ दरिंदे जिनकी नज़रें मेरी ओर मैं नादान हर बात से अनजान मुझे  कुछ  खैरो - खबर  नहीं घबरा गई  मैं  उनको  देखकर घेर लिया मुझे  अकेला पाकर क्या - क्या  कहा  मैं  सुन  नहीं पाई मैं रोई चिल्लाई विनती की रो रोकर एक  दरिंदा  गुस्साया  मुझ पर फेंक  दिया  तेजाब  मेरे  ऊपर खुश  हो  रहे  दरिंदे  मुझे  देखकर मैं रह गई बेबस और लाचार होकर क्या कोई  गुनाह कर दिया था मैंने    उनको    जवाब   देकर कोई  तो  बताओ  मेरा कुसूर फिर    क्यों    दें     गए    वो  मुझे  ज़िन्दगी  भर  का नासूर कोन है मेरा दुश्मन कोई तो बताओ मेरी  जवानी , मेरा हुस्न या मेरा नूर किसे  दोष  दूँ  अपनी  बर्बादी  का सब कुछ खत्म हो गया पल भर में हंसती  खेलती  ज़िन्दगी  थी  मेरी गम ही गम भर दिए

" रूह भी तेरी मुझसे रूठ गई " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

" रूह भी तेरी मुझसे रूठ गई " रूह भी तेरी मुझसे रूठ गई  ना जाने ऐसी खता कोन सी हो गई , एक बार मेरा कुसूर तो बता जो तू मुझसे ऐसे रूठ गई , बड़ी सिद्दत से चाहा था मैंने तुझे ना जाने कमी ऐसी कोन सी हो गई जो तु  मुझे  ऐसे  छोड़  गई , क्या हुआ तेरे उन कसमें वादों का  जो तूने मुझसे किए थे जब , साथ जीने मरने की कसमें खाई वो तेरा प्यार था या तेरी बेवफाई , तेरी बेवफाई को सोचकर दिल में एक ख्याल आया हरजाई , एक नज़्म जरूर लिखूंगा बे हिसाब तेरा कुसूर लिखूंगा , जिसमे किस्सा होगा तेरी बेवफाई , खिलौना समझा मेरे दिल को  इस दिल के टुकड़े हजार कर गई , कितनी झूंठी होती है  ये मोहब्बत की कसमें वादें , वफा का नाम लेकर  बेवफाई का खंजर घोप गई , जाते - जाते एक बार  पलटकर तो देखती , तेरे जाने के साथ ही जान मेरी जिस्म से जुदा हो गई । By _ Vipin Dilwarya

" मेरे जीवन की डोर है तु , तुझ बिन अधूरा चमन हूं मैं " हिंदी कविता by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

" मेरे जीवन  की  डोर है तु "              " तुझ बिन अधूरा चमन हूं मैं " कली  है  तु , डाली  है  तु बगिया में खिलता कमल है तु , फूलों  सी  सजी  हो  जैसे तेरी  बगिया का  माली हूं  मैं , सूरजमुखी का  फूल  है  तु उगते  सूरज  की तपन हूं  मैं , मेरे जीवन  की  डोर  है  तु तुझ बिन अधूरा  चमन हूं  मैं  ।। नदियां है  तु , दरिया है  तु किनारा है तु  और समंदर हूं मैं , गरजते  कारे  बदरा हो जैसे सावन की पहली बरसात है तु , काश्मीर की गिरती बर्फ है तु ग्लेशियर की बढ़ती गलन हूं मैं , मेरे जीवन  की  डोर  है  तु तुझ बिन अधूरा  चमन हूं  मैं  ।। सुबह  है   तु , शाम  है  तु मदिरा है  तु  छलकता जाम हूं मैं , चांदनी रात की  चमक हो  जैसे तरों की महफ़िल का सितारा हूं मैं , कभी राधा तो कभी मीरा है तु दीवानी तु मेरी , तेरा सजन हूं मैं , मेरे जीवन  की  डोर  है  तु तुझ बिन अधूरा  चमन हूं  मैं  ।। By _ Vipin Dilwarya

" अकेला " by Vipin Dilwarya ( published by newspaper )

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"  अकेला  " निराश ना हो , कि  तु  अकेला है.... इंसान अकेला पैदा होता है और अकेला  मर  जाता है , मतलब का साथी है इंसान बुरे वक्त में साथ छोड़ जाता है निराश ना हो , कि  तु  अकेला है.... भीड़ बहुत दिखती है दुनिया में ये दुनिया लोगो का मेला है , इस दुनिया के मेले में  हर इंसान अकेला है । निराश ना हो , कि  तु  अकेला है.... शुक्रिया अदा कर उन लोगो का जो साथ छोड़ गए जरूरत पड़ने पर , उन लोगो ने तो सिखा दिया  मुझे मजबूत बना दिया अकेला होकर हालात से लडने पर निराश ना हो , कि  तु  अकेला है.... मोहताज नहीं होता संघर्षी किसी का साथ लेने का विश्वाश रख और संघर्ष कर संघर्ष में ही तो इंसान अकेला होता है निराश  ना  हो , कि तु अकेला है.... By _ Vipin Dilwarya

" अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं , मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

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"  अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं      मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं " अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं । उजागर नहीं करता  मैं  अपने  दर्द  को इस  दर्द  से तो मोहब्बत  सी  हो  गई  है , बड़े बेदर्द  है  इस  ज़माने के लोग सभी अपने दर्द  की  दवा मैं खुद बना लेता हूं , अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं । किसे बयां करूं मैं अपने गम को यहां कोई तकल्लुफ नहीं रखता इस जहां में , मुफलिसी  में  याद  किया  जिसे  भी वो पहले से ही अपना गम लिए बैठा है , ज़माने  के  रंजो  गम  को  देखकर  मेरे  गम  तो  फ़ीके  से  पड़  गए , लगता  है  बस  ये  गम  ही  अपने है अब गमो से ही मोहब्बत और बढ़ा लेता हूं , अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं । " दर्द-ए-गम " से भरी ए " गम-ए-ज़िन्दगी " शिकायत किससे करूं बस इतना बता , सभी अपना कहने वाले तो गैर हो गए कोई अपना ना रहा इस " गम-ए-दुनिया में &q

" हिंदी दिवस " by Vipin Dilwarya

  " हिंदी दिवस " हिन्दू मात्र एक धर्म नहीं हिंदी है हम हिन्दू हैं हम इसलिए मेरा देश हिंदुस्तान है , सब धर्मों को जोड़कर बना है मेरा हिंदुस्तान  इसलिए मेरा देश महान है , एकता का प्रतीक हिंदी है अनेक भाषाओं में हिंदी को बहुत सम्मान हैं , इसलिए देशवासियों को मातृभाषा हिंदी पर अभिमान है , हमारी मातृभाषा हिंदी  और एकता का प्रतीक हिंदी है , इसलिए मेरा देश हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान है , अनेकता में एकता को दर्शाता है सभी धर्मों में प्यार बढ़ाता है , ऐसा मेरा हिंदुस्तान है इसलिए तो मेरा देश महान है । 🙏हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं 🙏            https://vipindilwarya.blogspot.com By _ Vipin Dilwarya

"" किन्नर का दर्द "" by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

""  किन्नर का दर्द "" मैं आदमी नहीं ,औरत भी नहीं , किन्नर  हूं  तो  क्या हुआ , क्या  मैं  कोई  इंसान  नहीं   ? पुरुष-स्त्री  से  मेरी तुलना नहीं किन्नर  है  मगर इंसान  है  हम , इस  समाज  में इंसान से बढ़कर तो कुछ नहीं । तुम्हारी खुशियों में सरींख होते दिल से देते दुआ और देते है बधाई फिर क्यों तुच्छ नजर से देखते हो मैं कोई छुआ छूत की बीमारी नहीं ? तुमसे  इतनी  सी  उम्मीद  है समाज  में  मिल  जाए  बस थोड़ा सी इज्ज़त और सम्मान ही । किन्नर बोल कर ठुकरा  दिया मुझे क्या समाज में मेरा कोई वजूद नहीं , आखिर  मैं  भी  तो  इंसान हूं क्या हम इज्ज़त के हकदार नहीं  ? हमसे क्यों मुंह फेरते हो जिस  मिट्टी  से  तू  बना  है क्या उस मिट्टी से मैं बना नहीं ? भगवान  ने  तुझे  बनाया और भगवान ने मुझे बनाया , इंसान है  तु  इंसान  हूं  मैं फिर समाज में मेरा क्यूं सम्मान नहीं ? https://vipindilwarya.blogspot.com __ विपिन दिलवारिया

"" ऐसा परिवर्तन किस काम का "" by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

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  "" ऐसा परिवर्तन किस काम का "" परिवर्तन संसार का नियम है हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। अधर्म का सर उठने लगा धर्म का नाम हो गया वीरान सा , जाति - धर्म पर झगड रहा ऊंच - नीच को मिटा ना सका , हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। बेटा बाप का ना रहा भाई-भाई का रिश्ता नाम का , पाल - पोशकर बड़ा किया जिस औलाद को मां - बाप का सहारा बन ना सका , हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। अत्याचार इतना बढ़ गया बहन बेटी का लिहाज ना रहा , मासूम बच्चियों को भी नोंच रहा इंसान में घुस गया हैवान सा , हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। माना कि ये कलियुग है क्या इस कलियुग में कोई कर्म नहीं इंसान का , ये दुनियां वो दुनियां ना रही जिसमे जन्म हुआ श्री राम और बुद्घ भगवान का , परिवर्तन संसार का नियम है हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। https://vipindilwarya.blogspot.com By _ Vipin Dilwarya