मनाओ ये होली ( hindi kavita ) __विपिन दिलवरिया
मनाओ ये होली नये रंगो को मिलाकर मनाओ ये होली पुराने गमो को भुलाकर मनाओ ये होली जला डालो वो सारे गिले शिकवे जो भी है आज सारे कलुष मिटाकर मनाओ ये होली गुम हो गया ज़िन्दगी की भाग दौड में घूम रहा ख्वहिशो की चादर ओढ के कर्म सारे दर्ज़ होते है उसकी किताब में फिर क्यों जीना किसी से मूँह मोड़ के कडवी बोली नहीं मीठी बनाओ ये बोली चलो आज खुलकर मनाओ ये होली जला डालो वो सारे गिले शिकवे जो भी है आज सारे कलुष मिटाकर मनाओ ये होली __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )