कहां चले नज़रें चुराकर ( Shayari ) __ Vipin Dilwarya



कहां चले नज़रें चुराकर



कहां चले नज़रें चुराकर
खुश हो पीठ में खंज़र घुसाकर 

जैसे भी हो अपनें हो
बख्श देते है अपना समझकर

चालाकियाँ समझते हो
जिन्हें हमारी मोहब्बत है

वरना लहरें भी लौट 
जाती है किनारों से टकराकर



__विपिन दिलवरिया 

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