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Showing posts from January, 2021

मैंने पूछा ज़िन्दगी क्या है ? __ विपिन दिलवरिया

         मैंने पूछा ज़िन्दगी क्या है ? मैंने पूछा ज़िन्दगी क्या है ? किसी ने कहा नरक ,  किसी ने कहा जन्नत किसी ने कहा गम , किसी ने कहा मोहब्बत किसी ने कहा दुआ ,किसी ने कहा बददुआ  किसी ने कहा मौका , किसी ने कहा धौखा किसी ने कहा नियम , किसी ने कहा सयंम किसी ने कहा श्रम, किसी ने कहा मतिभ्रम  किसी ने  कहा  ज़िन्दगी का नाम जिहान है  किसी ने कहा ज़िन्दगी का नाम इम्तिहान है किसी ने  कहा  सफ़र  मंजिले-ए-ज्ञान का किसी ने कहा सफ़र मंजिले-ए-निर्वाण का लोग कहते गये और मैं सुनता गया मगर मैं ज़िन्दगी को कभी समझ ना पाया अन्तिम साँस तक शब्द चुनता गया मगर ज़िन्दगी को परिभाषित कर ना पाया   __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

ये मेरा हिन्दुस्तान है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

                 ये मेरा हिन्दुस्तान है शौर्य की मिसाल है  तिरंगा जिसकी पहचान है ये मेरा हिन्दुस्तान है सीने पर गोली खायी आज़ादी की अलख जगाई इस मिट्टी में जन्मे  सुभाषचंद्र बोस,भगतसिंह  राजगुरु,सुखदेव जैसे इन्सान है इस मिट्टी पर अपनें खून से  लिक्खी आज़ादी की दास्तान है  ये मेरा हिन्दुस्तान है ना कभी हम घबराये ना कभी कदम डगमगाये बैठे सरहद पर सीना तान है ऐसे मेरे देश के जवान है ये मेरा हिन्दुस्तान है भाईचारे की मिसाल है सर्वधर्म है मेरा भारत यहाँ हिन्दु है मुसलमान है पनाह दी हर मज़हब को  ऐसा मेरा भारत महान है एक घर में रहती  यहाँ गीता और कुरान है ये मेरा हिन्दुस्तान है इस मिट्टी में जन्में श्याम  इस मिट्टी में जन्में राम है इस मिट्टी में जन्में महावीर स्वामी इस मिट्टी में जन्में बुद्ध भगवान है ये मेरा हिंदुस्तान है इस मिट्टी में जन्में गाँधी, फूले और पटेल इस मिट्टी में जन्में भीमराव  अम्बेडकर जैसे विद्वान है ये मेरा हिन्दुस्तान है इस मिट्टी में जन्में  वाग्भट, मिहिर, आर्यभट्ट इस मिट्टी में जन्में होमी भाभा और कलाम है ये मेरा हिन्दुस्तान है शौर्य की मिसाल है  तिरंगा जिसकी पहचान है ये मेरा ह

ये सियासत अब वो पुरानी नहीं रही ( shayari ) __विपिन दिलवरिया

                ये सियासत अब वो                         पुरानी नहीं रही गलतफहमी रखते है जो,  उन्हें बता दूँ ये सियासत अब वो पुरानी नहीं रही ये 21 वीं सदी का क्रन्तिकारी युग है अब वो 20 वीं सदी वाली बात पुरानी नहीं रही जागीर समझ बैठे है जो दिल्ली को,  उन्हें बता दूँ  ये दिल्ली किसी की खानदानी नहीं रही __विपिन दिलवरिया 

सुख की तितली के पीछे मात भागो ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

सुख की तितली के पीछे मात भागो सुख की तितली के पीछे मात भागो ये रोज नये फूलो को चुनती है भाग्य की लकीरो के पीछे मत भागो ये रोज नये ख्वाबों को बुनती है परिश्रम के समंदर से सींचकर एक बागवाँ बनाओं जहाँ मधुकर चकरी तितलियाँ सब मंडराती है __विपिन दिलवरिया 

मैंने हिस्से में बस माँ को माँग लिया ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

मैंने हिस्से में बस माँ को माँग लिया ये ज़मीन जायदाद रुपया पैसा इसने तो रिश्तों को बांट दिया कमाया किसने ज़िन्दगी भर और किसने हिस्सो को माँग लिया निगाहें गडी थी किसी की मकाँ पर तो किसी ने दुकाँ को माँग लिया मैं घर में सबसे छोटा था  मैंने हिस्से में बस माँ को माँग लिया __विपिन दिलवरिया 

ग़रीबी ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

                    ग़रीबी लात  मार  दे  हर  कोई  जो भी विधि का मारा है साथ  छोड़  दे  हर कोई जो  ग़रीबी  का  मारा है भूख भी क्या  चीज़ बनायी ओ रब्बा  इसमे ना मेरा ना तुम्हरा है ज़ुर्म सबसे बड़ा ग़रीबी ग़रीब का ना कोई सहारा है लात  मार  दे  हर  कोई  जो भी विधि का मारा है साथ  छोड़  दे  हर कोई जो  ग़रीबी  का  मारा है * * एक ने अपने प्राण गवांये एक शिकारी कहलाया है एक यहाँ  राजा कहलाये एक भिखारी कहलाया है   राजा और रंक तूने बनाये  ये भेद भी  तूने  बनाया है एक सर पर  छत संगमरमर की एक  पर  उसारा है लात  मार  दे  हर  कोई  जो भी विधि का मारा है साथ  छोड़  दे  हर कोई जो  ग़रीबी  का  मारा है * * जग में अपना कौन पराया किसको   किसनें  जाना है रिश्ते  नाते  भूल  सबनें ख़ुदा दौलत को माना है कौन  अपना  कौन  पराया किसको कह दें अपना यहाँ गैरों ने तो छोड़ दिया यहाँ अपनो नें हक मारा है लात  मार  दे  हर  कोई  जो भी विधि का मारा है साथ  छोड़  दे  हर कोई जो  ग़रीबी  का  मारा है __विपिन दिलवरिया ( मेरठ ) विधि - किस्मत उसारा - छप्पर

ज़िन्दगी सिमट रही है ( shayari ) __विपिन दिलवरिया

            ज़िन्दगी सिमट रही है  हर नये  साल के  साथ  ज़िन्दगी  गुजर रही है ! कोन जाने  उम्र  बढ़ रही है या उम्र घट रही है !! मिलते है  हर  नये  साल  के  साथ  नये तजुर्बे ! तजुर्बे  तो बढ़ रहे है  मगर ज़िन्दगी घट रही है !! ये दौर भी अजीब है'दिलवरिया'21वीं'सदी का ! तकनिकी  बढ़ रही  पर ज़िन्दगी सिमट रही है !! __विपिन दिलवरिया   ( मेरठ )

Part - 10 - Thoughtfull Shayari __Vipin Dilwarya

    Thoughtfull Shayari (1) अमीर-ए-शहर है सुनवाई क्या होगी अदालत में ! ग़रीबी गुनाह  है  जनाब क्या रखा है वकालत में !! (2) आसमाँ गुल्ज़ार है मगर परिंदा घबराया है,,! लगता है उनके घरो पर खतरा मंडराया है,,!! (3) एक पल की जान पहचान दूजे पल इज़हार देख उसका रंग रूप और कर देते है इकरार  इक मुलाकात दिन में और दूजी में हुई रात ये प्यार नहीं पगली ये है जिस्मों का व्यापार (4) घरो में कैद करके सबके रोजगारों को पेल गया किसी के अपने ले गया किसी के सपनों से खेल गया अजीब था ये साल '2020' साला  '20' , '20' खेल गया (5) कम्भक्त  ये पांव  भी  पड़ाव नहीं लेते किसी डगर पर  ये अटकाव नहीं लेते कोन डगर थमेंगे तेरे पांव"दिलवरिया" आजकल ये दरख्त भी छांव नहीं देते (6) उसनें किया, माना वो छल था चोट मिली  वो  गुजरा पल था कर्म सबके अपने-अपने,,,मुझे मरहम मिला कर्मों का फ़ल था (7) इत्तफाक*बहुत कम लोग रखते है मुझसे क्योंकि मैं किसी से समझौता नहीं करता (8) हम वो नहीं जो जताया करते है,,,,,,,,,,!! अहसान करके हम भूल जाया करते है,,!! (9) हर नये  साल के  साथ  ज़िन्दगी  गुजर रही है ! कोन जाने  उम्र

जो बीत गया सो बीत गया ( hindi kavita ) __विपिन दिलवरिया

     जो बीत गया सो बीत गया साल    पुराना    बीत    गया बातें  बहुत  कुछ  सीख  गया छोड़ो   बीते   कल  की  बातें जो बीत  गया  सो  बीत गया रात    पुरानी    बात   पुरानी गुजरते साल गुजरती जवानी गिले - शिकवे  सब  भूलकर शुरू करो  अब  नई  कहानी पुरानी  कहानी  जो भूल गया वो समझो  लड़ाई  जीत गया फतह कर उसनें जग पा लिया जो  ख़ुद  से लड़ना सीख गया छोड़ो   बीते  कल   की  बातें जो  बीत  गया  सो बीत गया ~विपिन दिलवरिया ( मेरठ )