Posts

Showing posts from 2019

"" बेरोज़गारी का आलम "" by Vipin Dilwarya

             ""  बेरोज़गारी का आलम "" स्नातक उत्तीर्ण किया आई खुशियों की बहार , पल भर की थी ये खुशियां हमसे पहले स्नातक अब तक है बेरोजगार , दिन - रात मेहनत करते प्रतिस्पर्धा के लिए करते रहते नौकरी निकलने का इंतेज़ार । दिन पर दिन बढ़ते जा रहे बेरोजगार भर्ती  नहीं  कर  रही  सरकार , रिक्त पदों की संख्या बढ़ रही बेरोज़गारी निरन्तर बढ़ती जा रही , ना जाने कब नोकरी आएगी होता उस पल का इंतेज़ार । चलो तरस आया भइया बेरोजगारों पर सरकार को , विज्ञप्ती हुई अब भर्ती करेंगे चपरासी और चौकीदार को , फॉर्म भरे गए जब साइट जाम हो गई आधो के फॉर्म भरे गए और आधे रह गए कतार में , हद तो तब हो गई नौकरियां थी पचास हजार और फॉर्म भरे गए बीस करोड़ पचास हजार , ऐसे हमारे देश के हालात कितनी है नौकरियां और कितने है बेरोजगार , चलो ठीक है भइया मान लिया नौकरी है कम और ज्यादा है बेरोजगार , तो इसलिए आ गए फॉर्म बीस करोड़ पचास हजार , छटनी हुई जब फार्मों की दंग रह गए सभी देखकर बेरोज़गारी के ऐसा आलम , पी0 एच0 डी0 धारक बनने को तैयार है चपरासी और चौकीदार ,

" आखिर कौन है वो इंसान " ( Rapist poetry ) by Vipin Dilwarya

" आखिर  कौन  है  वो  इंसान "   ( Rapist poetry ) आखिर  कौन  है  वो  इंसान , ना बेटी , ना बहन , ना दिखती है मासूमियत वो इंसान है या हैवान , तीन साल की बच्ची देखता है  ना देखता है 60 साल की औरत , हवस  का  पुजारी  है  वो ना देखता है बच्ची और जवान , आखिर  कौन  है  वो  इंसान..... इंसान , इंसान को मार रहा बेटियों को नोच रहा और कर रहा औरत की इज्ज़त तार - तार रोज हो रहे बलात्कार खबरे आ रही है लगातार आखिर  कौन  है  वो  इंसान जो कर रहा इंसानियत को शर्मशार , आखिर  कौन  है  वो  इंसान..... तू  है  या  मैं  हूं ,  ये  है  या  वो  है , तू भी नहीं मैं भी नहीं , ये भी नहीं  वो भी नहीं सब बनते है अंजान , क्या कोई और है इस समाज में कोई दूसरे ग्रह से आता है क्या , तू भी इस समाज में ,  मैं भी इस समाज में ,  ये भी इस समाज में ,  वो भी इस समाज में , फिर कैसे होगी उसकी पहचान , आखिर  कौन  है  वो  इंसान..... By _ Vipin Dilwarya

" मां का प्यार " by Vipin Dilwarya

 "  मां का प्यार  " दर्द तो है पर कभी  दर्द - ए - गम ना हुआ , रुखसत हो गई जिस दिन मेरी मां , दर्द भी हुआ उस दिन दर्द - ए - गम भी हुआ । इस दुनिया में चाहने वाले  और प्यार करने वाले तो बहुत है , मगर मेरी मां जैसा  प्यार मुझे किसी ने ना किया । ये इश्क़ , ये प्यार , ये मोहब्बत  को मैं कभी समझ नहीं पाया  कितने रंग है इसके मैं कभी गिन नहीं पाया , रंग मोहब्बत का अगर सच्चा है तो वो मां की मोहब्बत का है , बाकी सब  तो  खेल , दिखावा और मोहमाया है । आजमाकर देखा है मैंने  हर एक रिश्ता , सबने वक्त - वक्त के हिसाब से प्यार किया  और वक्त - वक्त के हिसाब  से मुझे इस्तेमाल किया  , बस एक मां है जिसने हर वक्त मेरा साथ दिया  और बेवक्त भी मुझे प्यार किया  । By _ Vipin Dilwarya

" इसमें कुछ खास बात है " by Vipin Dilwarya

 " इसमें कुछ खास बात है " अक्सर मिलना और बिछड़ना  ये तो आम बात है , लेकिन आज बिछड़कर याद करना  इसमें कुछ खास बात है । यूं महफ़िल में बोलना - चालना ये तो आम बात है , मगर  आज यूं बेवजह मुस्कुराकर बात करना  इसमें कुछ खास बात है । गलियों से तो हम  उसकी रोज गुजरते थे , मगर आज यूं दरवाजे  पर  इंतेज़ार  करना इसमें कुछ खास बात है । उनके नज़रअंदाज़ करने से हमें कोई शिकवा नहीं  ये तो आम बात है , मगर आज  बार - बार नज़रें चुराकर नज़रें मिलना इसमें कुछ खास बात है । लाख कोशिश की  मैंने उनसे मिलने की मगर  आज उनका  घर पर मिलने आना  इसमें कुछ खास बात है । By _ Vipin Dilwarya

इस दिल को कोन समझाए जो आज भी तेरी और खींचा चला आता है by Vipin Dilwarya

 इस दिल को कोन समझाए जो आज भी तेरी और  खींचा चला आता है  _____________________    छोड़ देंगे वो शहर     वो गलियां जिनसे तेरा नाता है ,    कदमों को तो मैं अपने रोक लेता हूं ,    पर इस दिल को कोन समझाए     जो आज भी तेरी और     खींचा चला आता है  ।    बरसो बीत गए    तेरी गलियों को देंखे ,    पर ये दिल आज भी तेरी     गलियों के चक्कर लगाता है ,    और हा ऐसा नहीं है....     कि इतने वर्षों में    मुझे कोई चाहने वाला नहीं मिला ,        लाखो मिले है मुझे चाहने वाले     इस दिल को प्यार करने वाले ,    मगर इस दिल को आज     भी तेरा दिल ही भाता है  ।        इस दिल को कोन समझाए ,    जो आज भी तेरी और     खींचा चला आता है  ।    यूं तो ज़िन्दगी चल     रही है हमारी कोई कमी नहीं है ,    दौलत भी मिली    और प्यार भी मिला ,    शौहरत भी मिली    और दिलदार भी मिला ,    लाख कोशिश की मैंने     कि उसे भुला दूं ,    मगर ये दिल आज     भी वहीं थमा बैठा है ,    इस दिल को कोन समझाए ,    जो आज भी तेरी और     खींचा चला आता है  ।  

( मां ) Mother poetry in Hindi by Vipin Dilwarya

  "  मां  " " Mother " poetry in Hindi     मां महज एक शब्द नहीं ,    इस शब्द में समाया    पूरा संसार है  ।    ये चांद , ये सितारे और ये सूरज    सब से मिलकर बना ये आसमां है ,    ये जीव , ये जंतु और ये इंसान    सबके जीवन का आधार बस मां है  ।    मां - बाप ही ईश्वर    मां - बाप ही भगवान है ,    मां - बाप के बिना    अधूरा हर इंसान है  ।    आज मैं जो कुछ भी हूं    ये बस  मां  का प्यार है    मां  बस  मां  नहीं ,    मां  ही  मेरा  संसार  है  ।    सत्यता है बस    मां के प्यार में ,    बाकी सब मिथ्या है    इस संसार में  ।    मां के लिए बहुत कुछ    लिखना चाहता हूं ,    सोचता हूं , लिखता हूं    और मिटा देता हूं ,    बस मां लिखकर    आगे निशब्द हो जाता हूं  । By _ Vipin Dilwarya

( मेरे दोस्त ) वो दोस्त मेरे कुछ ऐसे थे by Vipin Dilwarya

   ( मेरे दोस्त )     " वो दोस्त मेरे कुछ ऐसे थे "    कुछ मजबूरियां ऐसी थी    कुछ हालात ऐसे थे    ना खाने को कुछ था     ना  जेब  में  पैसे  थे    जब बुरा वक्त हमारा था    तो सब हो गए पराए थे      अरे गैरों से क्या गिला करते    जब अपने ही कुछ ऐसे थे       टूट चुका था अंतर्मन से    जब कोई अपना साथ ना था    बोझ लग रहा था जीवन    फिर भी मुझको ढोना था    मुश्किल वक्त में जिसने    हाथ बढ़ाया मेरी ओर    कहने को वो पराए जैसे थे    जो क़दम से क़दम    मिलाकर मेरे साथ चले    वो पराए कुछ मेरे दोस्त थे    अनमोल है वो रिश्ता    वो दोस्त मेरे कुछ ऐसे थे    निस्वार्थ मेरा साथ दिया    साथ मिलकर काम किया    मुझे बुलंदियों तक पहुंचाए थे       बुरा वक्त भी टल गया    अब  जेब  में  भी  पैसे  थे    अजब दस्तूर है इस दुनियां का    अब अपने भी साथ थे    और पराए भी साथ थे      जब हो गए हम कामयाब थे    अच्छे - बुरे वक्त में जो मेरे साथ चले    कहने को वो पराए जैसे थे    अनमोल है वो रिश्ता    वो दोस्त मेरे कुछ ऐसे थे

" बचपन " " क्या खूब थे वो बचपन के दिन , वो बचपन के दिन याद आते है " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

                       " बचपन "                       " "क्या खूब थे वो बचपन के दिन"      "वो बचपन के दिन याद आते है" ना खाने की चिंता  ना कमाने की चिंता , बस स्कूल में पढ़ना और क्लास में शोर मचाना था , वो बारिश की बूंदे और पानी का किनारा  , वो कागज़ की कश्ती और ये दिल आवारा था , क्या खूब थे वो दिन वो भी क्या जमाना था , वो कागज़ की कश्ती और वो क्लास में शोर मचाने वाले दिन याद आते है आज वो बचपन के दिन याद आते है । क्या खूब थे वो बचपन के दिन , कोई अपना था ना पराया ज़िन्दगी बस ख़ुद में मशगूल थी , ना दोस्ती  का मतलब  ना  मतलब की दोस्ती , अनमोल थी वो दोस्ती जो दोस्ती फिजूल थी , ना  बातों  के मतलब ना मतलब  की  बातें , अनमोल थी वो बातें  जो  बातें फिजूल थी , पक्की सड़कें पक्के मकाँ  मिलता नहीं वो सुकूँ यहाँ, कोई लौटा दे वो बचपन जहाँ सड़कों पे उड़ती धूल थी , क्या खूब थे वो बचपन के दिन , वो फिजूल की बातें और वो फिजूल के दोस्त याद आते है आज वो बचपन के दिन याद आते है । क्या खूब थे वो बचपन के दिन , ना किसी को सुनाना  ना किसी की सुनना , वो गुड्डे - गुड़ियों के खेल

तेरी बेवफाई के किस्से सरेआम नहीं करूंगा by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

  तेरी बेवफाई के किस्से  सरेआम नहीं करूंगा तेरी बेवफाई के किस्से  सरेआम नहीं करूंगा , तु बेवफा है तो क्या हुआ सच्ची है मेरी मोहब्बत  इसे बदनाम नहीं करूंगा , हर लड़की बेवफा नहीं होती जिनकी मोहब्बत सच्ची होती है उनकी मोहब्बत को रुसवा नहीं करूंगा , इसलिए , तेरी बेवफाई के किस्से  सरेआम नहीं करूंगा , सच्ची है मेरी मोहब्बत  इसे बदनाम नहीं करूंगा , मानता हूं , मोहब्बत में सभी वफा नहीं करते तो सभी  बेवफाई भी  नहीं करते , सभी को बेवफाई का इल्ज़ाम नहीं दूंगा , तेरी बेवफाई का किस्सा सुनकर कहीं सच्ची मोहब्बत बदनाम ना हो जाए , मोहब्बत करने वालों का मोहब्बत से विश्वास ना उठ जाए , इसलिए , तेरी बेवफाई के किस्से  सरेआम नहीं करूंगा , सच्ची है मेरी मोहब्बत  इसे बदनाम नहीं करूंगा , भले ही , तेरी मोहब्बत में मैं टूट चुका हूं मगर ये इश्क़ दोबारा नहीं करूंगा , मुझसे भी ज्यादा टूटे हुए लोग  बैठे है इस महफ़िल में , जनाब , मगर , मै किसी की ओर इशारा नहीं करूंगा , तेरी बेवफाई के किस्से  सरेआम नहीं करूंगा , सच्ची है मेरी मो

कौरी किताब मेरी ज़िन्दगी by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

 कौरी  किताब  मेरी  ज़िन्दगी कौरी  किताब  मेरी  ज़िन्दगी शब्दों  की  ज़रूरत  है  मुझे , तु लिख दें मुझ पर कुछ ऐसा मोती जैसे चमके रोशन करदे , हर दिल की चाहत बन जाए कौरी  किताब  मेरी  ज़िन्दगी , मेरी किताब के हर अध्याय में बस तेरी कलम के निशान हो  मेरी किताब  के  हर पन्ने पर तेरी कलम  से  लिखे शब्द हो संवार  दे  शब्द  समूह  से कोरी  किताब  मेरी  ज़िन्दगी By_ Vipin Dilwarya

इस तरह मेरी रूह में बस गई है , हर पल लगता जैसे , मेरे रूबरू है तु by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

 इस तरह मेरी रूह में बस गई है  हर पल लगता जैसे , मेरे रूबरू है तु इस तरह मेरी रूह में बस गई है हर पल लगता जैसे , मेरे रूबरू है तु । भूलकर भी तुझे भुला नहीं सकता तेरी यादों को मिटा नहीं सकता , तु नहीं है पर तु ही है इस ज़िन्दगी में ज़िंदा हूं इसलिए कि मेरी सांस है तु , इस तरह मेरी रूह में बस गई है हर पल लगता जैसे , मेरे रूबरू है तु । बरसो हो गए है तुझसे बिछड़े हुए लगता है जैसे इस पल की बात है , सोचता हूं एक पल ना सोंचू तेरे बारे में  पर मेरे सोचने से पहले मेरी सोच में है तु , भले ही साथ नहीं है तु मेरे पर तेरे संग बिताए हसीन पल मेरे साथ है तेरे बिना ये ज़िन्दगी बिखर सी गई है फिर  भी  मुझे  समेटे  हुए  है  तु , इस तरह मेरी रूह में बस गई है हर पल लगता जैसे , मेरे रूबरू है तु । वो तेरा रूठना मेरा मनाना तेरा शरारत करना मुझे सताना  वो तेरी मोहब्बत तेरा इतराना वो  सारी  बातें  याद  है  मुझे , तेरी बातें ही तो मेरा साया बनकर  मेरे  साथ  चलती  है , जब तू नहीं है तो तेरी बातों  से ही तो मेरी बात होती है , अकेला

उसका दिल , दिल नहीं एक धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

    उसका दिल , दिल नहीं एक      धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी प्यार का दिखावा कर वो दिलों के साथ गेम खेला करती थी उसका दिल , दिल नहीं एक धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी ये इश्क़ , ये प्यार , ये मोहब्बत , उसके लिए एक मजाक था सोना बाबू बोलकर वो  बस प्यार जताती थी और अगले ही पल बिज़ी बताकर  मुझसे पीछा छुड़ाकर किसी और से मिलने का वादा करती थी प्यार तो उसका एक दिखावा वो दिलों के साथ गेम खेला करती थी उसका दिल , दिल नहीं एक धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी ऐसा नहीं था कि वो मुझसे प्यार नहीं करती थी वो मुझसे मिलने आती  मुझे प्यार करती  बड़ा दुलार करती थी पर उससे मिलने की खातिर उसकी एक कॉल पर कभी भाई कभी चाचा कभी दोस्त कभी पापा बताकर मुझे छोड़कर चली जाती थी प्यार तो उसका एक दिखावा  वो दिलों के साथ गेम खेला करती थी उसका दिल , दिल नहीं एक धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी वो मुझसे मिलकर फ्राय डिनर  को बोलती और  उससे मिलकर लोंग ड्राइव  को बोलती थी बाकी बची शॉपिंग ,  पॉकेट मनी के लिए ना जाने कितनों से म

Part - 1 *Dilwarya's Quotes* " by Vipin Dilwarya

           "  *Dilwarya's Quotes* "                         * Part - 1 * * मां - बाप ही ईश्वर     मां - बाप ही भगवान है ,    मां - बाप के बिना     अधूरा हर इंसान है । * मृत्यु का रहस्य कोई नहीं समझ पाया है    मृत्यु क्या है इसे कोन बतलाएगा ,    मृत्यु परम सत्य है    इसे कोन जुठलाएगा  * सोने की कोशिश तो बहुत करता हूं    लेकिन कुछ ख्वाब है जो सोने नहीं देते  * वफा को ढूंढ़ता रहा ज़िन्दगी भर ,    हैरत की बात तो ये है साहेब    वफा तो ना मिली धड़कन ही बेवफा हो गई  * ख्वाहिशें कभी खत्म नहीं होती साहेब    ज़िन्दगी की अंतिम सांस में भी     जीने की ख्वाहिश होती है  * खुशनुमा और हसीन ज़िन्दगी की तलाश में    बढ़ रहे है मौत की ओर जश्नौ के दौर से * कभी ठोकर ना लगे तो खाकर देखो    पता चल जाएगा    कितने लोग संभालने वाले है * कहने वाले कहते रहेंग, सहने वाले सहते रहेंगे    जीने वाले जीते रहेंगे , मरने वाले मरते रहेंगे    छोड़ चिंता ये जीवन चक्र है चलता रहेगा  By _ Vipin Dilwarya x

" मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

" मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है " मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है कहीं सर्द हवा , कहीं गर्म हवा कभी पानी में घुलती  तो कभी अग्नि में तपती है , ऊंचे - ऊंचे पर्वत मालाओं से  गंगा ,यमुना ,सरस्वती बहती है , मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है कृषि प्रधान है देश मेरा , जय जवान, जय किसान का है देश मेरा  जवानों के बलिदान का है देश मेरा , किसानों के पसीने की खुशबू इस मिट्टी में , जवानों के बलिदानी खून  की खुशबू इस मिट्टी में आती है , किसानों की सांसें मिट्टी से किसानो का दिल है मिट्टी मिट्टी में धड़कन बसती है , बारिश में भीगते ही वो सोंधी - सोंधी खुशबू  महकती है , मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है कहीं अडिग होकर ऊंची - ऊंची इमारतों का बोझ सहती है कहीं बंजर तो कहीं  उपजाऊ बन जाती है , मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है मन्दिर और मस्जिद दोनों को मेरे देश की मिट्टी रचती है , कभी मस्जिद के आंगन में तो कभी मूर्ति में ढलती है , कब्र मुस्लिम की मिट्टी में बनती  हिंदू को अग्नि मिट्टी के ऊपर दी जाती , ये मिट्टी ह

" लोग ना जाने किस रोग के बीमार बैठे है " by Vipin Dilwarya & lokesh pal

" लोग ना जाने          किस रोग के बीमार बैठे है " लोग ना जाने किस रोग के बीमार बैठे है कितने  चले  गए  , कितने  तैयार  बैठे है , आपनों  से  दूरियां  बना  ली आज कल गैरों  से  बात  करने  को  बेकरार बैठें है , समय   ने     लोगों      को        बदला लोग    खुद     को     बदल   ना   सके , तेजी    से   दौड़कर     निकला   समय घड़ी    के    कांटो    को    छू  ना  सके , भ्रम    में      खुद      को      रख    के दोष     औरों      पे  हमने   लगाए    है , ठगा   किसने   किसको   है  कौने जाने सभी    हाशिए    पर    सवार   बैठे   है , लोग ना जाने किस रोग के बीमार बैठे है…… रोज उठकर हाथों की लकीरों को देखते है कर्म  के  नहीं अपनें  भाग्य  भरोसे  बैठे है गर  लकीरें  ही  होती  भाग्य की  विधाता, वे लोग किस मिट्टी के है जिनके हाथ नहीं वो आज बुलंदियों  पे  सवार  होके  बैठे है लोग ना जाने किस रोग के बीमार बैठे है….. ना मै  था , ना  मै  हूं , और ना  मैं रहुंगा, जीवन रूपी जेल को समझना आसां है , गर     हकीकत    को   जान   ले    हम तो समय के खेल को समझना आसां

" उदास निगाहें " " लोकेश पाल वास्तविक कहानी " by Vipin Dilwarya

   " लोकेश पाल वास्तविक कहानी "                  " उदास निगाहें " दोस्तो यह कहानी मेरे प्रिय मित्र लोकेश पाल के जीवन में घटी वास्तविक कहानी है । और इस कहानी के माध्यम से मुझे एक बहुत अच्छी सीख मिली , और उम्मीद है कि इस कहानी से आप लोगो को भी बहुत कुछ सीखने को मिलेगा  । कहानी को पूरा पढ़े....                                👇👇👇👇                  संसार का नियम है , कि जिसके नसीब में जितना होगा उसको उतना और सही समय मिलेगा जरूर, लेकिन कभी कभी लगता है कि किसी को कुछ मिलने और ना मिलने का कारण हम बन जाते है । आप शायद मेरी बात से सहमत नहीं ना हों लेकिन एक समय की घटना मेरे लिए जीवन का एक बड़ा सबक बन गई ।  सुदर्शन न्यूज में काम करने के दौरान मेरा एक अनुभव मुझे आज तक कचोटता है । नोएडा सेक्टर 57 में स्थित सुदर्शन न्यूज में काम करने के दौरान अकसर मेरा समय सुबह 10 बजे से शाम के 6 बजे तक होता था । तो रोज आफिस जाने से पहले रास्ते में चाय नाश्ता करते हुए आफिस जाता था । एक दिन देर से उठने के कारण मै आफिस जाने मे लेट हो गया और बिना चाय नाश्ते के ही जल्दी-जल्दी आफि

"इंतज़ार से लबालब भरा हूं मै तेरा इजहार हूं" हिंदी कविता by Vipin Dilwarya & lokesh pal

"इंतज़ार से लबालब भरा हूं  मै तेरा इजहार हूं" इंतज़ार से लबालब भरा हूं मै  तेरा  इजहार  हूं , एक बार गौर से तो देख मैं  तेरा  सच्चा  प्यार  हूं , बदलते मौसम में हर बार  तेरी याद खलती है मुझे , होली  के  रंगों  में  गुलाल सी तेरी खुशबू  मै दिवाली में जलते  दियों  की  कतार  हूं , इंतज़ार से लबालब भरा हूं  मै  तेरा  इजहार  हूं , एक बार गौर से तो देख मैं तेरा सच्चा प्यार हूं , तेरी बातें मेरा साया  बनकर मेरे साथ चलती है , हर  मोड़  पर  मेरी  उम्मीद तेरी राह तकती है , तुझ बिन जीवन में अधूरा हूं असहाय हूं  , बेकार हूं , इंतज़ार से लबालब भरा हूं मै  तेरा  इजहार  हूं , एक बार गौर से तो देख मैं तेरा सच्चा प्यार हूं , जीवन रूपी किताब के  हर पन्ने पर बस नाम है तेरा , हर अध्याय में जिक्र है तेरा हर पंक्ति में तेरा मुकाम है , शब्दों  की  गहराई  में  हर अक्षर के साथ तेरे सरोकार हूं , इंतज़ार से लबालब भरा हूं  मै  तेरा  इजहार  हूं एक बार गौर से तो देख  मैं  तेरा  सच्चा प्यार  हूं , कदमों को अपने रोकने

" ऐसे होते हमारे मां - बाप है " हिंदी कविता by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

Image
" ऐसे होते हमारे मां - बाप है " जितने भी जीव इस धरती पर सबके जीवन का आधार मां - बाप है , स्वार्थी है सब इस धरती पर निस्वार्थ साथ देते बस मां - बाप है , ऐसे  होते  हमारे  मां - बाप  है... वो प्यार ना रहा रिश्ते नातेदारों में प्यार है बस नाम का रह गया बस मतलब का साथ है , बिकता है आज प्यार बाजारों में नहीं बिकता प्यार जिसका वो मां - बाप है ऐसे  होते  हमारे  मां - बाप  है... रात - दिन महनत करते है पूंजी एकत्र की पाई - पाई जोड़कर बच्चो के सपनों को पूरा करते है अपने  ख्वाबों  को  तोड़कर , इच्छाओं को अपनी मार देते है भूख को भी अपनी छुपा लेते है खुद भूखा रहकर हमारी  भूख  को  मिटाते  है , ऐसे  होते  हमारे  मां - बाप  है... कितनी भी कठिनाईयां आए बच्चो का भविष्य बनाते है भले खुद के जीवन में हो अंधियारा बच्चो के जीवन में दीप जलाते है , अच्छे बुरे वक्त में जो साथ होते है वो  सिर्फ  हमारे  मां - बाप है ऐसे  होते  हमारे  मां - बाप  है... काबिल हूं आज कामयाब हूं मैं दो रोटी खाता हूं इज्ज़त की ये इज्ज़त , सम

" हे ईश्वर " क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? By Vipin dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

Image
" हे ईश्वर " क्या फर्क है तेरी मिट्टी और  मेरी  मिट्टी  में ? हे ईश्वर , छमा करना मेरी गलती को  एक प्रश्न है मेरे मन में जो  अंदर ही अंदर कचोटता है ? हे ईश्वर , तुम इस श्रृष्टि के  रचनाकार हो और  मैं भी एक छोटा सा कलाकार हूं , तेरे बनाए मिट्टी के पुतले  इंसान है  और मेरे बनाए मिट्टी के पुतले  बेजान है ।। हे ईश्वर , बहुत कष्ट होता है  ये देखकर , रूह  समाई  पुतला रूह समाई पुतले को धिक्कार कर घर से बाहर फेंकता है  और बेजान मिट्टी की मूरत को घर में लाकर पूजता है ।। हे ईश्वर ,  क्या फर्क है तेरी मिट्टी और  मेरी  मिट्टी  में ? मैं तो छोटा सा कलाकार बिज़नेस मैन हूं  और तु तो इस श्रृष्टि का रचनाकार सर्वशक्तिमान है ।। हे ईश्वर , फिर क्या फर्क है तेरी  मिट्टी और  मेरी  मिट्टी  में ? तेरे बनाए मिट्टी के पुतले कहलाते इंसान है  और मेरे बनाए मिट्टी के पुतले कहलाते भगवान है ।। हे ईश्वर क्या फर्क है तेरी मिट्टी और  मेरी  मिट्टी  में ? __विपिन दिलवरिया

" खूबसूरती निहारती आइने में " ( एसिड अटैक ) by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

Image
  " खूबसूरती निहारती आइने में " (  एसिड अटैक  ) खुशहाल  थी   मेरी  ज़िन्दगी  कुछ भी गम नहीं था जीने में हंसती   इठलाती  फिरती  थी कोई  खौफ  नहीं था  सीने में पिता की लाडली, मां की परी खूबसूरती  निहारती आइने में उम्र  बढ़   रही ,  जवानी  का  दौर कुछ दरिंदे जिनकी नज़रें मेरी ओर मैं नादान हर बात से अनजान मुझे  कुछ  खैरो - खबर  नहीं घबरा गई  मैं  उनको  देखकर घेर लिया मुझे  अकेला पाकर क्या - क्या  कहा  मैं  सुन  नहीं पाई मैं रोई चिल्लाई विनती की रो रोकर एक  दरिंदा  गुस्साया  मुझ पर फेंक  दिया  तेजाब  मेरे  ऊपर खुश  हो  रहे  दरिंदे  मुझे  देखकर मैं रह गई बेबस और लाचार होकर क्या कोई  गुनाह कर दिया था मैंने    उनको    जवाब   देकर कोई  तो  बताओ  मेरा कुसूर फिर    क्यों    दें     गए    वो  मुझे  ज़िन्दगी  भर  का नासूर कोन है मेरा दुश्मन कोई तो बताओ मेरी  जवानी , मेरा हुस्न या मेरा नूर किसे  दोष  दूँ  अपनी  बर्बादी  का सब कुछ खत्म हो गया पल भर में हंसती  खेलती  ज़िन्दगी  थी  मेरी गम ही गम भर दिए

" रूह भी तेरी मुझसे रूठ गई " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

" रूह भी तेरी मुझसे रूठ गई " रूह भी तेरी मुझसे रूठ गई  ना जाने ऐसी खता कोन सी हो गई , एक बार मेरा कुसूर तो बता जो तू मुझसे ऐसे रूठ गई , बड़ी सिद्दत से चाहा था मैंने तुझे ना जाने कमी ऐसी कोन सी हो गई जो तु  मुझे  ऐसे  छोड़  गई , क्या हुआ तेरे उन कसमें वादों का  जो तूने मुझसे किए थे जब , साथ जीने मरने की कसमें खाई वो तेरा प्यार था या तेरी बेवफाई , तेरी बेवफाई को सोचकर दिल में एक ख्याल आया हरजाई , एक नज़्म जरूर लिखूंगा बे हिसाब तेरा कुसूर लिखूंगा , जिसमे किस्सा होगा तेरी बेवफाई , खिलौना समझा मेरे दिल को  इस दिल के टुकड़े हजार कर गई , कितनी झूंठी होती है  ये मोहब्बत की कसमें वादें , वफा का नाम लेकर  बेवफाई का खंजर घोप गई , जाते - जाते एक बार  पलटकर तो देखती , तेरे जाने के साथ ही जान मेरी जिस्म से जुदा हो गई । By _ Vipin Dilwarya

" मेरे जीवन की डोर है तु , तुझ बिन अधूरा चमन हूं मैं " हिंदी कविता by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

" मेरे जीवन  की  डोर है तु "              " तुझ बिन अधूरा चमन हूं मैं " कली  है  तु , डाली  है  तु बगिया में खिलता कमल है तु , फूलों  सी  सजी  हो  जैसे तेरी  बगिया का  माली हूं  मैं , सूरजमुखी का  फूल  है  तु उगते  सूरज  की तपन हूं  मैं , मेरे जीवन  की  डोर  है  तु तुझ बिन अधूरा  चमन हूं  मैं  ।। नदियां है  तु , दरिया है  तु किनारा है तु  और समंदर हूं मैं , गरजते  कारे  बदरा हो जैसे सावन की पहली बरसात है तु , काश्मीर की गिरती बर्फ है तु ग्लेशियर की बढ़ती गलन हूं मैं , मेरे जीवन  की  डोर  है  तु तुझ बिन अधूरा  चमन हूं  मैं  ।। सुबह  है   तु , शाम  है  तु मदिरा है  तु  छलकता जाम हूं मैं , चांदनी रात की  चमक हो  जैसे तरों की महफ़िल का सितारा हूं मैं , कभी राधा तो कभी मीरा है तु दीवानी तु मेरी , तेरा सजन हूं मैं , मेरे जीवन  की  डोर  है  तु तुझ बिन अधूरा  चमन हूं  मैं  ।। By _ Vipin Dilwarya

" अकेला " by Vipin Dilwarya ( published by newspaper )

Image
"  अकेला  " निराश ना हो , कि  तु  अकेला है.... इंसान अकेला पैदा होता है और अकेला  मर  जाता है , मतलब का साथी है इंसान बुरे वक्त में साथ छोड़ जाता है निराश ना हो , कि  तु  अकेला है.... भीड़ बहुत दिखती है दुनिया में ये दुनिया लोगो का मेला है , इस दुनिया के मेले में  हर इंसान अकेला है । निराश ना हो , कि  तु  अकेला है.... शुक्रिया अदा कर उन लोगो का जो साथ छोड़ गए जरूरत पड़ने पर , उन लोगो ने तो सिखा दिया  मुझे मजबूत बना दिया अकेला होकर हालात से लडने पर निराश ना हो , कि  तु  अकेला है.... मोहताज नहीं होता संघर्षी किसी का साथ लेने का विश्वाश रख और संघर्ष कर संघर्ष में ही तो इंसान अकेला होता है निराश  ना  हो , कि तु अकेला है.... By _ Vipin Dilwarya

" अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं , मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

Image
"  अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं      मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं " अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं । उजागर नहीं करता  मैं  अपने  दर्द  को इस  दर्द  से तो मोहब्बत  सी  हो  गई  है , बड़े बेदर्द  है  इस  ज़माने के लोग सभी अपने दर्द  की  दवा मैं खुद बना लेता हूं , अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं । किसे बयां करूं मैं अपने गम को यहां कोई तकल्लुफ नहीं रखता इस जहां में , मुफलिसी  में  याद  किया  जिसे  भी वो पहले से ही अपना गम लिए बैठा है , ज़माने  के  रंजो  गम  को  देखकर  मेरे  गम  तो  फ़ीके  से  पड़  गए , लगता  है  बस  ये  गम  ही  अपने है अब गमो से ही मोहब्बत और बढ़ा लेता हूं , अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं । " दर्द-ए-गम " से भरी ए " गम-ए-ज़िन्दगी " शिकायत किससे करूं बस इतना बता , सभी अपना कहने वाले तो गैर हो गए कोई अपना ना रहा इस " गम-ए-दुनिया में &q

" हिंदी दिवस " by Vipin Dilwarya

  " हिंदी दिवस " हिन्दू मात्र एक धर्म नहीं हिंदी है हम हिन्दू हैं हम इसलिए मेरा देश हिंदुस्तान है , सब धर्मों को जोड़कर बना है मेरा हिंदुस्तान  इसलिए मेरा देश महान है , एकता का प्रतीक हिंदी है अनेक भाषाओं में हिंदी को बहुत सम्मान हैं , इसलिए देशवासियों को मातृभाषा हिंदी पर अभिमान है , हमारी मातृभाषा हिंदी  और एकता का प्रतीक हिंदी है , इसलिए मेरा देश हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान है , अनेकता में एकता को दर्शाता है सभी धर्मों में प्यार बढ़ाता है , ऐसा मेरा हिंदुस्तान है इसलिए तो मेरा देश महान है । 🙏हिंदी दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं 🙏            https://vipindilwarya.blogspot.com By _ Vipin Dilwarya

"" किन्नर का दर्द "" by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

""  किन्नर का दर्द "" मैं आदमी नहीं ,औरत भी नहीं , किन्नर  हूं  तो  क्या हुआ , क्या  मैं  कोई  इंसान  नहीं   ? पुरुष-स्त्री  से  मेरी तुलना नहीं किन्नर  है  मगर इंसान  है  हम , इस  समाज  में इंसान से बढ़कर तो कुछ नहीं । तुम्हारी खुशियों में सरींख होते दिल से देते दुआ और देते है बधाई फिर क्यों तुच्छ नजर से देखते हो मैं कोई छुआ छूत की बीमारी नहीं ? तुमसे  इतनी  सी  उम्मीद  है समाज  में  मिल  जाए  बस थोड़ा सी इज्ज़त और सम्मान ही । किन्नर बोल कर ठुकरा  दिया मुझे क्या समाज में मेरा कोई वजूद नहीं , आखिर  मैं  भी  तो  इंसान हूं क्या हम इज्ज़त के हकदार नहीं  ? हमसे क्यों मुंह फेरते हो जिस  मिट्टी  से  तू  बना  है क्या उस मिट्टी से मैं बना नहीं ? भगवान  ने  तुझे  बनाया और भगवान ने मुझे बनाया , इंसान है  तु  इंसान  हूं  मैं फिर समाज में मेरा क्यूं सम्मान नहीं ? https://vipindilwarya.blogspot.com __ विपिन दिलवारिया

"" ऐसा परिवर्तन किस काम का "" by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

Image
  "" ऐसा परिवर्तन किस काम का "" परिवर्तन संसार का नियम है हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। अधर्म का सर उठने लगा धर्म का नाम हो गया वीरान सा , जाति - धर्म पर झगड रहा ऊंच - नीच को मिटा ना सका , हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। बेटा बाप का ना रहा भाई-भाई का रिश्ता नाम का , पाल - पोशकर बड़ा किया जिस औलाद को मां - बाप का सहारा बन ना सका , हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। अत्याचार इतना बढ़ गया बहन बेटी का लिहाज ना रहा , मासूम बच्चियों को भी नोंच रहा इंसान में घुस गया हैवान सा , हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। माना कि ये कलियुग है क्या इस कलियुग में कोई कर्म नहीं इंसान का , ये दुनियां वो दुनियां ना रही जिसमे जन्म हुआ श्री राम और बुद्घ भगवान का , परिवर्तन संसार का नियम है हे ! भगवान इतना बता ऐसा परिवर्तन किस काम का ।। https://vipindilwarya.blogspot.com By _ Vipin Dilwarya