" मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )
" मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है "
मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है
कहीं सर्द हवा , कहीं गर्म हवा
कभी पानी में घुलती
तो कभी अग्नि में तपती है ,
ऊंचे - ऊंचे पर्वत मालाओं से
गंगा ,यमुना ,सरस्वती बहती है ,
मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है
कृषि प्रधान है देश मेरा ,
जय जवान, जय किसान
का है देश मेरा
जवानों के बलिदान
का है देश मेरा ,
किसानों के पसीने की
खुशबू इस मिट्टी में ,
जवानों के बलिदानी खून
की खुशबू इस मिट्टी में आती है ,
किसानों की सांसें मिट्टी से
किसानो का दिल है मिट्टी
मिट्टी में धड़कन बसती है ,
बारिश में भीगते ही
वो सोंधी - सोंधी खुशबू
महकती है ,
मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है
कहीं अडिग होकर ऊंची - ऊंची
इमारतों का बोझ सहती है
कहीं बंजर तो कहीं
उपजाऊ बन जाती है ,
मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है
मन्दिर और मस्जिद दोनों
को मेरे देश की मिट्टी रचती है ,
कभी मस्जिद के आंगन में
तो कभी मूर्ति में ढलती है ,
कब्र मुस्लिम की मिट्टी
में बनती
हिंदू को अग्नि मिट्टी के
ऊपर दी जाती ,
ये मिट्टी हिन्दू और मुस्लिम
को नहीं बाटती है ,
मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है
By _ Vipin Dilwarya
👌
ReplyDelete🙏🙏🙏
DeleteMere Desh ki mitti kuchh aisi hai superb 👌👌🔥
ReplyDeleteDhanyvad Bhai
Deletevry nice bro
ReplyDeleteThanks brother
DeleteNice line
ReplyDeleteThank u so much
Deletejai hind
ReplyDeleteThanks a lot
DeleteThank u Bhai
ReplyDelete