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Showing posts from June, 2021

आग़ाज़ ( शायरी ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

आग़ाज़ जरुरी है आग़ाज़ होना चाहिये कल नहीं  आज  होना चाहिये डोल   जाये   उसका   शासन  ऐसा हमारा गाज होना चाहिये जो भी  करना  पड़े  करो  मगर मेरे सर पे वो ताज़ होना चाहिये डूब जाये सूरज अब मंजूर नहीं हर तरफ़ मेरा राज होना चाहिये __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '   मेरठ , उत्तर प्रदेश 

Part - 14 - Thoughtfull Shayari __Ghazi Acharya ' Ghazi '

    Thoughtfull Shayari (1) माना सलीका उनका गलत था,,,,,,,,,,! मगर लफ्ज़ो में उनके फिक्र छुपी थी,,!! (2) कह दो इन दरियाओं से कि अपनी औकात में रहे  वरना  समन्दर  बनने में  हमें भी वक्त नहीं लगता  (3) स्टेटस का दौर है साहब शुद्ध विचार और ज्ञान का भण्डार लोगो के अन्दर कम उनके स्टेटस पर ज्यादा मिलता है (4) एक हक़िक़त सामने आई जब उनसे राब्ता हुआ,,! ख़ुद से ख़ुद का नाता ना रहा जब से वो रास्ता हुआ,,!! (5) देखो आज वो शाम आई  मेरे हिस्से खुशियाँ तमाम आई एक माँ का दामन छूटा तो अपनी बाहें पसारे धरती माँ आई ज़मींदारी लेकर आई मेरी शहीदी, आज दो गज़ ज़मीं मेरे नाम आई खुशकिस्मत हुँ मैं वतन तेरे लिये, मेरे  ज़िस्म  की  मिट्टी काम आई  (6) गुजरते दिन मैं कंगाल हो गया मानो मेरे सर से एक-एक बाल कम हो गया मैं जश्न मनाऊं या शोक, आज मेरी ज़िन्दगी का एक और साल कम हो गया (7) ज़िन्दगी गुज़र गयी ज़द्दोज़हद में  चंद लमहात चाहिये सुकूँ के लिये (8) जहाँ  लोग  मरने  की  सोचते  है  वहाँ हम कुछ करने की सोचते है (9) संस्कारों की यहाँ पौध लगाई जिसनें  जगाई  किस्मत सोई माँ की समता  नहीं किसी से माँ जैसा  यहाँ  और ना कोई (10) टुकड़ा भा

मैं वो हिंदुस्तान हूँ मेरे भाई __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

मैं वो हिंदुस्तान हूँ मेरे भाई ना हिन्दु ना मुसलमान  ना सिख ना मैं *इसाई* इंसानियत जिसका धर्म  वो इन्सान हूँ  *मेरे भाई* हर रंग को सजोंकर रखता है  अपनी पेशानी पर तिरंगा जिसकी शान  मैं वो हिंदुस्तान हूँ *मेरे भाई* __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

वीर रस ( कविता ) वह तो झाँसी वाली रानी थी__कवि गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

        वीर रस ( कविता )  वह तो झाँसी वाली रानी थी चलो सुनाऊं एक कहानी  जिसमें एक रानी थी मुख से निकले तीखे बाण  वो शमशीर दिवानी थी थी वो ऐसी वीरांगना उसकी शौर्य भरी जवानी थी सर पर सजा था केसरी रंग पेशानी पर मिट्टी हिन्दुस्तानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... जल उठी थी जब क्रांति ना कोई संकोच,ना थी कोई भ्रांति बांध पीठ पर लाल को जब मूँह में लगाम थामी थी लहू से सीचेंगे इस मिट्टी को बात बस यही ठानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... खूब लड़ी रण-भूमि में वो माँ दुर्गा, माँ भवानी थी लहू के कतरे-कतरे से जिसनें लिखी अमर कहानी थी आखिरी साँस तक लड़ी वो पर हार नहीं मानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... दीवार किले की टूट गई  आस सभी की छूट गई  सीना तान खड़ी रही वो खूब लड़ी मर्दानी थी लड़ते-लड़ते प्राण गवांये मिट्टी के लिये दी कुर्बानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी.... वह तो झाँसी वाली रानी थी.... __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी ' (  मेरठ , उत्तर प्रदेश )

साहित्य विकास मंच को समर्पित कविता __कवि गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

          *साहित्य विकास मंच* मंच को कवियों का प्रणाम होना चाहिये मंच पर काव्य का गुणगान होना चाहिये शतकवीर  हुआ  है  आज *साहित्य विकास मंच*   आज *मंच के कवियों* का सम्मान होना चाहिये सब  का   अपना-अपना  किरदार  होता है काव्य सृजन के लिये कवि हक़दार होता है कवियों के काव्य पाठ से  बढ़ता  है  काव्य सृजन  काव्य मंच का ऊँचा मस्तक कलमकार से होता है ना रुके ये *कारवां* यूं ही चलता चला जाये साहित्य का ये सिलसिला बढ़ता चला जाये सब का स्वागत करता है *काव्य प्रगति कुन्ज* नव युवा कवियों  को राह दिखाता चला जाये नमन करता है 'गाज़ी' *साहित्य विकास मंच* को ये मंच  यूं ही  दरिया की  तरह  बहता चला जाये *__गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '*       *मेरठ , उत्तर प्रदेश*

सुन री हवा तू धीरे चल ( गीत ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

   सुन री हवा तू धीरे चल ( गीत ) सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                    सज संवरकर निकली है वो                    यहाँ सारा चमन महक रहा है                     सौन्दर्य ऐसे सोलह श्रृंगार जैसे                    मानो चाँद ज़मीं पर चमक रहा है  सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                            || 1 ||                    माथे बिन्दीयाँ आँख में अंजन                     नाक में नथुनीं  हाथ में कंगन                    कान में झुमका चाल में ठुमका                    देख उसे हर कोई बहक रहा है गालो की लाली होठों की प्याली  उसके चेहरे पर नूर बरश रहा है सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                            || 2 ||                     जिसनें देखा जी भर के                      वो बचा है यारो मर मर के                     सांस की सुरभि बाल में गजरा                     चंदन सा बदन महक रहा है देख पतित हुआ वो पावन उसका यौवन इतना चहक रहा है सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......      

छूट गया तेरा हाथ माँ ( हिन्दी कविता ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

  छूट गया तेरा हाथ माँ अब तेरे बिना जीना पड़ेगा माँ तेरे जैसा प्यार कौन करेगा माँ सर से तेरा साया छूट गया अब मेरे कष्टो को कौन हरेगा माँ ज़र्रे-ज़र्रे  में तू  है ,  मेरे साथ है तेरी हर बात माँ सब कुछ मेरे पास है, पर छूट गया तेरा हाथ माँ तुम बिन घर ये सूना,  अब सूना पड़ा ये आँगन माँ घर नहीं ये मकान है, जबसे छूट गया तेरा गात माँ __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '  गात - शरीर

तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है ( गज़ल ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

  तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है                     ख़िज़ां में शाख़ सूखी नज़र आ रही है तेरे होठों की तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है                     *** बीच  भँवर  मौन  छाया  हुआ  है  साहिल पर ये लहरें तीखी नज़र आ रही है                     *** खूब सुना तेरे लफ्ज़, लहजे और जुबां को मगर आज इनमें बारीकी नज़र आ रही है                     *** फक़त वाह के क़ाबिल नहीं तेरे फ़साने मुझे इनमें तारीख़ी नज़र आ रही है                     *** तेरी मोहब्बत के तलबगार तो हम थे मगर ये मोहब्बत सर-ए-बाज़ार बिकी नज़र आ रही है                     *** __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

सब कुछ यहाँ बेतरतीब हो गया ( शायरी ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

  सब कुछ यहाँ बेतरतीब हो गया किस्सा-ए-मोहब्बत अजीब हो गया सब कुछ यहाँ बेतरतीब हो गया जो था मेरे सबसे करीब यहाँ कम्भख्त वही मेरा रक़ीब हो गया सब कुछ लुटा दिया जिसके लिये वो कहकर छोड़ गया कि तू गरीब हो गया क्या लिक्खा है मेरी तक़दीर में ए ख़ुदा  तू ही बता 'गाज़ी' क्यों इतना बेनसीब हो गया __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

सूरत-ए-हालात ना होने दिया ( गज़ल ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

           सूरत-ए-हालात  ना होने दिया रुबरु उनको सूरत-ए-हालात* ना होने दिया, बादल छाये रहे  मगर  बरसात ना होने दिया ढूँढते   रहे    वो   महफ़िल - महफ़िल  मगर, मुन्कशिफ़* तल्ख़ी-ए-हालात* ना होने दिया हिज़्र*  में  उनकी  नागवार  गुजरी  हर  रात, ज़ाहिर   उनको   जज़्बात   ना   होने   दिया कोशिशे   तो  बहुत   की    ज़माने  ने  मगर, मंसूबो  को  उनके  आबाद  ना   होने  दिया मेरे  दुश्मन  चले  थे  हाथ  बढाने  उस ओर, हमने  किसी को  इल्तिफ़ात* ना  होने दिया  खूब टटोला उसनें मेरे दिल की अलमारी को, मेरी मुस्कराहट ने गमों से बात ना होने दिया __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी ' तल्ख़ी-ए-हालात - स्थिति की कडवाहट मुन्कशिफ़ - जाहिर , व्यक्त होना सूरत-ए-हालात - परिस्थितियों की स्थिति हिज्र - जुदाई इल्तिफ़ात - मित्रता