मंजिल वही पाते है जो संभल जाते है ( गज़ल ) __विपिन दिलवरिया


मंजिल वही पाते है जो संभल जाते है



उम्र  गुजरती  है  तो  चेहरें  बदल  जाते हैं,
इन्सान  है  अपनी  फितरत  बदल जाते हैं

बदनाम  है   बस  मोहब्बत  तो , मोहब्बत 
नहीं  मोहब्बत  करने  वाले  बदल जाते हैं

अक्सर  ज़मानें  को   दोष   देते  है  लोग,
ज़माना नहीं ज़मानें के लोग बदल जाते हैं

ज़रा कदम क्या डगमगाये राह-ए-मंजिल,
यहाँ   लोगों   के    रास्तें   बदल  जाते  हैं

राहें उसुलों की  है ज़ख्म तो जरुर मिलेंगे,
मंजिल वही  पाते  है  जो  संभल  जाते हैं

फूँक फूँककर कदम रखता है"दिलवरिया"
मेरी किस्मत  है  कि  मेरे पैर जल जाते हैं


__विपिन दिलवरिया 

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