" मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

" मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है "


मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है
कहीं सर्द हवा , कहीं गर्म हवा
कभी पानी में घुलती 
तो कभी अग्नि में तपती है ,

ऊंचे - ऊंचे पर्वत मालाओं से 
गंगा ,यमुना ,सरस्वती बहती है ,

मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है

कृषि प्रधान है देश मेरा ,
जय जवान, जय किसान
का है देश मेरा 
जवानों के बलिदान
का है देश मेरा ,

किसानों के पसीने की
खुशबू इस मिट्टी में ,
जवानों के बलिदानी खून 
की खुशबू इस मिट्टी में आती है ,

किसानों की सांसें मिट्टी से
किसानो का दिल है मिट्टी
मिट्टी में धड़कन बसती है ,
बारिश में भीगते ही
वो सोंधी - सोंधी खुशबू 
महकती है ,

मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है

कहीं अडिग होकर ऊंची - ऊंची
इमारतों का बोझ सहती है
कहीं बंजर तो कहीं 
उपजाऊ बन जाती है ,

मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है

मन्दिर और मस्जिद दोनों
को मेरे देश की मिट्टी रचती है ,
कभी मस्जिद के आंगन में
तो कभी मूर्ति में ढलती है ,

कब्र मुस्लिम की मिट्टी
में बनती 
हिंदू को अग्नि मिट्टी के
ऊपर दी जाती ,
ये मिट्टी हिन्दू और मुस्लिम 
को नहीं बाटती है ,

मेरे देश की मिट्टी कुछ ऐसी है



By _ Vipin Dilwarya

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