बुढापा लगा है मौत बुलानें में ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया
बुढापा लगा है मौत बुलानें में
तलवे घिस गये आने जानें में
उम्र गुज़र गयी जिसे कमानें में
ज़िन्दगी भर जो कमाई इज़्जत
अपनें ही लगे उसे गवानें में
पाल पौशकर बड़ा किया
जिसको वजूद दिया ज़मानें में
क्या किया है मेरे लिये
एक पल ना लगा उसे सुनानें में
शाम - ए - हयात ढल गयी
औलाद को कुछ बनानें में
अरमानों का गला घोट दिया
जिसनें दो वक्त की रोटी कमानें में
मूँह का निवाला भी उसे खिलाया
पर टुकड़ा दे ना सका वो खानें में
ज़वानी बुलाती रही ज़िन्दगी मगर
बुढापा लगा है मौत बुलानें में
ज़िन्दगी एक पहेली है"दिलवरिया"
नाकाम इसे हर कोई सुलझानें में
__विपिन दिलवरिया
Very nice lines👌
ReplyDeleteThank you so much
DeleteThank you bhai ji
ReplyDeleteryt bhai,
ReplyDeleteThanks brother
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