वीर रस ( कविता ) वह तो झाँसी वाली रानी थी__कवि गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '
वीर रस ( कविता )
वह तो झाँसी वाली रानी थी
चलो सुनाऊं एक कहानी
जिसमें एक रानी थी
मुख से निकले तीखे बाण
वो शमशीर दिवानी थी
थी वो ऐसी वीरांगना
उसकी शौर्य भरी जवानी थी
सर पर सजा था केसरी रंग
पेशानी पर मिट्टी हिन्दुस्तानी थी
वह तो झाँसी वाली रानी थी.....
वह तो झाँसी वाली रानी थी.....
जल उठी थी जब क्रांति
ना कोई संकोच,ना थी कोई भ्रांति
बांध पीठ पर लाल को
जब मूँह में लगाम थामी थी
लहू से सीचेंगे इस मिट्टी को
बात बस यही ठानी थी
वह तो झाँसी वाली रानी थी.....
वह तो झाँसी वाली रानी थी.....
खूब लड़ी रण-भूमि में
वो माँ दुर्गा, माँ भवानी थी
लहू के कतरे-कतरे से
जिसनें लिखी अमर कहानी थी
आखिरी साँस तक लड़ी
वो पर हार नहीं मानी थी
वह तो झाँसी वाली रानी थी.....
वह तो झाँसी वाली रानी थी.....
दीवार किले की टूट गई
आस सभी की छूट गई
सीना तान खड़ी रही
वो खूब लड़ी मर्दानी थी
लड़ते-लड़ते प्राण गवांये
मिट्टी के लिये दी कुर्बानी थी
वह तो झाँसी वाली रानी थी....
वह तो झाँसी वाली रानी थी....
__गाज़ी आचार्य ' गाज़ी ' ( मेरठ , उत्तर प्रदेश )
Bundele har bolo ke muh hamne suni kahani thi
ReplyDeleteKhoob ladi mardani wo to jhansi wali rani thi.... Jai Lakshmi bai
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteVery nice poiyam
ReplyDeleteVery Nice poem sir 👌👌💐💐
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