मैं परेशान हुँ ( हिन्दी कविता ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '
मैं परेशान हुँ
मैं परेशान हुँ कुछ शऊरदारो से,
समाज भरा पड़ा है समझदारों से
मशवरा दे जाते है जो राह चलते,
मैं परेशान हुँ ऐसे सलाहकारो से
दूसरों की पैंट में खामियां बताते है,
जिनका गुजारा होता है पजामों से
मोल करते है वो चांद सितारो के,
जिनके घर भरे पड़े है उधारो से
कब निकलेगा इन्सान यहाँ इन
झूँठे रीति रिवाज़ परम्पराओं से
अनपढ़ो से कोई गिला नहीं 'गाज़ी'
मैं परेशान हुँ पढ़े लिखे गंवारो से
__गाज़ी आचार्य 'गाज़ी'
Thank u bhai
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