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Showing posts from September, 2020

किसे पता था मिट्टी अन्धेरें में जला दी जायेगी ( Justice_For_ManishaValmiki ) ( हाथरस गैंग रेप प्रकरण ) __विपिन दिलवरिया

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   किसे पता था मिट्टी अन्धेरें में जला दी जायेगी     ( Justice_For_ManishaValmiki )      ( हाथरस गैंग रेप प्रकरण ) किसे  पता  था  ये   घड़ी  विकट  बन जायेगी कुछ   गन्दी   नज़रें   मेरे  ऊपर  तन   जायेगी किसे   पता   था   आबरू   लूट   ली  जायेगी  गला काटकर  रीढ  की  हड्डी  तोड दी जायेगी पहले  नोच   नोचकर  खाया   सबने  मुझको किसे पता  था  बाद  जीभ  काट  दी  जायेगी खूब   लड़ी    मैं    ज़िन्दगी   मौत   से   मगर किसे पता था  ज़िन्दगी , मौत  से हार जायेगी दिन  के   उजालो   में  लुटी  थी  मेरी  आबरू किसे पता था मिट्टी अन्धेरें में जला दी जायेगी फिर होगी बहस  फिर  होंगे  आरोप प्रत्यारोप फिर से मीडिया पर जुबानी जंग छिड़ जायेगी इन्साफ मिले  या  ना  मिले  किसको  पड़ी है मगर सारे दलो में  सियासी जंग छिड़ जायेगी कुछ  दिन   गूंजेगा  शोर  गलियारों , चौबरों में फिर होंगे धरने और मोमबत्ती जलायी जायेगी हौंसले  बढ़ते  रहेंगे  "दिलवरिया" , जब  तक  बलात्कारियों  को  सियासी पनाह दी जायेगी रुकेंगे  नहीं बलात्कार , जब  तक  लटकाकर च

सोशल मीडिया वरदान है या अभिशाप ( निबंध ) ( लेख ) __विपिन दिलवरिया

                  सोशल मीडिया वरदान है या अभिशाप 21 वीं सदी , सोशल मीडिया का नया दौर यह एक विशाल नेटवर्क है सोशल मीडिया दुनियाँ के लोगों को एक जगह मिलानें का कार्य करता है। सोशल मीडिया हमारे जीवन में एक बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है जिसके द्वारा किसी भी प्रकार की जानकारी बहुत ही सरलता व सहजता से लोगों तक बहुत तेजी से पहुंचाने का एक शशक्त संचार माध्यम है। लेकिन सोशल मीडिया को लेकर बहुत सारे तर्क-वितर्क किये गये है इसको लेकर कुछ लोगों ने इसे वरदान के रूप में देखा है तो कुछ लोगों ने इसे अभिशाप कहा है। सोशल मीडिया की सकारात्मकता :- * सोशल मीडिया किसी भी प्रकार की घटनाएं, समाचार एवं जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है और इसके द्वारा बहुत कम समय में जानकारी को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। * सोशल मीडिया लोगों को जोडनें का कार्य करता है यह समाज के सामाजिक विकास में अपना योगदान देता है, इसके माध्यम से किसी भी मुद्दे पर लोगों के मध्य आसानी से वार्ता की जा सकती है। * समाज में होने वाली क्रुतियों के प्रति जागरुकता फैलानें के लिये यह एक अच्छा साधन है। * यह शिक्षा प्राप्त करने में मद

Part - 8 - Thoughtfull Shayari __ Vipin Dilwarya

        Part - 8 - Thoughtfull Shayari (1) एक एक ईंट से मिलकर मकान बनता है,,,!! और छोटी-छोटी कोशिशों से ही इन्सान महान बनता है,,,!! (2) मेरी कहानी मेरी नहीं तुमसे मिलकर बनी है बिछड़कर लिखी थी कुछ शायरियाँ आज पूरा शहर कहता है तुमसा कोई सुख़नवर नहीं है (3) कल कहीं नहीं कल एक धोखा है जो करना है करले आज मौका है (4) पैसों से मकान बनाया जा सकता है,,,!! "घर" बनानें के लिये परिवार की जरुरत पडती है,,,,,!! पैसों  से  डर  बनाया  जा सकता है,,,!! "इज़्जत" बनानें के लिये व्यवहार की जरुरत पडती है,,,,!! (5) स्याही बनकर तकदीर ज़िन्दगी के पन्नो पे इस तरह बिखरी कुछ पन्ने सँवर गये कुछ कोरे रह गये ख्वाबों की दूनियाँ से कुछ सपनें चुराये थे मैनें कुछ अधुरे रह गये कुछ पूरे हो गये (6) "ज़िन्दगी",,,,,,,,क्या ये सीरत है,,? सूरत-ए-आईना खूब दिखाते थे,,,!! "हक़ीकत",,,,क्या ये ज़िन्दगी है,,? ख्वाब तो बड़े हसीन दिखाते थे,,,!! (7) बुरा आदमी को कहता हुँ ना औरत को कहता हुँ बुरा मैं  सिर्फ गंदी  मानसिक सोच  को कहता हुँ __विपिन दिलव

ज़िन्दगी भी मुकर गई ( शायरी ) __विपिन दिलवरिया

                    ज़िन्दगी भी मुकर गई  ज़िन्दगी  की  तलाश  में ज़िन्दगी गुज़र गई  दौडता  रहा  घड़ी  का  पहियां ताऊम्र मेरे साथ  वक्त   पड़ा   घड़ी   भी  साथ छोड़कर निकल गई  गुमाँ  करता   रहा  उम्र  भर  जिस  ज़िन्दगी पर एक उम्र आई तो हमसे  ज़िन्दगी  भी  मुकर गई  __विपिन दिलवरिया 

बात खानदानी करता हुँ ( शायरी ) __विपिन दिलवरिया

                   बात खानदानी करता हुँ इंसानों से मैं बात इंसानी करता हुँ बद्जुबानों से मैं बात बद्जुबानी करता हुँ अपनी औकात से जो बाहर बात करते है उनसे मैं  बात  खानदानी करता हुँ रूह से मोहब्बत उसको रास ना आई आज कल उनसे मैै बात ज़िस्मानी करता हुँ __विपिन दिलवरिया 

सबके साथ छूट गये ( hindi kavita ) __विपिन दिलवरिया

सबके साथ छूट गये दिल के सारे भ्रम टूट गये जब अपने  सारे रूठ गये मौज़-ए-ज़िन्दगी  साथ खड़े दुख में सबके साथ छूट गये कड़ी   धूप  में    छांव   दी   जिसने काट दिया जब पत्ते उसके सूख गये जिसके लिये  सब कुछ भुलाया था  आज   वो   भी    हमें   भूल   गये __विपिन दिलवरिया 

कोरोना काल कहुँ या भुखमरी काल ( आज की परिस्थिती पर एक छोटा सा लेख ) __विपिन दिलवरिया

              कोरोना काल कहुँ या भुखमरी काल  आज हमारा देश कोरोना काल से गुज़र रहा है या कहुँ कि भुखमरी काल से गुज़र रहा है । देश की अर्थव्यवस्था पुर्ण रूप से चरमरायी हुई है, बेरोजगारी आसमान छू रही है युवा वर्ग , मजदूर वर्ग , छोटे और मँझले व्यापारीयों के सब्र का बांध टूट रहा है । अधिकांश कारोबारी अपनी क्षमता से बहुत कम पर संचरित करने पर मजबूर है और इस दौरान बहुत से उद्योग पुर्णबन्दी की मार झेल रहें है  अगर बात की जाये लोगों के रोजमर्रा खर्च की तो वह बरकरार है और आमदनी में बहुत तेजी से गिरावट आई है । इन परिस्थितियों में , एक आम आदमी को दो वक्त की रोटी जुटाना बहुत मुश्किल हो गया है , इसलिये कोरोना काल को भुखमरी काल कहना कोई हैरानी की बात नहीं, हालांकि जब से अनलॉक हुआ है जब से आम जनजीवन को पटरी पर लाने की पूर्णत: कोशिश की जा रही है । भारत के अधिसंख्य लोगों को उनकी क्षमता से कमतर काम करनें के लिये मजबूर है । ऐसे में सरकार को जहां सम्भव हो सके वहाँ रोजगार के अवसरों को बढावा देना चाहिए । अगर ऐसा नहीं किया गया तो दिन - प्रतिदिन असमाजिक गतिविधियां , आपराधिक मामलों में वृद्धि होना स्वाभविक

मैं फ़कत मुस्कुरा देता हुँ ( गज़ल )( शायरी ) __विपिन दिलवरिया

                  मैं फ़कत मुस्कुरा देता हुँ  अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लेता हुँ,! हौंसलों से  मैं  हालातों  को  गुलाम बना देता हुँ!! मिज़ाज़  है  मेरा  चुपचाप  सा  रहने का मगर,,! अपना पयाम*  मैं अपने  कलाम* से  देता  हुँ,!! चिल्लाकर मैं  दबाऊँ  ये  मेरी  फितरत  नहीं,,! कुछ जवाब मैं अपनी खमोशियों से दे देता हुँ,!! मेरे  लहजे  को  वो  मेरा  गुस्सा  समझतें  है,,! जब गुस्सा आता है  मैं फ़कत मुस्कुरा देता हुँ,!! यूं तो फसानें खूब  लिखे  हमनें मोहब्बतों के,,! बात जब ख़ुद की आये तो कलम रोक देता हुँ,!! उसको लगता  है  उसकी जरुरत  नहीं  मुझे,,! कैसे कहुँ  उसके बिना मैं अकेले में रो देता हुँ,!! बयां नहीं  करता  "दिलवरिया" अपनी कहानी,,! दिल का दर्द जुबाँ पे आने से पहले रोक देता हुँ!! पयाम - संदेश कलाम - वचन, उक्ति ,बातचीत __विपिन दिलवरिया

इन्सान कभी ना बनना चाहे ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

          इन्सान कभी ना बनना चाहे  जग में ऊँचा नाम हो जाये, पर  काम कभी  ना  करना  चाहे,,!! जीतना चाहे मौत से भी,  पर ख़ुद से  कभी ना लड़ना चाहे,,!! सब चाहे क्रांति आये, पर  भगतसिंह  कोई  ना  बनना चाहे,,!! सबको  देशभक्ति  का   पाठ   पढाये , पर ख़ुद पासबान भी ना बनना चाहे,,!! धर्मों की जो लड़ाई लड़ते, गीता क़ुरान कभी ना पढना चाहे,!! बनना चाहे हिन्दु मुस्लिम, पर इन्सान कभी ना बनना चाहे,,!! चाहता है बस पुण्य कमाए, पर  दान  कभी  ना  करना चाहे,,!! वधु  चाहिये  सबको सीता   जैसी  "दिलवरिया" पर ख़ुद राम कभी ना बनना चाहे,!! __विपिन दिलवरिया 

शिक्षक ( शिक्षक क्या है ? ) __विपिन दिलवरिया

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शिक्षक   शिक्षक क्या है ? शिक्षक निराकार है शिक्षक का नाम संस्कार है शिक्षक फ़ज़ल है शिक्षक कोरे कागज़ को  ज्ञान रुपी शब्दो से सवारनें वाली एक कलम है शिक्षक जीवन की उम्मीद अच्छे भविष्य की आस है शिक्षक चिराग है शिक्षक संगतराश है शिक्षक जलते दिये की लॉ  जीवन को उज्ज्वल करती मशाल है शिक्षक अदब की पहचान है शिक्षक कोई इन्सान नहीं  इन्सान रुपी भगवान है __विपिन दिलवरिया  अदब  -  सभ्यता , आदर सत्कार फ़ज़ल - श्रेष्ठता , गुण  निराकार - आकाश , ईश्वर को भी निराकार कहा गया है

छोड़ दी वो राह-ए-मोहब्बत (गज़ल) (shayarai) __विपिन दिलवरिया

                          छोड़ दी वो राह-ए-मोहब्बत ना जाने क्यूं  खफ़ा  मुझसे  मेरा ख़ुदा हो गया,,! शिद्दत से चाहा जिसे वही मुझसे ज़ुदा हो गया,,!! एक हम है कि  हम किसी और के हो ना सके,,! एकवो है किसी और केसाथ शादीशुदा हो गया,!! कैसे कह दूँ मैं  उसकी मोहब्बत को मुकम्मल,,! मुझसे किये वादें तोड़कर  जो बेजुबाँ हो गया,,!! मोहब्बत  जो   की   हमनें  तो  ज़ुर्म  हो गया,,! वो करके  बेदाद-ए-इश्क़* बे-गुनाह  हो गया,,!! छोड़   दी   वो   राह - ए - मोहब्बत मैनें अब,,! जिन  राहों  पे "दिलवरिया" गुमशुदा हो गया,,!! बेदाद-ए-इश्क़ = प्रेम का ज़ुल्म/ अत्याचार __विपिन दिलवरिया