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Showing posts from 2020

इश्क़ के चक्कर ने हाल बड़े बेहाल कर दिये __विपिन दिलवरिया

  इश्क़ के चक्कर ने हाल बड़े                   बेहाल कर दिये जिसके  लिये  हमनें  ख़याल  बड़े कर दिये दो लफ्ज़ कहे  उसनें  बवाल खड़े कर दिये ज़मानें के फिक्र  छोड़  संभाला  था उनको सरे बाज़ार उसने हम कंगाल खड़े कर दिये सिवा दर्द के कुछ ना मिला इस मोहब्बत में इश्क़ के चक्कर ने हाल बड़े बेहाल कर दिये __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

ये चादर सियासत की है ( शायरी ) ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

           ये चादर सियासत की है  कहीं कफनखसोटी तो  कहीं छीनाखसोटी नज़र आती है ये चादर सियासत की है भाई, किसी की बड़ी तो  किसी की छोटी नज़र आती है पक्ष में हो तो उसकी दी हुई रोटी, विपक्ष में हो तो  उसकी की हुई खोटी नज़र आती है ये खुदग़र्ज़ी बड़ी खराब है भाई, इसमें लंगोटी धोती  और धोती लंगोटी नज़र आती है बात कड़वी हो तो निभा लेना बचके रहना वहाँ से जहाँ भी चोटीपोटी नज़र आती है बेईमान है ये  सियासत और सियासी लोग, बेच देते है ईमान जहाँ रकम मोटी नज़र आती है __विपिन दिलवरिया ( मेरठ ) चोटीपोटी - चिकनी चुपड़ी बात ,                  इधर उधर की बात कफनखसोटी - कंजूसी , सुमडापन  छीनाखसोटी -  छीना झपटी

यहाँ माँ बिन कोई कोन है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

        यहाँ माँ बिन कोई कोन है माँ  प्रीत  है   माँ  मनमीत  है ! माँ की ममता बड़ी निराली है !! माँ की ममता  से जो वंचित  हुआ, जीवन  उसका   खाली   खाली है !! माँ  गीत   है   माँ   संगीत  है ! माँ  लोरी माँ  ही  कव्वाली है !! माँ  हर   मौसम   हर   त्योहार  है ! माँ   होली   माँ    ही   दिवाली  है !! जो  भी   दिया  मुझे   मेरी  माँ ने,  माँ की  हर  चीज  मैंने संभाली है !! माँ   लक्ष्मी    है   ,  माँ   पूजा  है ! माँ सरस्वती  माँ  ही  शेरावाली है !! माँ बहती  धारा  माँ  शान्त  पानी !  माँ दु:ख हरनी माँ ही रखवाली है !! देखी माँ  ने  जो  राह-ए-ज़िन्दगी, लगता  जैसे   मैंने   देखिभाली है !! माँ   वसुधा  है  माँ  व्योम है ! माँ   कोलाहल   माँ  मौन  है !! माँ  वासर  है   माँ  यामा  है ! माँ   विधु   है   माँ  स्योन  है !! माँ की पूजा सबसे बड़ी है जग में, बाकी सब की पूजा  यहाँ गौण है !! किसका वजूद क्या है"दिलवरिया", यहाँ   माँ   बिन   कोई   कोन  है !! "  कवि " विपिन दिलवरिया ( मेरठ )                             *** वसुधा - धरती  कोलाहल - ध्यान बटोरने वाली स्योन - सुर्य , किरण 

Part - 6 - Love shayari by Vipin Dilwarya

   Part - 6 - Love shayari (1) मोहब्बत किस  से  है  बड़ी  उलझन में  बैठा हुँ  याद उसकी आती है और मोबाइल उठा लेता हुँ (2) ज़िन्दगी पूरी बर्बाद हो गयी संभला ही था कि मोहब्बत फिर  से  एक  बार हो गयी (3) तुझे अपना बनाकर मैं रख लूँ   खुशियाँ देदूँ तुझे सारे जहाँ की  और गम को छुपाकर मैं रख लूँ  चिराग़ मोहब्बत का रौशन रहे रोशनी तेरे जीवन में भर दूँ और अंधेरा चुराकर मैं रख लूँ  (4) दो लफ्ज़ नहीं तु पूरी रुबाई है मेरे दिल में बस तु ही समाई है सब कुछ गवांया इस बाज़ार-ए-इश्क़ में  एक बस तु ही तो मेरी कमाई है (5) चाहकर छोड़ देने को  इश्क़ नहीं कहते,,,! छोडकर भी जो चाहे उसे इश्क़ कहते है,,!! (6) ये ज़मीन मेरा बिस्तर  आस्माँ मेरा कम्बल हो जाये कुछ भी तो नहीं चाहता  ज़िन्दगी से,पर तु मिल जाये  तो ज़िन्दगी मुकम्मल हो जाये (7) इश्क़ के राग से नहीं चलती है ये ज़िन्दगी  त्याग से चलती है (8) मैं तेरे लिये  सब कुछ कर सकता हुँ बस मर नहीं सकता,,,,,,!! मैं मर गया तो तेरे लिये  सब कुछ नहीं कर सकता,,,!! (9) आज  तर्क-ए-मोहब्बत  समझ में आया आज किसी ने वफ़ा  का किस्सा सुनाया खो गयी  थी  जो  कहीं  गुमनाम रहों पर  आज किसी ने मोह

Part - 7 - Heart broken shayari __Vipin Dilwarya

  Heart broken shayari (1) जब जब जिससे उम्मीद की  तब तब टूटकर बिखरा हुँ जख्म भी अब  तो मोहब्बत कर बैठा मुझसे तभी तो इतने  जख्म लेकर भी खुश दिखरा हुँ (2) ना कर बदनाम यूं ज़माने में एक उम्र लगती है इज़्जत कमानें में इतनी तोहमते ना लगा मेरे ऊपर कि ज़िन्दगी गुज़र जाये खुद को बेकसूर बताने मे (3) भरी महफ़िल उसनें इल्ज़ाम कुछ यूं लगया,,,,,!! मुझको गुनाहगार और ख़ुद को बेकसूर बताया,!! (4) आज  कल  वफाओं  से   हिजाब  कर  रहा हुँ,! उस ख्वाब सी  ज़िन्दगी का हिसाब कर रहा हुँ,!! आबाद हुई थी जो उसकी मोहब्बत से ज़िन्दगी,!  उस  आबाद  ज़िन्दगी  को  बर्बाद  कर  रहा हुँ,!! हिजाब - पर्दा  (5) रहगुज़र हमें मालूम है हमनें ख़ुद ज़िन्दगी दर-बदर की है,,!! मेरी बर्बादी बयां करती है हमनें  मोहब्बत किस  क़दर की है,,!! (6) ऐ खुशी अब मैं तेरा ना रहा,,,,,,,,,,,,,,,!! मैं नीलाम हो चुका हुँ ग़म के बाज़ार में,,!! (7) एक एक पल फुरक़त में कैसे आगे बढता है,,! और वो कहते है कि हमे क्या फर्क पड़ता है,,!! फुरक़त - वियोग, जुदाई (8) जिसे  होना था  दर - ओ - दीवारों  में वो   नीलाम     हो   रहा   बाज़ारों  में किस कदर बिगड़ा है आज ये मौसम -ए-मिज़ाज़

आज क्यों सड़कों पर किसान है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

  आज क्यों सड़कों पर किसान है रसना   छप्पर   और   कच्चा   आँगन, टूटी  चप्पल  हाथ  में  बैल  की तान है,,!! फटी  धोती  टूटी  खाट  जिसकी यहाँ, समझो  वही  मेरे  देश  का  किसान है,,!! वफ़ा है मिट्टी से  मिट्टी उसकी आन है, यही मेरे देश के किसान की पहचान है,,!! उमड़ पड़ी है भीड़ सडकों पर देश की, सब कुछ  देखकर  भी  वो अनजान है,,!! ठिठुरती रात  और  हथेली पर प्राण है, सड़के  हुई  गुलज़ार   सहरा  वीरान है,,!! चीख चीखकर पूछ रहा है  वतन मेरा, क्यों सूने जंगल सूने  खेत खलिहान है,,? किस कदर बिगड़ा है आज ये मौसम-ए -मिज़ाज़ , यहाँ  हर  किसान परेशान है,,!! रोज़  खुदकुशी  कर  रहे  किसान यहाँ, बस कहने को अन्नपूर्णा और भगवान है,,!! गर सब कुछ ठीक है यहाँ अ हुक्मराँ, फिर आज क्यों सड़कों पर किसान है,,? कुछ तो हुआ है यहाँ  पूछ "दिलवरिया", आखिर क्यों देश का हुक्मराँ बेजुबान है,,? रसना - पानी रिसना सहरा - जंगल __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

Part - 9 - Thoughtfull Shayari __Vipin Dilwarya

    Thoughtfull Shayari (1) शाम यूं ही नहीं ढलती शाम ढलती है तो रात होती है बिगड़ना कोई बुरी बात नहीं बिगडते है बदल तो बरसात होती है बेवजह नहीं निकलती कोई बात जुबाँ से, हर बात में कुछ बात होती है (2) एक बात बताओ ना चाहते क्या हो ये बताओ ना शहीद हुए है जवान हमारे उनको इन्साफ दिलाओ ना पीस, शान्ती, चैन, अमन,  कब तक निभाओगे  छोडों ये अमन की बात  उसकी औकात दिखाओ ना (3) ये शाम दुल्हन सी कुछ ऐसे सज़ आई है,,,,,,,,,,!! मानो भोर की पहली किरण बारात लेकर आई है,!! (4) वो दूर खड़ा जो प्यारा सा मुखड़ा है,, वो मुखड़ा  मेरे  ज़िगर का टुकड़ा है,,😘😘 (5) सलीका सिखाते रहे जो खुशियों का ज़िन्दगी भर,,!! वो सबसे  महगें  बिके  है आज गम के बाज़ार में,,!! (6) कुछ तो बात है जो तेरा साथ है,,!! वरना लकीरे भी मेरे खिलाफ़ है,,,!! (7)                          ***   ए मुंतशिर तुमसे हमसा, हर कोई                  मुताशिर  नहीं  बन  सकता,,,   सब, सब कुछ बन सकते है मगर                  कोई मुंतशिर नहीं बन सकता,,,                                                *** (8) जो चाहनें वाले है आइये हम नजरें बिछायें बैठे है,,,,, दुश्मनी प

याद तेरी आती है बहुत ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

           याद तेरी आती है बहुत खुश हो जाता ज़र्रा ज़र्रा  दीवारें गुनगुनाती है बहुत घर के मेरे हर कौने को खुशबू तेरी महकाती है बहुत आ जाओ तुम लौटकर  याद तेरी आती है बहुत * * सूना है कमरा सूना है वो बिस्तर  जैसे फूलों से उड़ चले  हो तीतर  याद आती वो बाते  करते जो हम रात भर याद आती वो रातें  साथ जो गुज़ारी है बहुत आ जाओ तुम लौटकर  याद तेरी आती है बहुत * * गुज़रा जब जब उन रहों को याद  करता  तेरी  बाहों  को बाहों में आकर तेरा मिलना महसूस करता तेरी आहों को आती हो जैसे ही ख्वाबों में धड़कन मेरी बढ़ जाती है बहुत आ जाओ तुम लौटकर  याद तेरी आती है बहुत * * कह जाती है कानों में ये हवा मुझे जलाती है बहुत मुश्क़िल है बिछड़ के जीना  याद तेरी सताती है बहुत अधूरा है तुम बिन"दिलवरिया" बातें तेरी तडपाती है बहुत आ जाओ तुम लौटकर  याद तेरी आती है बहुत __ विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

ख़ुद को बदनाम भी कर दिया ( गज़ल ) __विपिन दिलवरिया

  ख़ुद को बदनाम भी कर दिया   कोई  नाता ना  था जिसका  मैखानें से उसनें वहाँ अपना मुक़ाम भी कर दिया ज़ाम के नाम से  भी  अनजान  था जो उसने   ज़ाम  पे  ज़ाम  भी  कर  दिया जितना   बचाया  था   ज़मानें   भर  से  उसनें  ख़ुद  को  सरेआम भी कर दिया चाहत जो भी हुई पाने की, उसके लिये उसनें  सुबह  को  शाम  भी  कर  दिया लाख कोशिशे  की  समझानें  की मगर जो ना करना था वो काम भी कर दिया जितना किया  था  नाम  ज़मानें भर में उसनें  ख़ुद को  बदनाम भी  कर दिया  आँख     खुली     तो     ऐसी     खुली  उसनें यहाँ सब कुछ दान भी कर दिया इतना आसाँ   नहीं  किसी की फितरत  को     समझना     यहाँ    "दिलवरिया" बचाकर लाया था जो मुझे ज़मानें भर से उसने  ही  कत्ल-ए-आम  भी  कर  दिया मुक़ाम - पड़ाव , घर  __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

हँसता खेलता परिवार बड़ा खुश था ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

हँसता खेलता परिवार बड़ा खुश था एक  खोली थोडा  दु:ख था सबका  साथ  बड़ा सुख था माता - पिता     और     भाई - बहन हँसता खेलता परिवार बड़ा खुश था खूब  कमाई    धन    दौलत  ज़िन्दगी के  दु:ख  छँट  गये घर आई  भौजी  बहन  गई ससुराल  एक पौध तो लगाई पर पेंड़ कट गये खूब सजा था  'शाखें गुल सा' उस घर के सारे फूल छँट गये रिश्ते बरसते थे जिस आस्माँ से मगर आज  रिश्तो  के सारे बादल छँट गये जग  नाम था जिन रिश्तो का वो रिश्ते बस नाम के बच गये हाथ फैल  गया  बन्द मुट्ठी खुल गई फैल गई आँगनाई पर चूल्हे बँट गये खोली बन गयी  कोठी मगर सबके  यहाँ  कमरे  बँट  गये थी गरीबी रिश्ते अनमोल थे "दिलवरिया" आई अमीरी  तो रिश्तो  के मोल घट गये __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

कदम-कदम पे आफ़त हो जाती है ( गज़ल ) __विपिन दिलवरिया

  कदम-कदम पे आफ़त हो जाती है  खामोश रहता हुँ तो  खिलाफ़त हो जाती है बोलनें लगता  हुँ  तो  अदावत* हो जाती है मेरी  तकदीर   मेरे  खिलाफ़   इस  कदर है मैं साँस  भी लेता  हुँ  तो आहट हो जाती है झूँठ की  ताजपोशी करती है दुनियाँ , यहाँ सच बोलने  वालों  की बगावत हो जाती है ये कलयुग  है  यहाँ  ईमानदारी  को मनाही  और  बेईमानी  को   इजाज़त  हो  जाती है मरते देखा है  मैनें सच्चे  इश्क़ में लोगों को कैसे करू सच्चा  इश्क़  आदत हो जाती है राह-ए-दहर*इतनी आसाँ नहीं "दिलवरिया" इसमें  कदम - कदम पे आफ़त हो जाती है __विपिन दिलवरिया  बगावत  -  विद्रोह अदावत  -  शत्रुता , दुश्मनी राह-ए-दहर - जीवन का मार्ग मनाही  -  मना करने का भाव

किसे पता था मिट्टी अन्धेरें में जला दी जायेगी ( Justice_For_ManishaValmiki ) ( हाथरस गैंग रेप प्रकरण ) __विपिन दिलवरिया

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   किसे पता था मिट्टी अन्धेरें में जला दी जायेगी     ( Justice_For_ManishaValmiki )      ( हाथरस गैंग रेप प्रकरण ) किसे  पता  था  ये   घड़ी  विकट  बन जायेगी कुछ   गन्दी   नज़रें   मेरे  ऊपर  तन   जायेगी किसे   पता   था   आबरू   लूट   ली  जायेगी  गला काटकर  रीढ  की  हड्डी  तोड दी जायेगी पहले  नोच   नोचकर  खाया   सबने  मुझको किसे पता  था  बाद  जीभ  काट  दी  जायेगी खूब   लड़ी    मैं    ज़िन्दगी   मौत   से   मगर किसे पता था  ज़िन्दगी , मौत  से हार जायेगी दिन  के   उजालो   में  लुटी  थी  मेरी  आबरू किसे पता था मिट्टी अन्धेरें में जला दी जायेगी फिर होगी बहस  फिर  होंगे  आरोप प्रत्यारोप फिर से मीडिया पर जुबानी जंग छिड़ जायेगी इन्साफ मिले  या  ना  मिले  किसको  पड़ी है मगर सारे दलो में  सियासी जंग छिड़ जायेगी कुछ  दिन   गूंजेगा  शोर  गलियारों , चौबरों में फिर होंगे धरने और मोमबत्ती जलायी जायेगी हौंसले  बढ़ते  रहेंगे  "दिलवरिया" , जब  तक  बलात्कारियों  को  सियासी पनाह दी जायेगी रुकेंगे  नहीं बलात्कार , जब  तक  लटकाकर च

सोशल मीडिया वरदान है या अभिशाप ( निबंध ) ( लेख ) __विपिन दिलवरिया

                  सोशल मीडिया वरदान है या अभिशाप 21 वीं सदी , सोशल मीडिया का नया दौर यह एक विशाल नेटवर्क है सोशल मीडिया दुनियाँ के लोगों को एक जगह मिलानें का कार्य करता है। सोशल मीडिया हमारे जीवन में एक बहुत बड़ी भूमिका निभा रहा है जिसके द्वारा किसी भी प्रकार की जानकारी बहुत ही सरलता व सहजता से लोगों तक बहुत तेजी से पहुंचाने का एक शशक्त संचार माध्यम है। लेकिन सोशल मीडिया को लेकर बहुत सारे तर्क-वितर्क किये गये है इसको लेकर कुछ लोगों ने इसे वरदान के रूप में देखा है तो कुछ लोगों ने इसे अभिशाप कहा है। सोशल मीडिया की सकारात्मकता :- * सोशल मीडिया किसी भी प्रकार की घटनाएं, समाचार एवं जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है और इसके द्वारा बहुत कम समय में जानकारी को लोगों तक पहुंचाया जा सकता है। * सोशल मीडिया लोगों को जोडनें का कार्य करता है यह समाज के सामाजिक विकास में अपना योगदान देता है, इसके माध्यम से किसी भी मुद्दे पर लोगों के मध्य आसानी से वार्ता की जा सकती है। * समाज में होने वाली क्रुतियों के प्रति जागरुकता फैलानें के लिये यह एक अच्छा साधन है। * यह शिक्षा प्राप्त करने में मद

Part - 8 - Thoughtfull Shayari __ Vipin Dilwarya

        Part - 8 - Thoughtfull Shayari (1) एक एक ईंट से मिलकर मकान बनता है,,,!! और छोटी-छोटी कोशिशों से ही इन्सान महान बनता है,,,!! (2) मेरी कहानी मेरी नहीं तुमसे मिलकर बनी है बिछड़कर लिखी थी कुछ शायरियाँ आज पूरा शहर कहता है तुमसा कोई सुख़नवर नहीं है (3) कल कहीं नहीं कल एक धोखा है जो करना है करले आज मौका है (4) पैसों से मकान बनाया जा सकता है,,,!! "घर" बनानें के लिये परिवार की जरुरत पडती है,,,,,!! पैसों  से  डर  बनाया  जा सकता है,,,!! "इज़्जत" बनानें के लिये व्यवहार की जरुरत पडती है,,,,!! (5) स्याही बनकर तकदीर ज़िन्दगी के पन्नो पे इस तरह बिखरी कुछ पन्ने सँवर गये कुछ कोरे रह गये ख्वाबों की दूनियाँ से कुछ सपनें चुराये थे मैनें कुछ अधुरे रह गये कुछ पूरे हो गये (6) "ज़िन्दगी",,,,,,,,क्या ये सीरत है,,? सूरत-ए-आईना खूब दिखाते थे,,,!! "हक़ीकत",,,,क्या ये ज़िन्दगी है,,? ख्वाब तो बड़े हसीन दिखाते थे,,,!! (7) बुरा आदमी को कहता हुँ ना औरत को कहता हुँ बुरा मैं  सिर्फ गंदी  मानसिक सोच  को कहता हुँ __विपिन दिलव

ज़िन्दगी भी मुकर गई ( शायरी ) __विपिन दिलवरिया

                    ज़िन्दगी भी मुकर गई  ज़िन्दगी  की  तलाश  में ज़िन्दगी गुज़र गई  दौडता  रहा  घड़ी  का  पहियां ताऊम्र मेरे साथ  वक्त   पड़ा   घड़ी   भी  साथ छोड़कर निकल गई  गुमाँ  करता   रहा  उम्र  भर  जिस  ज़िन्दगी पर एक उम्र आई तो हमसे  ज़िन्दगी  भी  मुकर गई  __विपिन दिलवरिया 

बात खानदानी करता हुँ ( शायरी ) __विपिन दिलवरिया

                   बात खानदानी करता हुँ इंसानों से मैं बात इंसानी करता हुँ बद्जुबानों से मैं बात बद्जुबानी करता हुँ अपनी औकात से जो बाहर बात करते है उनसे मैं  बात  खानदानी करता हुँ रूह से मोहब्बत उसको रास ना आई आज कल उनसे मैै बात ज़िस्मानी करता हुँ __विपिन दिलवरिया 

सबके साथ छूट गये ( hindi kavita ) __विपिन दिलवरिया

सबके साथ छूट गये दिल के सारे भ्रम टूट गये जब अपने  सारे रूठ गये मौज़-ए-ज़िन्दगी  साथ खड़े दुख में सबके साथ छूट गये कड़ी   धूप  में    छांव   दी   जिसने काट दिया जब पत्ते उसके सूख गये जिसके लिये  सब कुछ भुलाया था  आज   वो   भी    हमें   भूल   गये __विपिन दिलवरिया 

कोरोना काल कहुँ या भुखमरी काल ( आज की परिस्थिती पर एक छोटा सा लेख ) __विपिन दिलवरिया

              कोरोना काल कहुँ या भुखमरी काल  आज हमारा देश कोरोना काल से गुज़र रहा है या कहुँ कि भुखमरी काल से गुज़र रहा है । देश की अर्थव्यवस्था पुर्ण रूप से चरमरायी हुई है, बेरोजगारी आसमान छू रही है युवा वर्ग , मजदूर वर्ग , छोटे और मँझले व्यापारीयों के सब्र का बांध टूट रहा है । अधिकांश कारोबारी अपनी क्षमता से बहुत कम पर संचरित करने पर मजबूर है और इस दौरान बहुत से उद्योग पुर्णबन्दी की मार झेल रहें है  अगर बात की जाये लोगों के रोजमर्रा खर्च की तो वह बरकरार है और आमदनी में बहुत तेजी से गिरावट आई है । इन परिस्थितियों में , एक आम आदमी को दो वक्त की रोटी जुटाना बहुत मुश्किल हो गया है , इसलिये कोरोना काल को भुखमरी काल कहना कोई हैरानी की बात नहीं, हालांकि जब से अनलॉक हुआ है जब से आम जनजीवन को पटरी पर लाने की पूर्णत: कोशिश की जा रही है । भारत के अधिसंख्य लोगों को उनकी क्षमता से कमतर काम करनें के लिये मजबूर है । ऐसे में सरकार को जहां सम्भव हो सके वहाँ रोजगार के अवसरों को बढावा देना चाहिए । अगर ऐसा नहीं किया गया तो दिन - प्रतिदिन असमाजिक गतिविधियां , आपराधिक मामलों में वृद्धि होना स्वाभविक

मैं फ़कत मुस्कुरा देता हुँ ( गज़ल )( शायरी ) __विपिन दिलवरिया

                  मैं फ़कत मुस्कुरा देता हुँ  अपनी कमजोरी को अपनी ताकत बना लेता हुँ,! हौंसलों से  मैं  हालातों  को  गुलाम बना देता हुँ!! मिज़ाज़  है  मेरा  चुपचाप  सा  रहने का मगर,,! अपना पयाम*  मैं अपने  कलाम* से  देता  हुँ,!! चिल्लाकर मैं  दबाऊँ  ये  मेरी  फितरत  नहीं,,! कुछ जवाब मैं अपनी खमोशियों से दे देता हुँ,!! मेरे  लहजे  को  वो  मेरा  गुस्सा  समझतें  है,,! जब गुस्सा आता है  मैं फ़कत मुस्कुरा देता हुँ,!! यूं तो फसानें खूब  लिखे  हमनें मोहब्बतों के,,! बात जब ख़ुद की आये तो कलम रोक देता हुँ,!! उसको लगता  है  उसकी जरुरत  नहीं  मुझे,,! कैसे कहुँ  उसके बिना मैं अकेले में रो देता हुँ,!! बयां नहीं  करता  "दिलवरिया" अपनी कहानी,,! दिल का दर्द जुबाँ पे आने से पहले रोक देता हुँ!! पयाम - संदेश कलाम - वचन, उक्ति ,बातचीत __विपिन दिलवरिया

इन्सान कभी ना बनना चाहे ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

          इन्सान कभी ना बनना चाहे  जग में ऊँचा नाम हो जाये, पर  काम कभी  ना  करना  चाहे,,!! जीतना चाहे मौत से भी,  पर ख़ुद से  कभी ना लड़ना चाहे,,!! सब चाहे क्रांति आये, पर  भगतसिंह  कोई  ना  बनना चाहे,,!! सबको  देशभक्ति  का   पाठ   पढाये , पर ख़ुद पासबान भी ना बनना चाहे,,!! धर्मों की जो लड़ाई लड़ते, गीता क़ुरान कभी ना पढना चाहे,!! बनना चाहे हिन्दु मुस्लिम, पर इन्सान कभी ना बनना चाहे,,!! चाहता है बस पुण्य कमाए, पर  दान  कभी  ना  करना चाहे,,!! वधु  चाहिये  सबको सीता   जैसी  "दिलवरिया" पर ख़ुद राम कभी ना बनना चाहे,!! __विपिन दिलवरिया 

शिक्षक ( शिक्षक क्या है ? ) __विपिन दिलवरिया

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शिक्षक   शिक्षक क्या है ? शिक्षक निराकार है शिक्षक का नाम संस्कार है शिक्षक फ़ज़ल है शिक्षक कोरे कागज़ को  ज्ञान रुपी शब्दो से सवारनें वाली एक कलम है शिक्षक जीवन की उम्मीद अच्छे भविष्य की आस है शिक्षक चिराग है शिक्षक संगतराश है शिक्षक जलते दिये की लॉ  जीवन को उज्ज्वल करती मशाल है शिक्षक अदब की पहचान है शिक्षक कोई इन्सान नहीं  इन्सान रुपी भगवान है __विपिन दिलवरिया  अदब  -  सभ्यता , आदर सत्कार फ़ज़ल - श्रेष्ठता , गुण  निराकार - आकाश , ईश्वर को भी निराकार कहा गया है

छोड़ दी वो राह-ए-मोहब्बत (गज़ल) (shayarai) __विपिन दिलवरिया

                          छोड़ दी वो राह-ए-मोहब्बत ना जाने क्यूं  खफ़ा  मुझसे  मेरा ख़ुदा हो गया,,! शिद्दत से चाहा जिसे वही मुझसे ज़ुदा हो गया,,!! एक हम है कि  हम किसी और के हो ना सके,,! एकवो है किसी और केसाथ शादीशुदा हो गया,!! कैसे कह दूँ मैं  उसकी मोहब्बत को मुकम्मल,,! मुझसे किये वादें तोड़कर  जो बेजुबाँ हो गया,,!! मोहब्बत  जो   की   हमनें  तो  ज़ुर्म  हो गया,,! वो करके  बेदाद-ए-इश्क़* बे-गुनाह  हो गया,,!! छोड़   दी   वो   राह - ए - मोहब्बत मैनें अब,,! जिन  राहों  पे "दिलवरिया" गुमशुदा हो गया,,!! बेदाद-ए-इश्क़ = प्रेम का ज़ुल्म/ अत्याचार __विपिन दिलवरिया

तुमसे बिछड़कर ( song ) __विपिन दिलवरिया

              तुमसे बिछड़कर  ( song ) दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं तुमसे बिछड़कर... तेरे साथ ज़िन्दगी अब जीना चाहतें है ज़ाम   मोहब्बत   का  पीना  चाहतें है किसी के लिये भी बदले नहीं हम रख दूँगा खुद को अब मैं बदलकर... दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं तुमसे बिछड़कर... * * तडपायें मुझे वो सारी बातें हुई थी जो तुमसे जाने अनजानें... मिली थी जो तुमसे मेरी निगाहें भरने लगा हुँ  अब  तो  मैं आहें... किसी के लिये भी रुकते नहीं हम चलने लगा हुँ अब मैं रुक रुककर... दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं तुमसे बिछड़कर... * * ख्वाबों में जबसे आने लगे तुम होने लगे  हम  अब ख़ुद में गुम... छाई है मुझ पे ऐसी खुमारी रहने लगे हम अब गुम-सुम... किसी के लिये भी डरते नहीं हम जीने लगा हुँ  अब  मैं डर डरकर... दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं तुमसे बिछड़कर... तेरे साथ ज़िन्दगी अब जीना चाहतें है ज़ाम   मोहब्बत   का  पीना  चाहतें है किसी के लिये भी बदले नहीं हम रख दूँगा खुद को अब मैं बदलकर... दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं त

Part - 6 - Heart broken💔shayari __Vipin Dilwarya

       Heart broken💔shayari (1) उसके हर गम को हंसकर सह लेते है उसकी कमियों को नज़रअंदाज कर देते है हैरान है वो सितमगर उसके हर इल्ज़ाम की सज़ा अपनी खमोशियों से देते है (2) सितारें गर्दिश में कुछ इस तरह है, पता है.... साख से पत्ता गिरे या बरसते बादल रुके इल्ज़ाम हमी पे आता है, पता है.... मेरे इश्क़ की कहानी भी कुछ इस तरह है वफाएँ भी हमने की और बदनाम भी हमी हुए है, पता है.... (3) बड़ी खराब है इश्क़ की बीमारियाँ बिन मतलब बनती  है  कहानियाँ... चार  दिन की  ज़िन्दगी में दो  पल की खुशी है ये इश्क़, कहता है दिलवरिया... वक्त से संभल जा  ए  आशिक़, वरना बर्बाद कर जाता है ये इश्क़, जवानियाँ... (4) तेरे दिल में मेरी यादों को पनाह नहीं है लौटा रहा हुँ तेरे ख्वाब मेरी आँखों में जगह नहीं है (5) मेरी  मोहब्बत   तेरी   दिल्लगी ये तो  मुझ   पर   तेरी  ज़फा है..!! मोहब्बत   की    इस   कहानी में तु  बेवफ़ा  ,  मेरी तो वफ़ा है..!! मिटा  दूँ   तुझे   तेरी  बेवफ़ाई के लिये, तो इसमें मेरी खता है..!! मौत तो  आज़ादी  होगी  तेरी, जा   बख्श  दी  तेरी  ज़िन्दगी ये   ज़िन्द

कहां चले नज़रें चुराकर ( Shayari ) __ Vipin Dilwarya

कहां चले नज़रें चुराकर कहां चले नज़रें चुराकर खुश हो पीठ में खंज़र घुसाकर  जैसे भी हो अपनें हो बख्श देते है अपना समझकर चालाकियाँ समझते हो जिन्हें हमारी मोहब्बत है वरना लहरें भी लौट  जाती है किनारों से टकराकर __विपिन दिलवरिया 

Part - 7 - Thoughtfull Shayari __ Vipin Dilwarya

        Part - 7 - Thoughtfull Shayari (1) सहरा तरस रहा है ये बादल है कि  समंदर पे बरस रहा है (2) उस्ताद नहीं हुँ मानता हुँ मगर जैसे को तैसा समझाना बखूबी जानता हुँ (3) पढ़ के देख मुझको समझ लेगा मेरे शब्दों में तु ख़ुद को पा लेगा (4) शायरी का एक दौर जा रहा है राहत नहीं पूरा इन्दौर जा रहा है (5) जीस्त-ए-शायरी का खाज़ाना जा रहा है!! कोई रोको  राहत का ज़नाज़ा जा रहा है!! (6) तेरे मज़कूर लफ्ज़ तुझे आबाद रखेगी,,!! ये दुनियाँ है जब तक तुम्हें याद रखेगी,,!! (7) सुख़न से महरूम रह गयी वो महफ़िल,,,,!! जिसमें शहर के सारे सुख़नवर शामिल थे.!! (8) बुढ़ापा है नज़र धुंधला गई आँखों की पतझड़ है इसमें क्या ख़ता शाख़ों की (9) किसे सुनाऊँ मैं अपनी कहानी किसी के पास वक्त नहीं... एक कलम कुछ पन्ने बस लिख लेते है जज़्बात और कुछ नहीं... __विपिन दिलवरिया

आँखों पर पट्टी बाँधकर बैठे है ( हिन्दी कविता ) __ विपिन दिलवरिया

आँखों पर पट्टी बाँधकर बैठे है  आँखों पर पट्टी बाँधकर  बैठे है पढ़ लिखकर  गवांर बन बैठे है सही गलत की पहचान कैसे हो मानसिक गुलाम जो बन बैठे है गुलामियत खून में  है  उन लोगों के जो देशभक्त के नाम पे अंधभक्त बन बैठे है हिन्दु मुस्लिम भाईचारे की बात करते है फिर  क्यो   हिन्दु   मुस्लिम  चिल्लातें है भाईचारे की मिसाल देते है जो वही धर्म के ठेकेदार बन बैठे है राजनीति का कोई धर्म नहीं है नफ़रत  उन  लोगों  से  है  जो धर्म के नाम पे नेता बन बैठे है गाय नाम  पर   राम  नाम  पर बस राजनीतिक रोटी सेकतें है नफ़रत  उन  लोगों  से  है  जो गाय नाम पे व्यपार कर बैठे है सही को  सही  गलत  को गलत कहने  की  हिम्मत  रखता  हुँ मैं सपा,बसपा , भाजपा से मतलब  नहीं मुझे,नफ़रत उन लोगो से है  जो गाय  के  दलाल  बन  बैठे है बात ना कर भगवे रंग और प्रभु राम की भगवा रंग , प्रभु राम मेरे खून में बहते है नफ़रत  उन  लोगो  से  है  जो राजनेता  इनके  नाम पे  देश  के गद्दार बन बैठे है __विपिन दिलवरिया 

बुढापा लगा है मौत बुलानें में ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

बुढापा लगा है मौत बुलानें में तलवे   घिस   गये  आने  जानें में उम्र  गुज़र  गयी  जिसे  कमानें में ज़िन्दगी भर  जो  कमाई  इज़्जत अपनें    ही   लगे  उसे   गवानें में     पाल     पौशकर     बड़ा    किया  जिसको  वजूद  दिया   ज़मानें में क्या    किया     है     मेरे    लिये एक पल  ना  लगा उसे  सुनानें में    शाम - ए - हयात   ढल      गयी    औलाद   को   कुछ     बनानें  में अरमानों   का   गला   घोट  दिया जिसनें दो वक्त की रोटी कमानें में   मूँह का निवाला भी उसे खिलाया  पर टुकड़ा दे ना सका वो खानें में ज़वानी बुलाती  रही ज़िन्दगी मगर बुढापा  लगा   है   मौत  बुलानें में ज़िन्दगी एक पहेली है"दिलवरिया" नाकाम इसे  हर कोई सुलझानें में __विपिन दिलवरिया 

Part - 5 - Love shayari __ Vipin Dilwarya

                        Part - 5 - Love shayari (1) जाते हुए को टोकना कैसा आते हुए को रोकना कैसा और ज़माने का डर नहीं हमको बस तुम्हारे इकरार का इंतज़ार था अब तुम आ गये हो तो सोचना कैसा (2) ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से मिला दिया मेरे टूटे दिल के हर टुकडें को दिल से लगा लिया खो गया था दूनियाँ की भीड़ में कहीं उसनें मुझे मुझसे मिला दिया (3) मेरे अश्क मोहब्बत की निशानी है ना मानो तो बहता पानी है फ़कत ये अल्फाज़ नहीं ये गज़ल मेरी कहानी है बस पा ना सका मैं उसको मेरी मोहब्बत में आज भी रवानी है (4) लफ्ज़ो को मैनें स्याही में भीगो दिया जज्बतों को पन्नो की गहराई में डुबो दिया ये मौसम बरसात का तो नहीं ये मौसम भी आज बे मौसम रो दिया कुछ तो हुआ है बेवजह नहीं ये हलचल इन बादलों में लगता है आज फिर किसी सच्चे आशिक़ ने अपनी मोहब्बत को खो दिया (5) छुपा हुआ चेहरा तेरा सामनें आ जाये बारिश की बूँदें जैसे तेरी पायल खनक जाये मेरी धड़कन थम जाये मेरी सांसे रुक जाये छुपा हुआ चेहरा तेरा सामनें आ जाये (6) पाना है फूल  तो काँटों से लड़ना होगा, आग का दरिया है और डूब के

दास्ताँ-ए-मोहब्बत दिलवरिया ( Shayari ) __ Vipin Dilwarya

दास्ताँ-ए-मोहब्बत दिलवरिया  ए ख़ुदा  कमाल  तेरी ख़ुदाई  भूलना चाहा जिसे उसी की याद पल पल आई क्या खूब लिखी  दास्ताँ-ए-मोहब्बत दिलवरिया  जोडी वहाँ बनाई  जहाँ  लिखी  थी  बस  जुदाई __विपिन दिलवरिया 

भरोसा.. ( Song ) __ Vipin Dilwarya

                  भरोसा.. ( Song ) मत पूछ मेरे दिल की कहानी बस नहीं चलता अब इस दिल पर, ये दिल करता है अपनी मनमानी समझाता हुँ पर समझता नहीं दिल, मेरी सुनता नहीं इसे बस अपनी अपनी सुनानी * * * * दिल पे नहीं है बस अब तो मेरा... तुझसे है शामें तुझसे सवेरा..... संभालें नहीं संभलें अब दिल ये मेरा.... मोहब्बत का ऐसा हवा का ये झौंका.... वादों पे तेरे इतना भरोसा खुद पे नहीं है जितना भरोसा.... * * गिला तुझसे कैसे अब मैं करू... तेरे बिना ज़िन्दगी अब मैं ड़रु... ज़ुदा तुझसे कैसे अब मैं रहूँ... हुई है मोहब्बत अब क्या करु... रोके रुके ना अब दिल ये मेरा.... लेकिन ज़मानें नें मुझको है रोका..... वादों पे तेरे इतना भरोसा खुद पे नहीं है जितना भरोसा.... * * याद आती है तेरी बीती बातें याद आते  है  बीते  हुए दिन.... कटती नहीं है अब मेरी रातें रातें कटती है तारे गिन गिन.... संभालें नहीं संभलें अब दिल ये मेरा.... मोहब्बत का ऐसा हवा का ये झौंका.... वादों पे तेरे इतना भरोसा खुद पे नहीं है जितना भरोसा.... __विपिन दिलवरिया

मंजिल वही पाते है जो संभल जाते है ( गज़ल ) __विपिन दिलवरिया

मंजिल वही पाते है जो संभल जाते है उम्र  गुजरती  है  तो  चेहरें  बदल  जाते हैं, इन्सान  है  अपनी  फितरत  बदल जाते हैं बदनाम  है   बस  मोहब्बत  तो , मोहब्बत  नहीं  मोहब्बत  करने  वाले  बदल जाते हैं अक्सर  ज़मानें  को   दोष   देते  है  लोग, ज़माना नहीं ज़मानें के लोग बदल जाते हैं ज़रा कदम क्या डगमगाये राह-ए-मंजिल, यहाँ   लोगों   के    रास्तें   बदल  जाते  हैं राहें उसुलों की  है ज़ख्म तो जरुर मिलेंगे, मंजिल वही  पाते  है  जो  संभल  जाते हैं फूँक फूँककर कदम रखता है"दिलवरिया" मेरी किस्मत  है  कि  मेरे पैर जल जाते हैं __विपिन दिलवरिया 

इश्क़ फ़रमानें का हुनर भी आता है ( Shayari ) __विपिन दिलवरिया

इश्क़ फ़रमानें का हुनर भी आता है इश्क़ है तो इश्क़  फ़रमानें का हुनर भी आता है ना हो मंजूर अगर हमें छुपाने का हुनर भी आता है मुकम्मल है मेरी मोहब्बत  सिर्फ मुझसे, हमें दूर रहकर निभानें का हुनर भी आता है गुजरनें से डरती है  जिस भँवर से कश्तियाँ, उन्हें पार लगाने का हुनर भी आता है वो तैराक बड़े कमाल के है मगर हमें कमाल डुबानें का हुनर भी आता है __विपिन दिलवरिया

मेरे ख़याल मेरे लहज़े में नहीं ( Shayari ) __विपिन दिलवरिया

मेरे ख़याल मेरे लहज़े में नहीं कुछ  मतले  कुछ  किस्से  कहानियों  में    मिलते  हैं... कुछ  फ़लसफ़े  होश में नहीं मदहोशियों   में    मिलते  हैं... ढूँढता रहा  वो  जवाब दूनियाँ    के    शोर  में, कुछ जवाब शोर में नहीं सरगोशियों  में मिलते हैं... इतना  आसाँ  नहीं  मेरे  ख़यालों से रूबरू होना, मेरे ख़याल मेरे लहज़े में नहीं  खमोशियों    में    मिलते   हैं... __विपिन दिलवरिया 

अनपढ़ शिक्षा बेच रहें हैं ( आज के दौर पर कविता ) ___विपिन दिलवरिया

अनपढ़ शिक्षा बेच रहें हैं लंगड़ें   दौड   रहें  ,  गुंगे   बोल  रहें  है  बहरे   सुन   रहें  ,  अन्धें   देख  रहें  है,  झूँठी    कसमें      झूँठे     वादे ,   और  यहाँ   सब   लम्बी  लम्बी  फेंक  रहें  है किसी को  मिले   या   ना  मिले , यहाँ सब अपनी  अपनी  रोटियां सेंक रहें है इंजीनीयर   सब्ज़ी    वकील    पकोडें, और  यहाँ  अनपढ़   शिक्षा  बेच  रहें है फ़कीरी   दिखाकर  अमीरी   लूट   गये, बनाकर  फ़कीर  ख़ुद माल खैंच  रहें है उसे    सेवक    कहुँ      या    व्यापारी, जो चाय  बेचते थे आज देश बेच रहें है तमाशबीन यहाँ की जनता"दिलवरिया" आज  सब  लोग   तमाशा   देंख  रहें है __विपिन दिलवरिया 

वो सौदा करते रहे आसूँओं का ( गज़ल ) ( Shayari ) __ Vipin Dilwarya

वो सौदा करते रहे आसूँओं का दरिया       एक       दो       किनारें   है, हम इस  पार   वो   उस  पार  बुलारें  है बड़ा  रौब   है   उनके   लहज़े  में  मगर, वो जुगनू  तो  हम  फ़लक  के सितारें है खता तो  बड़ी कर  बैठे मोहब्बत करके,  संगदिल  है  वो  जिसपे हम दिल हारें है मोहब्बत  भी  इस  कदर  की  है  उनसे, वो  शादीशुदा  हम  आज  भी  कुवांरे है इश्क़  की  बाज़ी  तो  यूं  जीत  गये  वो, नामालूम है , वो  जीते  नहीं  हम  हारें है वो सौदा करते  रहे  आसूँओं  का मगर, एक हम  है  उनके  लिये आँसू बहारें  है रह-ए-इश्क़ कुछ टुकडें इस कदर बिखरें  है , वो टूटे  दिल के  सब  टुकडें हमारें है तेरा ग़म कम है ज़मानें भर "दिलवरिया"  यहाँ सब तेरे ग़म से ज्यादा ग़म कमारें है __विपिन दिलवरिया 

ना छेड़ किस्सा-ए-मोहब्बत ( गज़ल ) ( Shayari ) __ विपिन दिलवरिया

ना छेड़ किस्सा-ए-मोहब्बत सितारों   की   नुमाईश   लगी   है, ये हसीं  रात  अब  खिलने लगी है तेरे   आने   की   खबर  हुई  जब, तेरी      खुशबू       से  मेरी   बगिया    महकनें   लगी  है वो  आये  जब   मेरी   गली , मेरी सूनी   गलियाँ   चहकनें   लगी  है जो  थमी  हुई  थी ,  तेरे  आने  से  वो  धड़कन  अब  धडकनें लगी है ना    छेड़   किस्सा - ए - मोहब्बत, मेरी  ख्वाहिशें  अब  बढ़ने लगी है ना देख  मोहब्बत  भरी  नज़रों से ये  चिंगारी  अब  भड़कनें  लगी है अधुरी  मोहब्बत थी  "दिलवरिया" वो मोहब्बत अब पूरी होने लगी है __विपिन दिलवरिया 

Part - 6 - Thoughtfull Shayari ___विपिन दिलवरिया

    Part - 6 - Thoughtfull Shayari (1) ख्वाहिशें उतनी रखो ज़िन्दगी में जितने में खुश रह सको वरना  ज्यादा ख्वाहिशें खुशियों को  बर्बाद  कर  देती है (2) डूबना चाहता हुँ मैं समन्दर की गहराई में... ये समन्दर है कि मुझें साहिल पर ले जानें में लगा है... (3) ज़िन्दगी का सफ़र यूं कट जाता है जब हमसफर हमसा मिल जाता है (4) सुखे हुए पत्ते से पुछो गिरने का डर क्या होता है वरना  शाक  तो  पतझड़  का  इंतज़ार करती है (5) झूँठो की दूनियाँ में बेइमानों की बस्ती है साहब यहाँ लोग दूसरों के घरों में झाँकतें है... और बेइमानी खून में है जिनके वो हमसे ईमानदारी के सबूत माँगते है... (6) वक्त के थपेडों नें कभी इस पार तो कभी उस पर किये... मुश्किल वक्त में कुछ नें वार किये तो कुछ नें उपकार किये... आज मैनें अपनी किताब  से   कुछ  पन्ने  बाहर  किये... शुक्र है तेरा कोरोना, कुछ लोगों के तूने मुखोटे उतार दिये... (7) हौंसलों  से  आस्माँ  चूम  लेता है हो अरमाँ तो अंधेरों  में  उजाला  ढूँढ  लेता  है दरिया मोहतज़ नहीं रहगुज़र का, दरिया  ख़ुद समन्दर  ढूंढ लेता है (8) ना

उन्हें खबर नहीं ( Shayari ) __ विपिन दिलवरिया

                          उन्हें खबर नहीं खूब मिले खरीददार  हम कहां बिकने वाले है वो छिपनें वाले सोचते है हम कहां दिखने वाले है उनकी हरकतें उनके मिज़ाज़ खूब देखें हमनें उन्हें खबर नहीं हम  उनपे गज़ल लिखनें वाले है __विपिन दिलवरिया 

सजी हुई चिता से उतारा शव (आगरा प्रकरण जातिवाद का घिनौना रूप) ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

   सजी हुई चिता से उतारा शव    (आगरा प्रकरण जातिवाद का घिनौना रूप) ये  कौन  लोग   इतनें  ज्ञानवान  है एक जात तुच्छ एक जात महान है ऊँच - नीच   जात - पात   में  बटाँ  ये कौन सा धर्म कौन सा इन्सान है मिट्टी बांट दी  , बांट दी इंसानियत और  कहते  है  मेरा  देश महान है सजी  हुई  चिता   से  उतारा  शव, ये  कौन  लोग  कौन  से इन्सान है कैसे कह दूँ मैं उस धर्म को अपना जहाँ जातिवाद  में बटें शमशान है नहीं मानता  वो  धर्म "दिलवरिया" जहाँ इंसानियत नहीं बस हैवान है  __विपिन दिलवरिया 

ज़िन्दगी क्या है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

ज़िन्दगी क्या है ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? ना जाने कब कौन कैसे सही गलत और गलत सही बन जाता है ज़िन्दगी में सब कुछ भूल कर अपनें बेहतर कल के लिये अपनें आज को बर्बाद कर जाता है ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? ऐसा दौर भी आता है यहाँ  अपना पराया, पराया अपना बन जाता है कभी ख़ुद को तो कभी  दूसरों को समझाना पड़ता है कुछ रिश्तें कुछ जिम्मेदारियों के लिये  इन्सान को खुदगर्ज़ बन जाना पड़ता है कई पहलु है इस ज़िन्दगी के कुछ रिश्तें हमें निभातें है  कुछ रिश्तों को हमें निभाना पड़ता है ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? कुछ रिश्तों के लिये जीना पड़ता है कुछ रिश्तों के लिये ख़ुद मर जाना पड़ता है ये ज़िन्दगी अनसुलझी पहेली है ज़िन्दगी खत्म हो जाती है जब तक इन्सान ज़िन्दगी को समझ पाता है ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? ज़िन्दगी क्या है इसको किसने जाना है ? __विपिन दिलवरिया 

ये इश्क़ कोई गुनाह नहीं ( gazhal ) ( Shayari ) ___विपिन दिलवरिया

     ये इश्क़ कोई गुनाह नहीं त्याग भी है मोहब्बत बस पाना नहीं, आग का दरिया है  इश्क़ आसाँ नहीं फूलों की रहों  पे  भी  कांटे  बिछे है, दूरियाँ भले हो फासलें हो जाना नहीं बड़े नसीबों से मिलती  है  मोहब्बत  यूं  ही  कोई  बिखरा  खज़ाना  नहीं शितम  ढाती   है  मजबूरियाँ  मगर, सब कुछ भूले  पर  याद आना नहीं यूं  बदनाम  ना  कर  मोहब्बत  को,  मोहब्बत ज़िन्दगी है मर  जाना नहीं माना दुश्मन ज़माना इश्क़ का मगर, इबादत है  ये इश्क़ कोई गुनाह नहीं मोहब्बत ख़ुदा बख़्श है"दिलवरिया" किसी का लिबाश  या  गहना  नहीं ख़ुदा बख़्श -  ख़ुदा का उपहार __विपिन दिलवरिया 

हर गज़ल एक सवाल बनेगी ( Ghazal ) __ विपिन दिलवरिया

हर गज़ल एक सवाल बनेगी   हुआ  सबेरा  तो  साँझ  भी ढ़लेगी है खास अगर , वो आम भी बनेगी सूनापन  सा  है  मेरी  ज़िन्दगी  में कभी तो  ज़िन्दगी गुलज़ार  बनेगी मेरी  तन्हाई   आज   मज़बूरी  है,   यही   ज़िन्दगी  की   ढाल   बनेगी शोला  बन  भड़केगी  एक चिंगारी, ये हल्की हवा  अब  तुफ़ान  बनेगी कर   संकल्प    उठाई   जो   मैनें, मेरी  कलम  मेरी  आवाज़  बनेगी क्रूतियाँ  चुनकर  लिखुंगा  समाज  की, हर गज़ल  एक सवाल बनेगी अनजानें  में  चोट  खायी है  मगर, यही चोट सवालिया निशान बनेगी हर  हरफ़  में  एक  कहानी  होगी यही   गज़लें   मेरी   आन   बनेगी चल पड़ा हुँ  धुंधली  सी  रहों  पर  यही  रहगुज़र  मेरा  मुकाम बनेगी  एक   दिन   आएगा  "दिलवरिया" तेरे लफ्ज़ो से  तेरी पहचान बनेगी ___विपिन दिलवरिया 

उसकी आँखें बेहद खूबसूरत है ( gazal ) ( Shayari ) ___विपिन दिलवरिया

        उसकी आँखें बेहद खूबसूरत है  वो     मल्लिका - ए - हुस्न     है  ,  मगर हुस्न-ओ-शबाब  का  उसनें  गुमान किया इश्क़ के मैखानें  में पैमाईश की गुंजाईश  नहीं , मगर  नापकर   उसनें  ज़ाम  दिया यूं तो ऐतबार नहीं  था  उसकी  बात  का, पर उसनें  जो  जो  कहा मैनें  मान लिया वफ़ाओं  से उसका  कोई ताल्लुक़ ना था उसनें  मेरी   वफ़ा  का   इम्तिहान  लिया उसकी  आँखें  बेहद  खूबसूरत  है  मगर, मैनें उसकी नज़रों  को भी पहचान लिया गुनाह क़ुबूल  किये  हमनें सभी, जो नहीं किया  उसनें  उसका  भी  इल्ज़ाम  दिया सिला  क्या खूब  मिला तुझे "दिलवरिया" करके   ज़ुर्म   उसनें    तेरा   नाम   लिया ___विपिन दिलवरिया 

मैनें ख़ुद को वतन के नाम किया ( Hindi kavita ) ___विपिन दिलवरिया

   मैनें ख़ुद को वतन के नाम किया   मेरा   देश    मेरी   आन   बान  शान  है, मैनें   ख़ुद   को   वतन   के  नाम  किया जिस    राह    पे    चला     है     दुश्मन मैनें  उस  राह  पे  अपना  मकान  लिया आजु - बाजु   सोच   समझकर  निकलें मैनें  घोड़े   को   अपने   बेलगाम  किया समझें तो ठीक , ना  समझे  तो  सुनलों अब  शान्ती नहीं क्रांति होगी ठान लिया बैठे   है  सर   पे    कफ़न   बांध    कर , जरुरत  पड़ी  हमनें   सीना  तान  लिया गर्व  है  उस माँ पर ,  जिस माँ ने अपना  लाल  इस  मिट्टी के  लिये  क़ुर्बान किया बड़ी उदार है मेरे वतन की मिट्टी, दिल में  आया तो दुश्मन को भी जीवनदान किया नमन  है  तेरी  कलम  को  "दिलवरिया" तूने सैनिको को ख़ुदा जैसा मुकाम दिया ___विपिन दिलवरिया 

कुछ तो हुआ है ( Shayari ) __Vipin Dilwarya

कुछ तो हुआ है लफ्ज़ो को मैनें स्याही में भीगो दिया जज्बतों को पन्नो की गहराई में डुबो दिया ये मौसम बरसात का तो नहीं ये मौसम भी आज बे मौसम रो दिया कुछ तो हुआ है बेवजह नहीं ये हलचल इन बादलों में लगता है आज फिर किसी सच्चे  आशिक़ ने अपनी मोहब्बत को खो दिया __विपिन दिलवरिया 

शुक्र है तेरा कोरोना ( Shayari ) __Vipin Dilwarya

शुक्र है तेरा कोरोना वक्त के थपेडों नें कभी इस पार तो कभी उस पर किये... मुश्किल वक्त में कुछ  नें वार किये तो कुछ नें उपकार किये... आज मैनें अपनी  किताब  से   कुछ  पन्ने  बाहर  किये... शुक्र है तेरा कोरोना, कुछ लोगों के तूने मुखोटे उतार दिये... ___विपिन दिलवरिया 

तिरंगे में तीन रंग है ( हिन्दी कविता ) ____विपिन दिलवरिया

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                                   तिरंगे में तीन रंग है  तिरंगे  में  तीन  रंग  है सब  रंग   संग  संग है फिर  काहे  की जंग है जात  पात   ,   ऊंच   नीच मज़हबों  में   खींचा   तानी  एक दुसरे पर कसते व्यंग है मैं     हिन्दु     तु     मुसलमां  ये   सिख   वो    इसाई   इन सब में बस इंसानियत तंग है कोई      गीता      तो  कोई  क़ुरान  पढ़ता है कोई     गुरुग्रंथ     तो कोई बाईबल पढ़ता है कोई     मन्दिर     तो कोई मस्जिद जाता है कोई    गुरुद्वारा   तो कोई   चर्च  जाता  है कोई धूपबत्ती तो कोई  अगरबत्ती  जलाता  है कोई   सर   को   झुकाता है तो कोई मोमबत्ती जलाता है अलग रूप , अलग रंग है इबादत   सबकी  एक  है, बस  सबके  अलग ढंग है तिरंगे  में  तीन  रंग  है सब रंग  संग   संग  है फिर  काहे  की जंग है भेदभाव   को   दूर  करो अपने घमंड को चूर करो हिंसा       को      त्यागो अहिंसा  के  पुजारी बनो जिसके  अंदर   एक  नई  उमंग  है जिसके अन्दर भाईचारे की तरंग है  वही  इन्सान  यहाँ  मस्त  मलंग  है हिन्दी   हिन्दु   

बेवफ़ाई क्या छोड़ी हमसे वफ़ा रूठ गई ( हिन्दी कविता ) ____विपिन दिलवरिया

बेवफ़ाई क्या छोड़ी हमसे वफ़ा रूठ गई  तुफानों   में   कभी    पत्ते   भी  ना  झडें  हल्की   सी    हवा   में    शाक   टूट  गई समुंदर डुबो  ना  सका  जिस  कश्ती को वो  कश्ती   साहिल   पे  आकर  डूब गई दूनियाँ हमारे  खौफ़  से  झुक  जाती थी हम शरीफ़  हुए  तो  दूनियाँ  ही  छूट गई इश्क़   समुंदर    दिल    दरिया   है  मेरा जिसने  जब  चाहा  वो  आकर  कूद गई दरिया बहता था  कभी  हमारी  आँख से  देख हालात-ए-इश्क़ मेरी आँखें सूख गई इश्क़ की गलियों के  बदनाम आशिक़ है बेवफ़ाई क्या छोड़ी  हमसे वफ़ा रूठ गई अब  किसे बयां  करूं मैं अपनी कहानी जिसे सुनाई थी  शान  से वो ही भूल गई गिला   करे    तो    किससे    करे    हम मेरी   तकदीर   ख़ुद    मुझसे   रूठ  गई नाकामयाबी बड़े तज़ुर्बे दे गई "दिलवरिया"  जितने अपने है उन सबकी पोल खुल गई ___विपिन दिलवरिया