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Showing posts from March, 2021

मनाओ ये होली ( hindi kavita ) __विपिन दिलवरिया

               मनाओ ये होली नये रंगो  को  मिलाकर मनाओ ये होली पुराने गमो को भुलाकर मनाओ ये होली जला डालो वो  सारे गिले शिकवे जो भी है आज सारे कलुष मिटाकर मनाओ ये होली गुम हो  गया  ज़िन्दगी की भाग दौड में घूम  रहा  ख्वहिशो  की  चादर ओढ के कर्म सारे दर्ज़ होते है उसकी किताब में फिर क्यों  जीना  किसी से मूँह मोड़ के कडवी बोली नहीं मीठी बनाओ ये बोली चलो  आज  खुलकर   मनाओ  ये होली जला डालो वो  सारे गिले शिकवे जो भी है आज सारे कलुष मिटाकर मनाओ ये होली __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

Part - 12 - Thoughtfull Shayari __Vipin Dilwarya

Thoughtfull Shayari (1) ना था मालूम  कि तू इतना बदल जाएगा,,! एक मेरे गिरने से तू इतना संभल जाएगा,,!! (2) ये कोन है जो उँचा उँचा बोल रहा है इन  फिज़ाओं में  ज़हर  घोल रहा है (3) माना सब रिश्तें पराये होते है लेकिन  भाई  , भाई  होते  है (4) मेरे घर का जो सबसे हसीं गहना है,,! वो मेरी बहना है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!! (5) जो  रिश्तें  सब  से  खास  होते है  उनमे सबसे पहले माँ-बाप होते है (6) संभालकर रखे थे जो हमनें, वो सिक्के बांट ले गये आईना तलाशते रहे हम, वो  शीशे  काट ले गये नावाक़िफ़ थे हम  मिज़ाज-ए-फ़ितरत-ए-इंसाँ से हम रिश्तें निभाते रह गये,  वो  हिस्से  बांट ले गये मिज़ाज-ए-फ़ितरत-ए-इंसाँ - मनुष्य के स्वभाव की अवस्था (7) वो  समन्दर* से  भी  गहरे  है,,! जिनमें कुछ अपनें भी चेहरे है,,!! (8) एक पल गम है , एक पल फ़न है तुम - तुम  हो  ,  तो  हम - हम  है क्या भरोसा  ज़िन्दगी  का , जीना है  तो आज जी लो कल तो एक भ्रम है (9) महँगा कर लो ख़ुद को अ दोस्त,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,! अक्सर लोग सस्ता समझकर छोड़ दिया करते है! (10) इंक़लाब की धरोहर है तू  आज़ादी  की  मोहर है तू लेकर चला था  जो  कारवां उस कारवां क

मैनें इक कविता लिखी है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

  मैनें इक कविता लिखी है मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर बीती बात लिखी है मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर जज्बात लिखी है कविता के हर लफ्ज़ में मैं हुँ मैनें सुबह और शाम लिखी है मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर गुजरती रात लिखी है __विपिन दिलवरिया 

हिस्से बांट ले गये ( शायरी ) __विपिन दिलवरिया

                  हिस्से बांट ले गये संभालकर रखे थे जो हमनें, वो सिक्के बांट ले गये आईना तलाशते रहे हम, वो  शीशे  काट ले गये नावाक़िफ़ थे हम  मिज़ाज-ए-फ़ितरत-ए-इंसाँ से हम रिश्तें निभाते रह गये,  वो  हिस्से  बांट ले गये __विपिन दिलवरिया