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कामयाबी का परिणाम ( लघुकथा ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

                         ( लघुकथा )             कामयाबी का परिणाम एक छोटे से गाँव की बात है जहाँ चरनदास का परिवार रहता था जिसके दो बेटे राम और श्याम थे । राम और श्याम की माता कमला देवी उन्हें बचपन में ही छोडकर चल बसी थी चरनदास मजदूरी करके अपनें परिवार का पालन-पोशन करता था और अपनें बेटों को पढ़ा लिखाकर कामयाब बनानें के लिये चरनदास दिन-रात मेहनत करता, वह अपनें बच्चों को पढ़ा लिखाकर कामयाब बनाना चाहता था । चरनदास नहीं चाहता था कि उसकी भाँति उसके बेटे भी ऐसे ही हालातों में अपनी ज़िन्दगी बसर करें, चरनदास भूखा रहकर भी अपनें बेटों को स्कूल भेजता था । राम अपने पिता की बेबसी और लाचारी को देखकर बहुत दुखी होता, वह पढ़ लिखकर कामयाब बनकर अपनें पिता को सुख चैन भरी ज़िन्दगी देना चाहता था वहीं दूसरी और श्याम मन मौजी रहता और पढ़ने लिखनें में बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था ।      जैसे-जैसे बेटे बड़े हुए चरनदास ने दोनों की शादी कर दी, श्याम मजदूरी करनें लगा और कुछ समय पश्चात राम की शहर में नौकरी लग गयी । जैसे-जैसे दिन गुजरते गये चरनदास का परिवार परेशानियों से उबरनें लगा चरनदास बहुत खुश था कि उसका बेटा राम कामयाब

आग़ाज़ ( शायरी ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

आग़ाज़ जरुरी है आग़ाज़ होना चाहिये कल नहीं  आज  होना चाहिये डोल   जाये   उसका   शासन  ऐसा हमारा गाज होना चाहिये जो भी  करना  पड़े  करो  मगर मेरे सर पे वो ताज़ होना चाहिये डूब जाये सूरज अब मंजूर नहीं हर तरफ़ मेरा राज होना चाहिये __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '   मेरठ , उत्तर प्रदेश 

Part - 14 - Thoughtfull Shayari __Ghazi Acharya ' Ghazi '

    Thoughtfull Shayari (1) माना सलीका उनका गलत था,,,,,,,,,,! मगर लफ्ज़ो में उनके फिक्र छुपी थी,,!! (2) कह दो इन दरियाओं से कि अपनी औकात में रहे  वरना  समन्दर  बनने में  हमें भी वक्त नहीं लगता  (3) स्टेटस का दौर है साहब शुद्ध विचार और ज्ञान का भण्डार लोगो के अन्दर कम उनके स्टेटस पर ज्यादा मिलता है (4) एक हक़िक़त सामने आई जब उनसे राब्ता हुआ,,! ख़ुद से ख़ुद का नाता ना रहा जब से वो रास्ता हुआ,,!! (5) देखो आज वो शाम आई  मेरे हिस्से खुशियाँ तमाम आई एक माँ का दामन छूटा तो अपनी बाहें पसारे धरती माँ आई ज़मींदारी लेकर आई मेरी शहीदी, आज दो गज़ ज़मीं मेरे नाम आई खुशकिस्मत हुँ मैं वतन तेरे लिये, मेरे  ज़िस्म  की  मिट्टी काम आई  (6) गुजरते दिन मैं कंगाल हो गया मानो मेरे सर से एक-एक बाल कम हो गया मैं जश्न मनाऊं या शोक, आज मेरी ज़िन्दगी का एक और साल कम हो गया (7) ज़िन्दगी गुज़र गयी ज़द्दोज़हद में  चंद लमहात चाहिये सुकूँ के लिये (8) जहाँ  लोग  मरने  की  सोचते  है  वहाँ हम कुछ करने की सोचते है (9) संस्कारों की यहाँ पौध लगाई जिसनें  जगाई  किस्मत सोई माँ की समता  नहीं किसी से माँ जैसा  यहाँ  और ना कोई (10) टुकड़ा भा

मैं वो हिंदुस्तान हूँ मेरे भाई __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

मैं वो हिंदुस्तान हूँ मेरे भाई ना हिन्दु ना मुसलमान  ना सिख ना मैं *इसाई* इंसानियत जिसका धर्म  वो इन्सान हूँ  *मेरे भाई* हर रंग को सजोंकर रखता है  अपनी पेशानी पर तिरंगा जिसकी शान  मैं वो हिंदुस्तान हूँ *मेरे भाई* __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

वीर रस ( कविता ) वह तो झाँसी वाली रानी थी__कवि गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

        वीर रस ( कविता )  वह तो झाँसी वाली रानी थी चलो सुनाऊं एक कहानी  जिसमें एक रानी थी मुख से निकले तीखे बाण  वो शमशीर दिवानी थी थी वो ऐसी वीरांगना उसकी शौर्य भरी जवानी थी सर पर सजा था केसरी रंग पेशानी पर मिट्टी हिन्दुस्तानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... जल उठी थी जब क्रांति ना कोई संकोच,ना थी कोई भ्रांति बांध पीठ पर लाल को जब मूँह में लगाम थामी थी लहू से सीचेंगे इस मिट्टी को बात बस यही ठानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... खूब लड़ी रण-भूमि में वो माँ दुर्गा, माँ भवानी थी लहू के कतरे-कतरे से जिसनें लिखी अमर कहानी थी आखिरी साँस तक लड़ी वो पर हार नहीं मानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... दीवार किले की टूट गई  आस सभी की छूट गई  सीना तान खड़ी रही वो खूब लड़ी मर्दानी थी लड़ते-लड़ते प्राण गवांये मिट्टी के लिये दी कुर्बानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी.... वह तो झाँसी वाली रानी थी.... __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी ' (  मेरठ , उत्तर प्रदेश )

साहित्य विकास मंच को समर्पित कविता __कवि गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

          *साहित्य विकास मंच* मंच को कवियों का प्रणाम होना चाहिये मंच पर काव्य का गुणगान होना चाहिये शतकवीर  हुआ  है  आज *साहित्य विकास मंच*   आज *मंच के कवियों* का सम्मान होना चाहिये सब  का   अपना-अपना  किरदार  होता है काव्य सृजन के लिये कवि हक़दार होता है कवियों के काव्य पाठ से  बढ़ता  है  काव्य सृजन  काव्य मंच का ऊँचा मस्तक कलमकार से होता है ना रुके ये *कारवां* यूं ही चलता चला जाये साहित्य का ये सिलसिला बढ़ता चला जाये सब का स्वागत करता है *काव्य प्रगति कुन्ज* नव युवा कवियों  को राह दिखाता चला जाये नमन करता है 'गाज़ी' *साहित्य विकास मंच* को ये मंच  यूं ही  दरिया की  तरह  बहता चला जाये *__गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '*       *मेरठ , उत्तर प्रदेश*

सुन री हवा तू धीरे चल ( गीत ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

   सुन री हवा तू धीरे चल ( गीत ) सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                    सज संवरकर निकली है वो                    यहाँ सारा चमन महक रहा है                     सौन्दर्य ऐसे सोलह श्रृंगार जैसे                    मानो चाँद ज़मीं पर चमक रहा है  सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                            || 1 ||                    माथे बिन्दीयाँ आँख में अंजन                     नाक में नथुनीं  हाथ में कंगन                    कान में झुमका चाल में ठुमका                    देख उसे हर कोई बहक रहा है गालो की लाली होठों की प्याली  उसके चेहरे पर नूर बरश रहा है सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                            || 2 ||                     जिसनें देखा जी भर के                      वो बचा है यारो मर मर के                     सांस की सुरभि बाल में गजरा                     चंदन सा बदन महक रहा है देख पतित हुआ वो पावन उसका यौवन इतना चहक रहा है सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......