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Showing posts from 2021

कामयाबी का परिणाम ( लघुकथा ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

                         ( लघुकथा )             कामयाबी का परिणाम एक छोटे से गाँव की बात है जहाँ चरनदास का परिवार रहता था जिसके दो बेटे राम और श्याम थे । राम और श्याम की माता कमला देवी उन्हें बचपन में ही छोडकर चल बसी थी चरनदास मजदूरी करके अपनें परिवार का पालन-पोशन करता था और अपनें बेटों को पढ़ा लिखाकर कामयाब बनानें के लिये चरनदास दिन-रात मेहनत करता, वह अपनें बच्चों को पढ़ा लिखाकर कामयाब बनाना चाहता था । चरनदास नहीं चाहता था कि उसकी भाँति उसके बेटे भी ऐसे ही हालातों में अपनी ज़िन्दगी बसर करें, चरनदास भूखा रहकर भी अपनें बेटों को स्कूल भेजता था । राम अपने पिता की बेबसी और लाचारी को देखकर बहुत दुखी होता, वह पढ़ लिखकर कामयाब बनकर अपनें पिता को सुख चैन भरी ज़िन्दगी देना चाहता था वहीं दूसरी और श्याम मन मौजी रहता और पढ़ने लिखनें में बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था ।      जैसे-जैसे बेटे बड़े हुए चरनदास ने दोनों की शादी कर दी, श्याम मजदूरी करनें लगा और कुछ समय पश्चात राम की शहर में नौकरी लग गयी । जैसे-जैसे दिन गुजरते गये चरनदास का परिवार परेशानियों से उबरनें लगा चरनदास बहुत खुश था कि उसका बेटा राम कामयाब

आग़ाज़ ( शायरी ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

आग़ाज़ जरुरी है आग़ाज़ होना चाहिये कल नहीं  आज  होना चाहिये डोल   जाये   उसका   शासन  ऐसा हमारा गाज होना चाहिये जो भी  करना  पड़े  करो  मगर मेरे सर पे वो ताज़ होना चाहिये डूब जाये सूरज अब मंजूर नहीं हर तरफ़ मेरा राज होना चाहिये __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '   मेरठ , उत्तर प्रदेश 

Part - 14 - Thoughtfull Shayari __Ghazi Acharya ' Ghazi '

    Thoughtfull Shayari (1) माना सलीका उनका गलत था,,,,,,,,,,! मगर लफ्ज़ो में उनके फिक्र छुपी थी,,!! (2) कह दो इन दरियाओं से कि अपनी औकात में रहे  वरना  समन्दर  बनने में  हमें भी वक्त नहीं लगता  (3) स्टेटस का दौर है साहब शुद्ध विचार और ज्ञान का भण्डार लोगो के अन्दर कम उनके स्टेटस पर ज्यादा मिलता है (4) एक हक़िक़त सामने आई जब उनसे राब्ता हुआ,,! ख़ुद से ख़ुद का नाता ना रहा जब से वो रास्ता हुआ,,!! (5) देखो आज वो शाम आई  मेरे हिस्से खुशियाँ तमाम आई एक माँ का दामन छूटा तो अपनी बाहें पसारे धरती माँ आई ज़मींदारी लेकर आई मेरी शहीदी, आज दो गज़ ज़मीं मेरे नाम आई खुशकिस्मत हुँ मैं वतन तेरे लिये, मेरे  ज़िस्म  की  मिट्टी काम आई  (6) गुजरते दिन मैं कंगाल हो गया मानो मेरे सर से एक-एक बाल कम हो गया मैं जश्न मनाऊं या शोक, आज मेरी ज़िन्दगी का एक और साल कम हो गया (7) ज़िन्दगी गुज़र गयी ज़द्दोज़हद में  चंद लमहात चाहिये सुकूँ के लिये (8) जहाँ  लोग  मरने  की  सोचते  है  वहाँ हम कुछ करने की सोचते है (9) संस्कारों की यहाँ पौध लगाई जिसनें  जगाई  किस्मत सोई माँ की समता  नहीं किसी से माँ जैसा  यहाँ  और ना कोई (10) टुकड़ा भा

मैं वो हिंदुस्तान हूँ मेरे भाई __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

मैं वो हिंदुस्तान हूँ मेरे भाई ना हिन्दु ना मुसलमान  ना सिख ना मैं *इसाई* इंसानियत जिसका धर्म  वो इन्सान हूँ  *मेरे भाई* हर रंग को सजोंकर रखता है  अपनी पेशानी पर तिरंगा जिसकी शान  मैं वो हिंदुस्तान हूँ *मेरे भाई* __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

वीर रस ( कविता ) वह तो झाँसी वाली रानी थी__कवि गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

        वीर रस ( कविता )  वह तो झाँसी वाली रानी थी चलो सुनाऊं एक कहानी  जिसमें एक रानी थी मुख से निकले तीखे बाण  वो शमशीर दिवानी थी थी वो ऐसी वीरांगना उसकी शौर्य भरी जवानी थी सर पर सजा था केसरी रंग पेशानी पर मिट्टी हिन्दुस्तानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... जल उठी थी जब क्रांति ना कोई संकोच,ना थी कोई भ्रांति बांध पीठ पर लाल को जब मूँह में लगाम थामी थी लहू से सीचेंगे इस मिट्टी को बात बस यही ठानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... खूब लड़ी रण-भूमि में वो माँ दुर्गा, माँ भवानी थी लहू के कतरे-कतरे से जिसनें लिखी अमर कहानी थी आखिरी साँस तक लड़ी वो पर हार नहीं मानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी..... वह तो झाँसी वाली रानी थी..... दीवार किले की टूट गई  आस सभी की छूट गई  सीना तान खड़ी रही वो खूब लड़ी मर्दानी थी लड़ते-लड़ते प्राण गवांये मिट्टी के लिये दी कुर्बानी थी वह तो झाँसी वाली रानी थी.... वह तो झाँसी वाली रानी थी.... __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी ' (  मेरठ , उत्तर प्रदेश )

साहित्य विकास मंच को समर्पित कविता __कवि गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

          *साहित्य विकास मंच* मंच को कवियों का प्रणाम होना चाहिये मंच पर काव्य का गुणगान होना चाहिये शतकवीर  हुआ  है  आज *साहित्य विकास मंच*   आज *मंच के कवियों* का सम्मान होना चाहिये सब  का   अपना-अपना  किरदार  होता है काव्य सृजन के लिये कवि हक़दार होता है कवियों के काव्य पाठ से  बढ़ता  है  काव्य सृजन  काव्य मंच का ऊँचा मस्तक कलमकार से होता है ना रुके ये *कारवां* यूं ही चलता चला जाये साहित्य का ये सिलसिला बढ़ता चला जाये सब का स्वागत करता है *काव्य प्रगति कुन्ज* नव युवा कवियों  को राह दिखाता चला जाये नमन करता है 'गाज़ी' *साहित्य विकास मंच* को ये मंच  यूं ही  दरिया की  तरह  बहता चला जाये *__गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '*       *मेरठ , उत्तर प्रदेश*

सुन री हवा तू धीरे चल ( गीत ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

   सुन री हवा तू धीरे चल ( गीत ) सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                    सज संवरकर निकली है वो                    यहाँ सारा चमन महक रहा है                     सौन्दर्य ऐसे सोलह श्रृंगार जैसे                    मानो चाँद ज़मीं पर चमक रहा है  सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                            || 1 ||                    माथे बिन्दीयाँ आँख में अंजन                     नाक में नथुनीं  हाथ में कंगन                    कान में झुमका चाल में ठुमका                    देख उसे हर कोई बहक रहा है गालो की लाली होठों की प्याली  उसके चेहरे पर नूर बरश रहा है सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......                            || 2 ||                     जिसनें देखा जी भर के                      वो बचा है यारो मर मर के                     सांस की सुरभि बाल में गजरा                     चंदन सा बदन महक रहा है देख पतित हुआ वो पावन उसका यौवन इतना चहक रहा है सुन री हवा तू धीरे चल उसके सर से दुपट्टा सरक रहा है.......      

छूट गया तेरा हाथ माँ ( हिन्दी कविता ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

  छूट गया तेरा हाथ माँ अब तेरे बिना जीना पड़ेगा माँ तेरे जैसा प्यार कौन करेगा माँ सर से तेरा साया छूट गया अब मेरे कष्टो को कौन हरेगा माँ ज़र्रे-ज़र्रे  में तू  है ,  मेरे साथ है तेरी हर बात माँ सब कुछ मेरे पास है, पर छूट गया तेरा हाथ माँ तुम बिन घर ये सूना,  अब सूना पड़ा ये आँगन माँ घर नहीं ये मकान है, जबसे छूट गया तेरा गात माँ __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '  गात - शरीर

तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है ( गज़ल ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

  तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है                     ख़िज़ां में शाख़ सूखी नज़र आ रही है तेरे होठों की तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है                     *** बीच  भँवर  मौन  छाया  हुआ  है  साहिल पर ये लहरें तीखी नज़र आ रही है                     *** खूब सुना तेरे लफ्ज़, लहजे और जुबां को मगर आज इनमें बारीकी नज़र आ रही है                     *** फक़त वाह के क़ाबिल नहीं तेरे फ़साने मुझे इनमें तारीख़ी नज़र आ रही है                     *** तेरी मोहब्बत के तलबगार तो हम थे मगर ये मोहब्बत सर-ए-बाज़ार बिकी नज़र आ रही है                     *** __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

सब कुछ यहाँ बेतरतीब हो गया ( शायरी ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

  सब कुछ यहाँ बेतरतीब हो गया किस्सा-ए-मोहब्बत अजीब हो गया सब कुछ यहाँ बेतरतीब हो गया जो था मेरे सबसे करीब यहाँ कम्भख्त वही मेरा रक़ीब हो गया सब कुछ लुटा दिया जिसके लिये वो कहकर छोड़ गया कि तू गरीब हो गया क्या लिक्खा है मेरी तक़दीर में ए ख़ुदा  तू ही बता 'गाज़ी' क्यों इतना बेनसीब हो गया __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

सूरत-ए-हालात ना होने दिया ( गज़ल ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

           सूरत-ए-हालात  ना होने दिया रुबरु उनको सूरत-ए-हालात* ना होने दिया, बादल छाये रहे  मगर  बरसात ना होने दिया ढूँढते   रहे    वो   महफ़िल - महफ़िल  मगर, मुन्कशिफ़* तल्ख़ी-ए-हालात* ना होने दिया हिज़्र*  में  उनकी  नागवार  गुजरी  हर  रात, ज़ाहिर   उनको   जज़्बात   ना   होने   दिया कोशिशे   तो  बहुत   की    ज़माने  ने  मगर, मंसूबो  को  उनके  आबाद  ना   होने  दिया मेरे  दुश्मन  चले  थे  हाथ  बढाने  उस ओर, हमने  किसी को  इल्तिफ़ात* ना  होने दिया  खूब टटोला उसनें मेरे दिल की अलमारी को, मेरी मुस्कराहट ने गमों से बात ना होने दिया __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी ' तल्ख़ी-ए-हालात - स्थिति की कडवाहट मुन्कशिफ़ - जाहिर , व्यक्त होना सूरत-ए-हालात - परिस्थितियों की स्थिति हिज्र - जुदाई इल्तिफ़ात - मित्रता

दो गज़ ज़मीं मेरे नाम आई ( शायरी ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

दो गज़ ज़मीं मेरे नाम आई देखो आज वो शाम आई  मेरे हिस्से खुशियाँ तमाम आई एक माँ का दामन छूटा तो अपनी बाहें पसारे धरती माँ आई  ज़मींदारी लेकर आई मेरी शहीदी, आज दो गज़ ज़मीं मेरे नाम आई खुशकिस्मत हुँ मैं वतन तेरे लिये, मेरे  ज़िस्म  की  मिट्टी काम आई  __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी ' 

Part - 8 - Heart broken💔shayari __Ghazi Acharya

Heart broken💔shayari (1) बहुत कुछ गवांया है एक तेरे लिये घर से बेघर हो गया हुँ एक तेरे लिये अब भी खत्म नहीं हुई तेरी ख्वाहिशे अब क्या दुनिया छोड़ दूँ एक तेरे लिये (2) ये तेरा इश्क़ सजिशों का हिस्सा है,,!!  जिसमें  सिर्फ  मेरा  किस्सा  है,,,,,,!! (3) मेरी लकीरें अधूरी तेरे बिना है,,! मुझे जीना फिर भी तेरे बिना है,,!! लिक्खी है बस हिज़्र की कहानी,, मेरी किस्मत है कि मेरा नाम हिना है,,!! (4) डरना मंजूर नहीं था फिर भी डरा हुआ हुँ मैं,,! मरना मंजूर नहीं था फिर भी मरा हुआ हुँ मैं,,!! (5) झूँठ कहता हुँ  कि मैं मस्त हुँ तेरे जाने से मैं अस्त व्यस्त हुँ (6) नज़रें तो उनकी आज भी झुक जाती है,,,!! वो बात अलग है कि  अदब से नहीं आज शर्म से झुक जाती है,,!! (7) अब तेरे बिना जीना पड़ेगा माँ तेरे जैसा प्यार कौन करेगा माँ सर से तेरा साया छूट गया अब मेरे कष्टो को कौन हरेगा माँ (8) मोहब्बत नहीं कुछ लोग आजमाईश करते है  वफ़ा के नाम पर जिस्मों की नुमाईश करते है सस्ता नशा करके गुज़रती है जिसकी ताऊम्र मुफ्त  की  मिले  तो वो भी फर्माईश करते है (9) नजरें झुकी है तो उसनें जरूर कुछ छुपाया होगा बखूबी जानती है कि मैं उसकी

बस इतना सा करना है __गाज़ी आचार्य 'गाज़ी '

      बस इतना सा करना है काटने वाले काटते रहेंगे  बीज नफरतों के बो देना तेरा क्या  जाता है इसमें जमा किया  जो भी  बाप ने  वो  सब खो देना अपनी ज़िन्दगी ऐश में है हमे  औरों  से  क्या लेना  बस  इतना सा  करना है बात निकल जाये जब हाथ से तो बाद में रो देना __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

मोहब्बत हो गई तो हो गई ( गज़ल ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

मोहब्बत हो गई तो हो गई  कैसे ये दिल मेरा  क्यूं ये बदल गया तुझसे ये मिलकर  क्यूं ये मचल गया कैसे समझाऊं अब दिल समझ ना पाये तेरे सिवा इस दिल को  अब कोई ना भाये  चैन मेरा खो गया नींद मेरी खो गई  क्या करू अब तुम्ही बताओ मोहब्बत हो गई तो हो गई  तेरे जाने के बाद याद आया एहसास प्यार का बाद आया तड़प  रहा  है   तेरी   खातिर लेकर दिल ये फरियाद आया हुआ महसूस बिछड़कर गलत ये बड़ी बात हो गई  चैन मेरा खो गया नींद मेरी खो गई  क्या करू अब तुम्ही बताओ मोहब्बत हो गई तो हो गई  बेसब्र हुँ मैं बेताब हुँ तेरे इंतज़ार में रोज आती हो तुम मेरे ख्वाब में ' गाज़ी '  सब  कुछ  भूल  गया  कटते है रात दिन अब तेरी याद में ये कैसी जंग है यारा  जीतकर भी मेरी ही मात हो गई  चैन मेरा खो गया नींद मेरी खो गई  क्या करू अब तुम्ही बताओ मोहब्बत हो गई तो हो गई  मोहब्बत की पहली बारिश हो रही है  दिल की ये मेरी गुजारिश हो रही है जितनी गुजरे तेरे साथ गुजरे दिल की यही बस ख्वाहिश हो रही है ज़ुदा अब मैं तुझसे कैसे रहूँ मेरी ख्वाहिश तेरी मोहब्बत हो गई  चैन मेरा खो गया नींद मेरी खो गई  क्या करू अब तुम्ही बताओ मोहब्बत हो गई तो हो गई  __ग

Part - 13 - Thoughtfull Shayari __Ghazi acharya

  Thoughtfull Shayari (1) मंजिल दूर है  रास्ता गुज़रा अभी आधा है थक सा गया हुँ चलते-चलते  लगता है ख्वहिशो का वज़न कुछ ज्यादा है (2) खो दिया था हमनें बचपन उस दिन जिस दिन लोगो नें कहा कि समझदार हो गये हो (3) यूं ही नहीं आया वो तूफान यहाँ वो एक पैगाम लेकर आया है गिर चुका है किस कदर इन्सान यहाँ वो उसका अंजाम लेकर आया है (4) इतनी बाजियां हारा हुँ मैं मगर ख़ुद से नहीं हारा हुँ मैं मौत लगी है मेरे पीछे पीछे मगर ज़िन्दगी आ रहा हुँ मैं (5) जो लोग संघर्ष करते है वो कामयाबी को किस्मत का नाम नहीं देते  (6) आना जाना लगा रहना है यहाँ आज ज़िन्दगी है कल मरना है यहाँ कोन कब तक शोक मनायेगा ये जीवन चक्र है चलते रहना है यहाँ (7) किसको कितना मुकम्मल जहाँ मिला  और नहीं  सिर्फ तू जनता है मेरे ख़ुदा  (8) दौलत से प्यार वो अन्धा कर रहा है आपदा को अवसर बनाकर  व्यापार नहीं वो धन्धा कर रहा है (9) बस कर  और  कितना सिखायेगी ज़िन्दगी और क्या-क्या दिखायेगी ना कर  इतना  मजबूर ए ज़िन्दगी इंतज़ार करुँ कि मौत कब आएगी (10) योजनाओं के नाम पर  झांसे ही झांसे है व्यवस्था के नाम पर तमाशे ही तमाशे है सब कुछ  ठीक  है  मीडिया और अखबारो

Part - 7 - Love shayari __Ghazi Acharya

                Love shayari (1) बहुत खलती है मुझे उसकी गैर मौजूदगी  शाम ढलते ही याद आती  है वो मौसीक़ी खुशी का नहीं  गम का ही सही, ज़िन्दगी  का हिस्सा तो  है  बस  यही  है आसूदगी आसूदगी - सन्तोष  (2) ऐतबार कर बैठा मैं उन रातों पर काबु  कर ना पाया जज़्बातों पर सब कुछ गवां बैठा "दिलवरिया" यक़ीन  करके  उनकी बातों पर (3) मेरे ख्वाब है अधूरे तेरे बिन है अधूरी मेरी रात ना मिले तू अगर तेरे बिन मैं मर जाऊं आज (4) तेरी खुशहाल ज़िन्दगी का  पता कुछ इस तरह गुम हो जाये,,,, कि ढूँढता रह जाये गम  और वो खुद में गुम हो जाये,,,, (5) मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर बीती बात लिखी है मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर जज्बात लिखी है कविता के हर लफ्ज़ में मैं हुँ मैनें सुबह और शाम लिखी है मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर गुजरती रात लिखी है (6) ना जाने कब तू इतनी जरुरी हो गयी,,! कि मेरी अधूरी ज़िन्दगी पूरी हो गयी,,,!!   (7) तेरी   बातें,,,,,,,,, मीठी   खीर   हो   गई  तू मेरा मन्दिर - मस्जिद तू ही पीर हो गई  जब भी मिलती मेरी नज़रों से तेरी नजरें लगता जैसे  जिगर  पार  शमशीर हो गई  (9) मेरी चाहत तुझसे है मेरी

मैं परेशान हुँ ( हिन्दी कविता ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

                      मैं परेशान हुँ मैं  परेशान  हुँ  कुछ शऊरदारो से, समाज भरा पड़ा  है समझदारों से मशवरा दे जाते  है जो  राह चलते, मैं  परेशान  हुँ  ऐसे सलाहकारो से दूसरों की पैंट में खामियां बताते है, जिनका गुजारा होता है पजामों से मोल करते है  वो चांद सितारो के, जिनके घर भरे  पड़े  है  उधारो से कब  निकलेगा  इन्सान  यहाँ  इन  झूँठे  रीति  रिवाज़  परम्पराओं से अनपढ़ो से कोई गिला नहीं 'गाज़ी' मैं  परेशान  हुँ पढ़े लिखे गंवारो से __गाज़ी आचार्य 'गाज़ी'

एहसास ( गज़ल ) __ गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

                        एहसास एक एहसास है जो मेरे पास है उसकी याद है उसकी बात है  मेरे साथ उसके जज़्बात है एक एहसास है जो मेरे पास है गवाह ये ज़मीं गवाह ये आसमाँ  गवाह वो वस्ल की बरसात है एक एहसास है जो मेरे पास है है कुछ मजबूरियाँ  जो हम में है दूरियाँ दूर है तो क्या हुआ  मेरे पास उसके खयालात है एक एहसास है जो मेरे पास है खिज़ा की वो शाक नहीं जो यूं टूटकर बिखर जाये मोहब्बत है कोई मदिरा नहीं जो यूं गिरकर उतर जाये कैसे छोड़ दूँ मैं ये साँस"गाज़ी" मेरे पास जीने की आस है  एक एहसास है जो मेरे पास है __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

मनाओ ये होली ( hindi kavita ) __विपिन दिलवरिया

               मनाओ ये होली नये रंगो  को  मिलाकर मनाओ ये होली पुराने गमो को भुलाकर मनाओ ये होली जला डालो वो  सारे गिले शिकवे जो भी है आज सारे कलुष मिटाकर मनाओ ये होली गुम हो  गया  ज़िन्दगी की भाग दौड में घूम  रहा  ख्वहिशो  की  चादर ओढ के कर्म सारे दर्ज़ होते है उसकी किताब में फिर क्यों  जीना  किसी से मूँह मोड़ के कडवी बोली नहीं मीठी बनाओ ये बोली चलो  आज  खुलकर   मनाओ  ये होली जला डालो वो  सारे गिले शिकवे जो भी है आज सारे कलुष मिटाकर मनाओ ये होली __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

Part - 12 - Thoughtfull Shayari __Vipin Dilwarya

Thoughtfull Shayari (1) ना था मालूम  कि तू इतना बदल जाएगा,,! एक मेरे गिरने से तू इतना संभल जाएगा,,!! (2) ये कोन है जो उँचा उँचा बोल रहा है इन  फिज़ाओं में  ज़हर  घोल रहा है (3) माना सब रिश्तें पराये होते है लेकिन  भाई  , भाई  होते  है (4) मेरे घर का जो सबसे हसीं गहना है,,! वो मेरी बहना है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,!! (5) जो  रिश्तें  सब  से  खास  होते है  उनमे सबसे पहले माँ-बाप होते है (6) संभालकर रखे थे जो हमनें, वो सिक्के बांट ले गये आईना तलाशते रहे हम, वो  शीशे  काट ले गये नावाक़िफ़ थे हम  मिज़ाज-ए-फ़ितरत-ए-इंसाँ से हम रिश्तें निभाते रह गये,  वो  हिस्से  बांट ले गये मिज़ाज-ए-फ़ितरत-ए-इंसाँ - मनुष्य के स्वभाव की अवस्था (7) वो  समन्दर* से  भी  गहरे  है,,! जिनमें कुछ अपनें भी चेहरे है,,!! (8) एक पल गम है , एक पल फ़न है तुम - तुम  हो  ,  तो  हम - हम  है क्या भरोसा  ज़िन्दगी  का , जीना है  तो आज जी लो कल तो एक भ्रम है (9) महँगा कर लो ख़ुद को अ दोस्त,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,! अक्सर लोग सस्ता समझकर छोड़ दिया करते है! (10) इंक़लाब की धरोहर है तू  आज़ादी  की  मोहर है तू लेकर चला था  जो  कारवां उस कारवां क

मैनें इक कविता लिखी है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

  मैनें इक कविता लिखी है मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर बीती बात लिखी है मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर जज्बात लिखी है कविता के हर लफ्ज़ में मैं हुँ मैनें सुबह और शाम लिखी है मैनें इक कविता लिखी है जिसमें हर गुजरती रात लिखी है __विपिन दिलवरिया 

हिस्से बांट ले गये ( शायरी ) __विपिन दिलवरिया

                  हिस्से बांट ले गये संभालकर रखे थे जो हमनें, वो सिक्के बांट ले गये आईना तलाशते रहे हम, वो  शीशे  काट ले गये नावाक़िफ़ थे हम  मिज़ाज-ए-फ़ितरत-ए-इंसाँ से हम रिश्तें निभाते रह गये,  वो  हिस्से  बांट ले गये __विपिन दिलवरिया 

बड़ी रुला गई बहना आज तेरी विदाई _विपिन दिलवरिया

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बड़ी रुला गई बहना आज तेरी विदाई खुशियों की इस घड़ी में जाने क्यों आज मेरी आँख भर आई बड़ी रुला गई बहना आज तेरी विदाई जाने क्यों जहन में आज बीते दिनो की बात लौटकर आई मिन्नतो बाद वो रात आई श्रावण माह वो बरसात आई चहल पहल थी घर पर मेरे  घर में जमा थी खूब लुगाई वो पल मेरे समझ ना आया सब चहरों पर हंसी आई जब रोने की एक आवाज आई एक अलग सा शोर हुआ  और सब नें दी बधाई देखो घर में तुम्हारे  बिटिया आई बिटिया आई खिल उठी थी वो आँगनाई जब नन्हें पैर तेरे  खुशियों की सौगात लाई कदम पड़े थे घर में तेरे जब घर में थे हम भाई भाई खुशियों की इस घड़ी में जाने क्यों आज मेरी आँख भर आई बड़ी रुला गई बहना आज तेरी विदाई याद है तुझे वो कहानियाँ याद है तुझे वो शैतानियाँ जब  खेल-खेल  में   हम  करते थे बेईमानियाँ याद है वो बचपन की लड़ाई याद है वो बचपन की पिटाई याद है वो जब लैम्प के चारो  ओर बैठकर हम करते थे पढाई याद है वो पिताजी का पढाना  किताब लेकर जबरदस्ती बैठना याद है वो पढते पढते सो जाना और पिताजी की एक  आवाज पर नींद का उड़ जाना हँसते खेलते लड़ते झगड़ते  जाने  कब  दिन  गुज़र गये पिता की डांट से माँ के लाड़ से जाने  कब  दिन  संवर ग

Part - 11 - Thoughtfull Shayari __ Vipin Dilwarya

        Thoughtfull Shayari (1) गलतफहमी रखते है जो,  उन्हें बता दूँ ये सियासत अब वो पुरानी नहीं रही ये 21 वीं सदी का क्रन्तिकारी युग है अब वो 20 वीं सदी वाली बात पुरानी नहीं रही जागीर समझ बैठे है जो दिल्ली को,  उन्हें बता दूँ  ये दिल्ली किसी की खानदानी नहीं रही (2) घना  कोहरा  ठंड  बढ़ रही है  गरीबी फुटपात पर मर रही है ना सर पर छत है ना तन पर कपड़ा  जिसके सहारे  जीने  की उम्मीद थी वो धूप निकलने से डर रही है (3) चाहो तो बदल सकता है उनका नज़रिया तुम्हारे लिये ख़ुद एक बर बदलकर तो देखो ख़ुद ब ख़ुद संभल जाएगा ये ज़माना ख़ुद एक बार संभलकर तो देखो (4) देखो ये  जी  का  जंजाल  बन गया है,,! ये जनसैलाब आज सवाल बन गया है,,!! गुस्ताखी कर बैठी है ये हवायें दियो से,,! देखो ये दिया आज मशाल बन गया है,,!! (5) बहारें गयी अब ख़िज़ां चल रही है,,,,,,,,,,,,,,,,,,! कोई बताओ हुक्मरानों को फ़िज़ा बदल रही है,,!! (6) एक तरफ जवान है , एक तरफ किसान है  दोनों इस मिट्टी पर छिडकते अपनी जान है क्यों आमने-सामने  है  वो आज यहाँ, जिनकी होती एक दुसरे से पहचान है किस ओर जा रहा है वो देश, जिस देश  का  नारा  "जय जवान जय किसान&

ये कैसा लोकतन्त्र है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

  ये कैसा लोकतन्त्र है जहाँ सच्चाई छुपाई जाती है  झूँठी खबर दिखाई  जाती है उसे प्रजातंत्र कहुँ  या राजतंत्र, जहाँ  हर  उठती  आवाज़  दबाई  जाती है ये कैसा लोकतन्त्र है जहाँ निहत्थो पर पानी  की  बौछारें  और  लाठिया चलायी जाती है तस्वीर जलाना वहाँ कोई बड़ी बात नहीं, जहाँ आधी रात बेटियां जलायी जाती है __विपिन दिलवरिया 

मैंने पूछा ज़िन्दगी क्या है ? __ विपिन दिलवरिया

         मैंने पूछा ज़िन्दगी क्या है ? मैंने पूछा ज़िन्दगी क्या है ? किसी ने कहा नरक ,  किसी ने कहा जन्नत किसी ने कहा गम , किसी ने कहा मोहब्बत किसी ने कहा दुआ ,किसी ने कहा बददुआ  किसी ने कहा मौका , किसी ने कहा धौखा किसी ने कहा नियम , किसी ने कहा सयंम किसी ने कहा श्रम, किसी ने कहा मतिभ्रम  किसी ने  कहा  ज़िन्दगी का नाम जिहान है  किसी ने कहा ज़िन्दगी का नाम इम्तिहान है किसी ने  कहा  सफ़र  मंजिले-ए-ज्ञान का किसी ने कहा सफ़र मंजिले-ए-निर्वाण का लोग कहते गये और मैं सुनता गया मगर मैं ज़िन्दगी को कभी समझ ना पाया अन्तिम साँस तक शब्द चुनता गया मगर ज़िन्दगी को परिभाषित कर ना पाया   __विपिन दिलवरिया ( मेरठ )

ये मेरा हिन्दुस्तान है ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

                 ये मेरा हिन्दुस्तान है शौर्य की मिसाल है  तिरंगा जिसकी पहचान है ये मेरा हिन्दुस्तान है सीने पर गोली खायी आज़ादी की अलख जगाई इस मिट्टी में जन्मे  सुभाषचंद्र बोस,भगतसिंह  राजगुरु,सुखदेव जैसे इन्सान है इस मिट्टी पर अपनें खून से  लिक्खी आज़ादी की दास्तान है  ये मेरा हिन्दुस्तान है ना कभी हम घबराये ना कभी कदम डगमगाये बैठे सरहद पर सीना तान है ऐसे मेरे देश के जवान है ये मेरा हिन्दुस्तान है भाईचारे की मिसाल है सर्वधर्म है मेरा भारत यहाँ हिन्दु है मुसलमान है पनाह दी हर मज़हब को  ऐसा मेरा भारत महान है एक घर में रहती  यहाँ गीता और कुरान है ये मेरा हिन्दुस्तान है इस मिट्टी में जन्में श्याम  इस मिट्टी में जन्में राम है इस मिट्टी में जन्में महावीर स्वामी इस मिट्टी में जन्में बुद्ध भगवान है ये मेरा हिंदुस्तान है इस मिट्टी में जन्में गाँधी, फूले और पटेल इस मिट्टी में जन्में भीमराव  अम्बेडकर जैसे विद्वान है ये मेरा हिन्दुस्तान है इस मिट्टी में जन्में  वाग्भट, मिहिर, आर्यभट्ट इस मिट्टी में जन्में होमी भाभा और कलाम है ये मेरा हिन्दुस्तान है शौर्य की मिसाल है  तिरंगा जिसकी पहचान है ये मेरा ह

ये सियासत अब वो पुरानी नहीं रही ( shayari ) __विपिन दिलवरिया

                ये सियासत अब वो                         पुरानी नहीं रही गलतफहमी रखते है जो,  उन्हें बता दूँ ये सियासत अब वो पुरानी नहीं रही ये 21 वीं सदी का क्रन्तिकारी युग है अब वो 20 वीं सदी वाली बात पुरानी नहीं रही जागीर समझ बैठे है जो दिल्ली को,  उन्हें बता दूँ  ये दिल्ली किसी की खानदानी नहीं रही __विपिन दिलवरिया 

सुख की तितली के पीछे मात भागो ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

सुख की तितली के पीछे मात भागो सुख की तितली के पीछे मात भागो ये रोज नये फूलो को चुनती है भाग्य की लकीरो के पीछे मत भागो ये रोज नये ख्वाबों को बुनती है परिश्रम के समंदर से सींचकर एक बागवाँ बनाओं जहाँ मधुकर चकरी तितलियाँ सब मंडराती है __विपिन दिलवरिया 

मैंने हिस्से में बस माँ को माँग लिया ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

मैंने हिस्से में बस माँ को माँग लिया ये ज़मीन जायदाद रुपया पैसा इसने तो रिश्तों को बांट दिया कमाया किसने ज़िन्दगी भर और किसने हिस्सो को माँग लिया निगाहें गडी थी किसी की मकाँ पर तो किसी ने दुकाँ को माँग लिया मैं घर में सबसे छोटा था  मैंने हिस्से में बस माँ को माँग लिया __विपिन दिलवरिया 

ग़रीबी ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

                    ग़रीबी लात  मार  दे  हर  कोई  जो भी विधि का मारा है साथ  छोड़  दे  हर कोई जो  ग़रीबी  का  मारा है भूख भी क्या  चीज़ बनायी ओ रब्बा  इसमे ना मेरा ना तुम्हरा है ज़ुर्म सबसे बड़ा ग़रीबी ग़रीब का ना कोई सहारा है लात  मार  दे  हर  कोई  जो भी विधि का मारा है साथ  छोड़  दे  हर कोई जो  ग़रीबी  का  मारा है * * एक ने अपने प्राण गवांये एक शिकारी कहलाया है एक यहाँ  राजा कहलाये एक भिखारी कहलाया है   राजा और रंक तूने बनाये  ये भेद भी  तूने  बनाया है एक सर पर  छत संगमरमर की एक  पर  उसारा है लात  मार  दे  हर  कोई  जो भी विधि का मारा है साथ  छोड़  दे  हर कोई जो  ग़रीबी  का  मारा है * * जग में अपना कौन पराया किसको   किसनें  जाना है रिश्ते  नाते  भूल  सबनें ख़ुदा दौलत को माना है कौन  अपना  कौन  पराया किसको कह दें अपना यहाँ गैरों ने तो छोड़ दिया यहाँ अपनो नें हक मारा है लात  मार  दे  हर  कोई  जो भी विधि का मारा है साथ  छोड़  दे  हर कोई जो  ग़रीबी  का  मारा है __विपिन दिलवरिया ( मेरठ ) विधि - किस्मत उसारा - छप्पर

ज़िन्दगी सिमट रही है ( shayari ) __विपिन दिलवरिया

            ज़िन्दगी सिमट रही है  हर नये  साल के  साथ  ज़िन्दगी  गुजर रही है ! कोन जाने  उम्र  बढ़ रही है या उम्र घट रही है !! मिलते है  हर  नये  साल  के  साथ  नये तजुर्बे ! तजुर्बे  तो बढ़ रहे है  मगर ज़िन्दगी घट रही है !! ये दौर भी अजीब है'दिलवरिया'21वीं'सदी का ! तकनिकी  बढ़ रही  पर ज़िन्दगी सिमट रही है !! __विपिन दिलवरिया   ( मेरठ )

Part - 10 - Thoughtfull Shayari __Vipin Dilwarya

    Thoughtfull Shayari (1) अमीर-ए-शहर है सुनवाई क्या होगी अदालत में ! ग़रीबी गुनाह  है  जनाब क्या रखा है वकालत में !! (2) आसमाँ गुल्ज़ार है मगर परिंदा घबराया है,,! लगता है उनके घरो पर खतरा मंडराया है,,!! (3) एक पल की जान पहचान दूजे पल इज़हार देख उसका रंग रूप और कर देते है इकरार  इक मुलाकात दिन में और दूजी में हुई रात ये प्यार नहीं पगली ये है जिस्मों का व्यापार (4) घरो में कैद करके सबके रोजगारों को पेल गया किसी के अपने ले गया किसी के सपनों से खेल गया अजीब था ये साल '2020' साला  '20' , '20' खेल गया (5) कम्भक्त  ये पांव  भी  पड़ाव नहीं लेते किसी डगर पर  ये अटकाव नहीं लेते कोन डगर थमेंगे तेरे पांव"दिलवरिया" आजकल ये दरख्त भी छांव नहीं देते (6) उसनें किया, माना वो छल था चोट मिली  वो  गुजरा पल था कर्म सबके अपने-अपने,,,मुझे मरहम मिला कर्मों का फ़ल था (7) इत्तफाक*बहुत कम लोग रखते है मुझसे क्योंकि मैं किसी से समझौता नहीं करता (8) हम वो नहीं जो जताया करते है,,,,,,,,,,!! अहसान करके हम भूल जाया करते है,,!! (9) हर नये  साल के  साथ  ज़िन्दगी  गुजर रही है ! कोन जाने  उम्र

जो बीत गया सो बीत गया ( hindi kavita ) __विपिन दिलवरिया

     जो बीत गया सो बीत गया साल    पुराना    बीत    गया बातें  बहुत  कुछ  सीख  गया छोड़ो   बीते   कल  की  बातें जो बीत  गया  सो  बीत गया रात    पुरानी    बात   पुरानी गुजरते साल गुजरती जवानी गिले - शिकवे  सब  भूलकर शुरू करो  अब  नई  कहानी पुरानी  कहानी  जो भूल गया वो समझो  लड़ाई  जीत गया फतह कर उसनें जग पा लिया जो  ख़ुद  से लड़ना सीख गया छोड़ो   बीते  कल   की  बातें जो  बीत  गया  सो बीत गया ~विपिन दिलवरिया ( मेरठ )