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Showing posts from July, 2020

ना छेड़ किस्सा-ए-मोहब्बत ( गज़ल ) ( Shayari ) __ विपिन दिलवरिया

ना छेड़ किस्सा-ए-मोहब्बत सितारों   की   नुमाईश   लगी   है, ये हसीं  रात  अब  खिलने लगी है तेरे   आने   की   खबर  हुई  जब, तेरी      खुशबू       से  मेरी   बगिया    महकनें   लगी  है वो  आये  जब   मेरी   गली , मेरी सूनी   गलियाँ   चहकनें   लगी  है जो  थमी  हुई  थी ,  तेरे  आने  से  वो  धड़कन  अब  धडकनें लगी है ना    छेड़   किस्सा - ए - मोहब्बत, मेरी  ख्वाहिशें  अब  बढ़ने लगी है ना देख  मोहब्बत  भरी  नज़रों से ये  चिंगारी  अब  भड़कनें  लगी है अधुरी  मोहब्बत थी  "दिलवरिया" वो मोहब्बत अब पूरी होने लगी है __विपिन दिलवरिया 

Part - 6 - Thoughtfull Shayari ___विपिन दिलवरिया

    Part - 6 - Thoughtfull Shayari (1) ख्वाहिशें उतनी रखो ज़िन्दगी में जितने में खुश रह सको वरना  ज्यादा ख्वाहिशें खुशियों को  बर्बाद  कर  देती है (2) डूबना चाहता हुँ मैं समन्दर की गहराई में... ये समन्दर है कि मुझें साहिल पर ले जानें में लगा है... (3) ज़िन्दगी का सफ़र यूं कट जाता है जब हमसफर हमसा मिल जाता है (4) सुखे हुए पत्ते से पुछो गिरने का डर क्या होता है वरना  शाक  तो  पतझड़  का  इंतज़ार करती है (5) झूँठो की दूनियाँ में बेइमानों की बस्ती है साहब यहाँ लोग दूसरों के घरों में झाँकतें है... और बेइमानी खून में है जिनके वो हमसे ईमानदारी के सबूत माँगते है... (6) वक्त के थपेडों नें कभी इस पार तो कभी उस पर किये... मुश्किल वक्त में कुछ नें वार किये तो कुछ नें उपकार किये... आज मैनें अपनी किताब  से   कुछ  पन्ने  बाहर  किये... शुक्र है तेरा कोरोना, कुछ लोगों के तूने मुखोटे उतार दिये... (7) हौंसलों  से  आस्माँ  चूम  लेता है हो अरमाँ तो अंधेरों  में  उजाला  ढूँढ  लेता  है दरिया मोहतज़ नहीं रहगुज़र का, दरिया  ख़ुद समन्दर  ढूंढ लेता है (8) ना

उन्हें खबर नहीं ( Shayari ) __ विपिन दिलवरिया

                          उन्हें खबर नहीं खूब मिले खरीददार  हम कहां बिकने वाले है वो छिपनें वाले सोचते है हम कहां दिखने वाले है उनकी हरकतें उनके मिज़ाज़ खूब देखें हमनें उन्हें खबर नहीं हम  उनपे गज़ल लिखनें वाले है __विपिन दिलवरिया 

सजी हुई चिता से उतारा शव (आगरा प्रकरण जातिवाद का घिनौना रूप) ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

   सजी हुई चिता से उतारा शव    (आगरा प्रकरण जातिवाद का घिनौना रूप) ये  कौन  लोग   इतनें  ज्ञानवान  है एक जात तुच्छ एक जात महान है ऊँच - नीच   जात - पात   में  बटाँ  ये कौन सा धर्म कौन सा इन्सान है मिट्टी बांट दी  , बांट दी इंसानियत और  कहते  है  मेरा  देश महान है सजी  हुई  चिता   से  उतारा  शव, ये  कौन  लोग  कौन  से इन्सान है कैसे कह दूँ मैं उस धर्म को अपना जहाँ जातिवाद  में बटें शमशान है नहीं मानता  वो  धर्म "दिलवरिया" जहाँ इंसानियत नहीं बस हैवान है  __विपिन दिलवरिया 

ज़िन्दगी क्या है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

ज़िन्दगी क्या है ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? ना जाने कब कौन कैसे सही गलत और गलत सही बन जाता है ज़िन्दगी में सब कुछ भूल कर अपनें बेहतर कल के लिये अपनें आज को बर्बाद कर जाता है ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? ऐसा दौर भी आता है यहाँ  अपना पराया, पराया अपना बन जाता है कभी ख़ुद को तो कभी  दूसरों को समझाना पड़ता है कुछ रिश्तें कुछ जिम्मेदारियों के लिये  इन्सान को खुदगर्ज़ बन जाना पड़ता है कई पहलु है इस ज़िन्दगी के कुछ रिश्तें हमें निभातें है  कुछ रिश्तों को हमें निभाना पड़ता है ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? कुछ रिश्तों के लिये जीना पड़ता है कुछ रिश्तों के लिये ख़ुद मर जाना पड़ता है ये ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली है ज़िन्दगी खत्म हो जाती है जब तक इन्सान ज़िन्दगी को समझ पाता है ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? __विपिन दिलवरिया 

ये इश्क़ कोई गुनाह नहीं ( gazhal ) ( Shayari ) ___विपिन दिलवरिया

     ये इश्क़ कोई गुनाह नहीं त्याग भी है मोहब्बत बस पाना नहीं, आग का दरिया है  इश्क़ आसाँ नहीं फूलों की रहों  पे  भी  कांटे  बिछे है, दूरियाँ भले हो फासलें हो जाना नहीं बड़े नसीबों से मिलती  है  मोहब्बत  यूं  ही  कोई  बिखरा  खज़ाना  नहीं शितम  ढाती   है  मजबूरियाँ  मगर, सब कुछ भूले  पर  याद आना नहीं यूं  बदनाम  ना  कर  मोहब्बत  को,  मोहब्बत ज़िन्दगी है मर  जाना नहीं माना दुश्मन ज़माना इश्क़ का मगर, इबादत है  ये इश्क़ कोई गुनाह नहीं मोहब्बत ख़ुदा बख़्श है"दिलवरिया" किसी का लिबाश  या  गहना  नहीं ख़ुदा बख़्श -  ख़ुदा का उपहार __विपिन दिलवरिया 

हर गज़ल एक सवाल बनेगी ( Ghazal ) __ विपिन दिलवरिया

हर गज़ल एक सवाल बनेगी   हुआ  सबेरा  तो  साँझ  भी ढ़लेगी है खास अगर , वो आम भी बनेगी सूनापन  सा  है  मेरी  ज़िन्दगी  में कभी तो  ज़िन्दगी गुलज़ार  बनेगी मेरी  तन्हाई   आज   मज़बूरी  है,   यही   ज़िन्दगी  की   ढाल   बनेगी शोला  बन  भड़केगी  एक चिंगारी, ये हल्की हवा  अब  तुफ़ान  बनेगी कर   संकल्प    उठाई   जो   मैनें, मेरी  कलम  मेरी  आवाज़  बनेगी क्रूतियाँ  चुनकर  लिखुंगा  समाज  की, हर गज़ल  एक सवाल बनेगी अनजानें  में  चोट  खायी है  मगर, यही चोट सवालिया निशान बनेगी हर  हरफ़  में  एक  कहानी  होगी यही   गज़लें   मेरी   आन   बनेगी चल पड़ा हुँ  धुंधली  सी  रहों  पर  यही  रहगुज़र  मेरा  मुकाम बनेगी  एक   दिन   आएगा  "दिलवरिया" तेरे लफ्ज़ो से  तेरी पहचान बनेगी ___विपिन दिलवरिया 

उसकी आँखें बेहद खूबसूरत है ( gazal ) ( Shayari ) ___विपिन दिलवरिया

        उसकी आँखें बेहद खूबसूरत है  वो     मल्लिका - ए - हुस्न     है  ,  मगर हुस्न-ओ-शबाब  का  उसनें  गुमान किया इश्क़ के मैखानें  में पैमाईश की गुंजाईश  नहीं , मगर  नापकर   उसनें  ज़ाम  दिया यूं तो ऐतबार नहीं  था  उसकी  बात  का, पर उसनें  जो  जो  कहा मैनें  मान लिया वफ़ाओं  से उसका  कोई ताल्लुक़ ना था उसनें  मेरी   वफ़ा  का   इम्तिहान  लिया उसकी  आँखें  बेहद  खूबसूरत  है  मगर, मैनें उसकी नज़रों  को भी पहचान लिया गुनाह क़ुबूल  किये  हमनें सभी, जो नहीं किया  उसनें  उसका  भी  इल्ज़ाम  दिया सिला  क्या खूब  मिला तुझे "दिलवरिया" करके   ज़ुर्म   उसनें    तेरा   नाम   लिया ___विपिन दिलवरिया 

मैनें ख़ुद को वतन के नाम किया ( Hindi kavita ) ___विपिन दिलवरिया

   मैनें ख़ुद को वतन के नाम किया   मेरा   देश    मेरी   आन   बान  शान  है, मैनें   ख़ुद   को   वतन   के  नाम  किया जिस    राह    पे    चला     है     दुश्मन मैनें  उस  राह  पे  अपना  मकान  लिया आजु - बाजु   सोच   समझकर  निकलें मैनें  घोड़े   को   अपने   बेलगाम  किया समझें तो ठीक , ना  समझे  तो  सुनलों अब  शान्ती नहीं क्रांति होगी ठान लिया बैठे   है  सर   पे    कफ़न   बांध    कर , जरुरत  पड़ी  हमनें   सीना  तान  लिया गर्व  है  उस माँ पर ,  जिस माँ ने अपना  लाल  इस  मिट्टी के  लिये  क़ुर्बान किया बड़ी उदार है मेरे वतन की मिट्टी, दिल में  आया तो दुश्मन को भी जीवनदान किया नमन  है  तेरी  कलम  को  "दिलवरिया" तूने सैनिको को ख़ुदा जैसा मुकाम दिया ___विपिन दिलवरिया 

कुछ तो हुआ है ( Shayari ) __Vipin Dilwarya

कुछ तो हुआ है लफ्ज़ो को मैनें स्याही में भीगो दिया जज्बतों को पन्नो की गहराई में डुबो दिया ये मौसम बरसात का तो नहीं ये मौसम भी आज बे मौसम रो दिया कुछ तो हुआ है बेवजह नहीं ये हलचल इन बादलों में लगता है आज फिर किसी सच्चे  आशिक़ ने अपनी मोहब्बत को खो दिया __विपिन दिलवरिया 

शुक्र है तेरा कोरोना ( Shayari ) __Vipin Dilwarya

शुक्र है तेरा कोरोना वक्त के थपेडों नें कभी इस पार तो कभी उस पर किये... मुश्किल वक्त में कुछ  नें वार किये तो कुछ नें उपकार किये... आज मैनें अपनी  किताब  से   कुछ  पन्ने  बाहर  किये... शुक्र है तेरा कोरोना, कुछ लोगों के तूने मुखोटे उतार दिये... ___विपिन दिलवरिया 

तिरंगे में तीन रंग है ( हिन्दी कविता ) ____विपिन दिलवरिया

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                                   तिरंगे में तीन रंग है  तिरंगे  में  तीन  रंग  है सब  रंग   संग  संग है फिर  काहे  की जंग है जात  पात   ,   ऊंच   नीच मज़हबों  में   खींचा   तानी  एक दुसरे पर कसते व्यंग है मैं     हिन्दु     तु     मुसलमां  ये   सिख   वो    इसाई   इन सब में बस इंसानियत तंग है कोई      गीता      तो  कोई  क़ुरान  पढ़ता है कोई     गुरुग्रंथ     तो कोई बाईबल पढ़ता है कोई     मन्दिर     तो कोई मस्जिद जाता है कोई    गुरुद्वारा   तो कोई   चर्च  जाता  है कोई धूपबत्ती तो कोई  अगरबत्ती  जलाता  है कोई   सर   को   झुकाता है तो कोई मोमबत्ती जलाता है अलग रूप , अलग रंग है इबादत   सबकी  एक  है, बस  सबके  अलग ढंग है तिरंगे  में  तीन  रंग  है सब रंग  संग   संग  है फिर  काहे  की जंग है भेदभाव   को   दूर  करो अपने घमंड को चूर करो हिंसा       को      त्यागो अहिंसा  के  पुजारी बनो जिसके  अंदर   एक  नई  उमंग  है जिसके अन्दर भाईचारे की तरंग है  वही  इन्सान  यहाँ  मस्त  मलंग  है हिन्दी   हिन्दु   

बेवफ़ाई क्या छोड़ी हमसे वफ़ा रूठ गई ( हिन्दी कविता ) ____विपिन दिलवरिया

बेवफ़ाई क्या छोड़ी हमसे वफ़ा रूठ गई  तुफानों   में   कभी    पत्ते   भी  ना  झडें  हल्की   सी    हवा   में    शाक   टूट  गई समुंदर डुबो  ना  सका  जिस  कश्ती को वो  कश्ती   साहिल   पे  आकर  डूब गई दूनियाँ हमारे  खौफ़  से  झुक  जाती थी हम शरीफ़  हुए  तो  दूनियाँ  ही  छूट गई इश्क़   समुंदर    दिल    दरिया   है  मेरा जिसने  जब  चाहा  वो  आकर  कूद गई दरिया बहता था  कभी  हमारी  आँख से  देख हालात-ए-इश्क़ मेरी आँखें सूख गई इश्क़ की गलियों के  बदनाम आशिक़ है बेवफ़ाई क्या छोड़ी  हमसे वफ़ा रूठ गई अब  किसे बयां  करूं मैं अपनी कहानी जिसे सुनाई थी  शान  से वो ही भूल गई गिला   करे    तो    किससे    करे    हम मेरी   तकदीर   ख़ुद    मुझसे   रूठ  गई नाकामयाबी बड़े तज़ुर्बे दे गई "दिलवरिया"  जितने अपने है उन सबकी पोल खुल गई ___विपिन दिलवरिया 

ये ज़िन्दगी तेरी सज़ा है ( Shayari ) ___विपिन दिलवरिया

                    ये ज़िन्दगी तेरी सज़ा है मेरी  मोहब्बत   तेरी   दिल्लगी ये तो  मुझ   पर   तेरी  ज़फा है..!! मोहब्बत   की    इस   कहानी में तु  बेवफ़ा  ,  मेरी तो वफ़ा है..!! मिटा  दूँ   तुझे   तेरी  बेवफ़ाई के लिये, तो इसमें मेरी खता है..!! मौत तो  आज़ादी  होगी  तेरी, जा   बख्श  दी  तेरी  ज़िन्दगी ये   ज़िन्दगी    तेरी    सज़ा  है..!! ___विपिन दिलवरिया

मेरे गले लगकर रो दिये ( Shayari ) ___विपिन दिलवरिया

  मेरे गले लगकर रो दिये वो बड़ी  तल्ख-नवाई कर गये मेरी मोहब्बत  को ठुकराकर चले गये गये थे इश्क़ का जाम पीने  इश्क़ की बोतल में उतरकर रह गये दर-बदर ढूँढतें रहे  मोहब्बत को इश्क़ के बाज़ार में मोहब्बत तो ना मिली बस जिस्मों में उलझकर रह गये तन्हाई में जब  ना मिला कोई कांधा  वो आये और मेरे गले लगकर रो दिये __विपिन दिलवरिया 

वक्त ( हिन्दी कविता ) ___विपिन दिलवरिया

                      " वक्त " ये वक्त हर वक्त अच्छा नहीं होता एक इन्सान सबके लिये अच्छा नहीं होता वक्त बदल देता है हालतों को हालात बदल देते है इन्सान को वरना इन्सान इन्सान का बुरा नहीं होता ये वक्त हर वक्त अच्छा नहीं होता ये वक्त हर वक्त अच्छा नहीं होता पेड़ की छाया हो या समुंद्र की गहराई कौन जाने कब कहाँ कौन सी आपदा आई भयावह दिन हो या काली रात छाई ये वक्त कभी किसी के लिये नहीं रुकता ये वक्त हर वक्त अच्छा नहीं होता ये वक्त हर वक्त अच्छा नहीं होता कभी शर्दी कभी गर्मी होती है कभी सुखा कभी बारिश होती है कभी कभी ये मौसम बेमौसम हो जाता है हर मौसम सबके लिये अच्छा नहीं होता ये वक्त हर वक्त अच्छा नहीं होता ___विपिन दिलवरिया 

बिखरें हुए हालातों को भी समेट लेंगे ( हिन्दी कविता ) ___विपिन दिलवरिया

  बिखरें हुए हालातों को भी समेट लेंगे  तिनका  तिनका  टूटकर   जो  बिखरें  है, बिखरें हुए  हालातों   को  भी  समेट लेंगे!! मुफ़लिसी    में   जो    साथ    छोड़   गये, उनको  हम   दिल   से    निकाल  फेंकेगें!! अपना  पराया  कोई  हो   बख्शीश  नहीं, जो  है  गुनाहगार  हमारे  उन्हें  देख  लेंगे!! नकाब  लगे  है  जिन  चेहरों  पर, हम उन छुपे  हुए   चेहरों   को  भी   पहचान  लेंगे!! जानकर  अनजान  है  हम  बस  इतना है, वो समझतें है बहती नय्या में हाथ धो लेंगे!! गलतफ़हमी के शिकार है कुछ लोग यहाँ, हम वो है जो  किनारों  पर  भी  डुबा  देंगे!! सुना है  इश्क़  के  बाज़ार  में  बैठते  है वो, प्यार  मोहब्बत   वफ़ा   सब   ख़रीद  लेंगे!! इश्क़ की दूनियाँ के शातिर खिलाडी है वो, हम वो है जो  उन्हें  भी  नीलाम  कर  देंगे!! नादान समझे है दूनियाँ तुझे "दिलवरिया", मेरी कलम है जिसे चाहे सरेआम कर देंगे!! ___विपिन दिलवरिया 

मौसम सावन बरसात का ( सावन गीत) ___विपिन दिलवरिया

  मौसम सावन बरसात का  ( सावन गीत) ये सुर पंछियों के  चहचहानें का खेत खलियानों  के  लहरानें का ये मौसम  बिजली चमकनें का ये मौसम है  बादल गरजनें का ये मौसम  सावन   बरसात का ये मौसम है  भीगनें भिगानें का चारों   और    हरियाली   छाई बागों में   कलियाँ   खिल आई मधुघट    फिरकी    तितलियाँ फूलों   के    रस    में     नहाई मिट्टी  की  वो   सौंधी   खुशबूँ धीमें    धीमें     महकानें    का ये  मौसम  सुनने   सुनाने  का और  भँवरों  के  गुनगुनानें का ये  मौसम  सावन  बरसात का ये मौसम है  भीगनें भिगानें का बादलों      में    नए    रंग   है आज    उनके    नए   ढंग   है चल   रही   ये    हवा   पुरवाई आज       हमारें       संग     है आषाढ़    महीना    बीत   गया आया   सावन   गीत  गाने  का ये मौसम दिलों को मिलाने का और मोहब्बत खूब बरसाने का ये मौसम  सावन  बरसात  का ये मौसम है  भीगनें भिगानें का ___विपिन दिलवरिया 

इल्ज़ाम हमी पे आता है ( Shayari ) __विपिन दिलवरिया

इल्ज़ाम हमी पे आता है सितारें गर्दिश में कुछ इस तरह है,  पता है.... साख से पत्ता गिरे या बरसते बादल रुके इल्ज़ाम हमी पे आता है, पता है.... मेरे इश्क़ की कहानी भी कुछ इस तरह है पता है.... वफाएँ भी हमने की और बदनाम भी हमी हुए है,  पता है....

औकात छोटी मगर इंसानियत खड़ी है ( हिन्दी कविता ) by Vipin Dilwarya

      औकात छोटी मगर इंसानियत खड़ी है मुश्किलें   हज़ार     सामने    खड़ी  है, कदम कदम  पर  इम्तिहान की घड़ी है!! कच्ची  दीवारें   और    छप्पर  पड़ी  है, औकात छोटी मगर इंसानियत खड़ी है!! छोटी   सी    कुटिया ,    भीड़  घनी है, पर कुटिया   मेरी   गुलजार   पड़ी   है!! बड़े बड़े  महल  दुमहले ,  बंगले  कोठी, दीवारें    जिसकी    सोने   से  जड़ी  है!! रुपया   पैसा    और    धन   दौलत  है, औकात  बड़ी  मगर   सुनसान  पड़ी है!! कौन  किसे  देखकर  खुश  है  जहाँ में लोगो  में  नफरतों  की  दीवार  खड़ी है!! मतलबी ज़माने के मतलबी लोग यहाँ, यहाँ  सबको    अपनी  अपनी  पडीं है!! कितनी समस्या यहाँ  देख "दिलवरिया", यहाँ   सबकी  समस्या  मुझसे  बड़ी  है!! __विपिन दिलवरिया

मोहब्बत कभी ख़त्म नहीं होती ( Shayari ) by Vipin Dilwarya

मोहब्बत कभी ख़त्म नहीं होती जो बेशर्म होते है उन्हे कभी शर्म नहीं होती... ज़हर दिखने वाली  हर चीज़ कभी ज़हर नहीं होती... लाख बुराई करें मेरे  महबूब की मुझे हज़म नहीं होती... मोहब्बत मेरी सच्ची है सच्ची मोहब्बत कभी ख़त्म नहीं होती... __विपिन दिलवरिया 

Part - 4 - Love shayari by Vipin Dilwarya

          Love shayari (1) जो भी फ़साने  उसने  सुनायें है  मुझें, उसमें एक एक लफ्ज़,उसने मोतियों सा गढ़ा है छुपानें की कोशिश तो बहुत की मगर, मैनें लफ्ज़ों को नहीं, उसके जज्बतों को पढ़ा हैं (2) दिल को संभालकर रख ये भटकनें लगा है हर  नया  चेहरा  देखकर  धडकनें  लगा है (3) याद तेरी आज भी आती है, बस बताते नहीं है.! मोहब्बत आज भी करते है, बस जताते नहीं है..! (4) Ishq Ibadat Hai Ise Sambhalkar Rakho Ishq Sare Bazar Koi Numais Ki Chiz Nahi... (5) जितना पाया है ज़िन्दगी में, उससे ज्यादा गंवाया है.!! बिछड़ना पहली शर्त थी मोहब्बत की, उस मोहब्बत को भी हमने बड़ी शिद्दत से निभाया है.!! (6) बिछड़कर भी प्यार अमर हो जाता है ग़र नाता जिस्म से नहीं रूह से होता है.! किसी को पाना सिर्फ ख्वाहिश होती है वरना प्यार तो उसकी यादों से भी होता है.! (7) 'निशा' में नहीं मैं दिन में 'निशा' देखता हुँ आज कल  'निशा' का इंतज़ार करता हुँ बड़ी    हसीं    होती    है    वो    'निशा' जिस 'निशा' में मैं 'निशा' से बात करता हुँ (8) वो इश्

मोहब्बत क्या है मैं नहीं जानता ( Love Poetry ) by Vipin Dilwarya

        मोहब्बत क्या है मैं नहीं जानता मोहब्बत क्या है  मैं  नहीं  जानता... पर तुझे खुश देखकर ही मैं खुश हो जाता हुँ... मोहब्बत क्या है मैं  नहीं  जानता... पर तेरे चेहरें की शिकन  देखकर मैं परेशाँ हो जाता हुँ... मोहब्बत क्या है मैं  नहीं  जानता... तेरी मुस्कराहट से  मेरा दिल धड़कता है तेरी उदासियों से  मेरा दिल तडपता है तेरी एक नज़र के लिये अपने सारे काम भूल जाता हुँ... मोहब्बत क्या है मैं  नहीं  जानता... तेरी एक नज़र के लिये मैं सुबह से शाम हो जाता हुँ... मोहब्बत क्या है मैं  नहीं  जानता... सामने आती है  तो मैं अनजान हो जाता हुँ ना देखूँ तुझे  तो मैं परेशान हो जाता हुँ... मोहब्बत क्या है  मैं  नहीं  जानता... ना देखूँ तुझे तो ख़ुद में गुमनाम हो जाता हुँ... मोहब्बत क्या है मैं  नहीं  जानता... कितना सोचता हुँ क्या क्या सोचता हुँ ये मोहब्बत भी अजीब है फ़कत तेरे दीदार के लिये मैं खुद से बेईमान हो जाता हुँ... मोहब्बत क्या है  मैं  नहीं  जानता... बताना तो चाहता हुँ तुझे पर तेरे आगे बेज़ुबान हो जाता हुँ... मोहब्बत क्या है मैं  नहीं  जानता.

माँ पूरी किताब हैं ( हिन्दी कविता ) by Vipin Dilwarya

  माँ पूरी किताब हैं नीन्द    में      जो    दिखतें  वो   होते     अधुरें     सपनें खुली  आँखों   से  जो देखें,  पूरे  होते    वही   ख्वाब  है मौत    का     सच    पहले  ज़िन्दगी   का  झूँठ  बाद है स्वर्ग   यहीं       नर्क   यहीं  यहीं  कर्मो  का   हिसाब है दिन        का        उजाला जिससे   वो   आफ़ताब  है चमकती       है          रात  जिससे    वो    महताब   है संस्कार  वहीं  "दिलवरिया" जहाँ लाज  शर्म  हिजाब है पिता कलमकार,बच्चे शब्द   और   माँ  पूरी   किताब  हैं __विपिन दिलवरिया