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Showing posts from August, 2020

तुमसे बिछड़कर ( song ) __विपिन दिलवरिया

              तुमसे बिछड़कर  ( song ) दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं तुमसे बिछड़कर... तेरे साथ ज़िन्दगी अब जीना चाहतें है ज़ाम   मोहब्बत   का  पीना  चाहतें है किसी के लिये भी बदले नहीं हम रख दूँगा खुद को अब मैं बदलकर... दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं तुमसे बिछड़कर... * * तडपायें मुझे वो सारी बातें हुई थी जो तुमसे जाने अनजानें... मिली थी जो तुमसे मेरी निगाहें भरने लगा हुँ  अब  तो  मैं आहें... किसी के लिये भी रुकते नहीं हम चलने लगा हुँ अब मैं रुक रुककर... दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं तुमसे बिछड़कर... * * ख्वाबों में जबसे आने लगे तुम होने लगे  हम  अब ख़ुद में गुम... छाई है मुझ पे ऐसी खुमारी रहने लगे हम अब गुम-सुम... किसी के लिये भी डरते नहीं हम जीने लगा हुँ  अब  मैं डर डरकर... दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं तुमसे बिछड़कर... तेरे साथ ज़िन्दगी अब जीना चाहतें है ज़ाम   मोहब्बत   का  पीना  चाहतें है किसी के लिये भी बदले नहीं हम रख दूँगा खुद को अब मैं बदलकर... दिल कह रहा है तुमसे मिलकर जी ना सकूँगा मैं त

Part - 6 - Heart broken💔shayari __Vipin Dilwarya

       Heart broken💔shayari (1) उसके हर गम को हंसकर सह लेते है उसकी कमियों को नज़रअंदाज कर देते है हैरान है वो सितमगर उसके हर इल्ज़ाम की सज़ा अपनी खमोशियों से देते है (2) सितारें गर्दिश में कुछ इस तरह है, पता है.... साख से पत्ता गिरे या बरसते बादल रुके इल्ज़ाम हमी पे आता है, पता है.... मेरे इश्क़ की कहानी भी कुछ इस तरह है वफाएँ भी हमने की और बदनाम भी हमी हुए है, पता है.... (3) बड़ी खराब है इश्क़ की बीमारियाँ बिन मतलब बनती  है  कहानियाँ... चार  दिन की  ज़िन्दगी में दो  पल की खुशी है ये इश्क़, कहता है दिलवरिया... वक्त से संभल जा  ए  आशिक़, वरना बर्बाद कर जाता है ये इश्क़, जवानियाँ... (4) तेरे दिल में मेरी यादों को पनाह नहीं है लौटा रहा हुँ तेरे ख्वाब मेरी आँखों में जगह नहीं है (5) मेरी  मोहब्बत   तेरी   दिल्लगी ये तो  मुझ   पर   तेरी  ज़फा है..!! मोहब्बत   की    इस   कहानी में तु  बेवफ़ा  ,  मेरी तो वफ़ा है..!! मिटा  दूँ   तुझे   तेरी  बेवफ़ाई के लिये, तो इसमें मेरी खता है..!! मौत तो  आज़ादी  होगी  तेरी, जा   बख्श  दी  तेरी  ज़िन्दगी ये   ज़िन्द

कहां चले नज़रें चुराकर ( Shayari ) __ Vipin Dilwarya

कहां चले नज़रें चुराकर कहां चले नज़रें चुराकर खुश हो पीठ में खंज़र घुसाकर  जैसे भी हो अपनें हो बख्श देते है अपना समझकर चालाकियाँ समझते हो जिन्हें हमारी मोहब्बत है वरना लहरें भी लौट  जाती है किनारों से टकराकर __विपिन दिलवरिया 

Part - 7 - Thoughtfull Shayari __ Vipin Dilwarya

        Part - 7 - Thoughtfull Shayari (1) सहरा तरस रहा है ये बादल है कि  समंदर पे बरस रहा है (2) उस्ताद नहीं हुँ मानता हुँ मगर जैसे को तैसा समझाना बखूबी जानता हुँ (3) पढ़ के देख मुझको समझ लेगा मेरे शब्दों में तु ख़ुद को पा लेगा (4) शायरी का एक दौर जा रहा है राहत नहीं पूरा इन्दौर जा रहा है (5) जीस्त-ए-शायरी का खाज़ाना जा रहा है!! कोई रोको  राहत का ज़नाज़ा जा रहा है!! (6) तेरे मज़कूर लफ्ज़ तुझे आबाद रखेगी,,!! ये दुनियाँ है जब तक तुम्हें याद रखेगी,,!! (7) सुख़न से महरूम रह गयी वो महफ़िल,,,,!! जिसमें शहर के सारे सुख़नवर शामिल थे.!! (8) बुढ़ापा है नज़र धुंधला गई आँखों की पतझड़ है इसमें क्या ख़ता शाख़ों की (9) किसे सुनाऊँ मैं अपनी कहानी किसी के पास वक्त नहीं... एक कलम कुछ पन्ने बस लिख लेते है जज़्बात और कुछ नहीं... __विपिन दिलवरिया

आँखों पर पट्टी बाँधकर बैठे है ( हिन्दी कविता ) __ विपिन दिलवरिया

आँखों पर पट्टी बाँधकर बैठे है  आँखों पर पट्टी बाँधकर  बैठे है पढ़ लिखकर  गवांर बन बैठे है सही गलत की पहचान कैसे हो मानसिक गुलाम जो बन बैठे है गुलामियत खून में  है  उन लोगों के जो देशभक्त के नाम पे अंधभक्त बन बैठे है हिन्दु मुस्लिम भाईचारे की बात करते है फिर  क्यो   हिन्दु   मुस्लिम  चिल्लातें है भाईचारे की मिसाल देते है जो वही धर्म के ठेकेदार बन बैठे है राजनीति का कोई धर्म नहीं है नफ़रत  उन  लोगों  से  है  जो धर्म के नाम पे नेता बन बैठे है गाय नाम  पर   राम  नाम  पर बस राजनीतिक रोटी सेकतें है नफ़रत  उन  लोगों  से  है  जो गाय नाम पे व्यपार कर बैठे है सही को  सही  गलत  को गलत कहने  की  हिम्मत  रखता  हुँ मैं सपा,बसपा , भाजपा से मतलब  नहीं मुझे,नफ़रत उन लोगो से है  जो गाय  के  दलाल  बन  बैठे है बात ना कर भगवे रंग और प्रभु राम की भगवा रंग , प्रभु राम मेरे खून में बहते है नफ़रत  उन  लोगो  से  है  जो राजनेता  इनके  नाम पे  देश  के गद्दार बन बैठे है __विपिन दिलवरिया 

बुढापा लगा है मौत बुलानें में ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

बुढापा लगा है मौत बुलानें में तलवे   घिस   गये  आने  जानें में उम्र  गुज़र  गयी  जिसे  कमानें में ज़िन्दगी भर  जो  कमाई  इज़्जत अपनें    ही   लगे  उसे   गवानें में     पाल     पौशकर     बड़ा    किया  जिसको  वजूद  दिया   ज़मानें में क्या    किया     है     मेरे    लिये एक पल  ना  लगा उसे  सुनानें में    शाम - ए - हयात   ढल      गयी    औलाद   को   कुछ     बनानें  में अरमानों   का   गला   घोट  दिया जिसनें दो वक्त की रोटी कमानें में   मूँह का निवाला भी उसे खिलाया  पर टुकड़ा दे ना सका वो खानें में ज़वानी बुलाती  रही ज़िन्दगी मगर बुढापा  लगा   है   मौत  बुलानें में ज़िन्दगी एक पहेली है"दिलवरिया" नाकाम इसे  हर कोई सुलझानें में __विपिन दिलवरिया 

Part - 5 - Love shayari __ Vipin Dilwarya

                        Part - 5 - Love shayari (1) जाते हुए को टोकना कैसा आते हुए को रोकना कैसा और ज़माने का डर नहीं हमको बस तुम्हारे इकरार का इंतज़ार था अब तुम आ गये हो तो सोचना कैसा (2) ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से मिला दिया मेरे टूटे दिल के हर टुकडें को दिल से लगा लिया खो गया था दूनियाँ की भीड़ में कहीं उसनें मुझे मुझसे मिला दिया (3) मेरे अश्क मोहब्बत की निशानी है ना मानो तो बहता पानी है फ़कत ये अल्फाज़ नहीं ये गज़ल मेरी कहानी है बस पा ना सका मैं उसको मेरी मोहब्बत में आज भी रवानी है (4) लफ्ज़ो को मैनें स्याही में भीगो दिया जज्बतों को पन्नो की गहराई में डुबो दिया ये मौसम बरसात का तो नहीं ये मौसम भी आज बे मौसम रो दिया कुछ तो हुआ है बेवजह नहीं ये हलचल इन बादलों में लगता है आज फिर किसी सच्चे आशिक़ ने अपनी मोहब्बत को खो दिया (5) छुपा हुआ चेहरा तेरा सामनें आ जाये बारिश की बूँदें जैसे तेरी पायल खनक जाये मेरी धड़कन थम जाये मेरी सांसे रुक जाये छुपा हुआ चेहरा तेरा सामनें आ जाये (6) पाना है फूल  तो काँटों से लड़ना होगा, आग का दरिया है और डूब के

दास्ताँ-ए-मोहब्बत दिलवरिया ( Shayari ) __ Vipin Dilwarya

दास्ताँ-ए-मोहब्बत दिलवरिया  ए ख़ुदा  कमाल  तेरी ख़ुदाई  भूलना चाहा जिसे उसी की याद पल पल आई क्या खूब लिखी  दास्ताँ-ए-मोहब्बत दिलवरिया  जोडी वहाँ बनाई  जहाँ  लिखी  थी  बस  जुदाई __विपिन दिलवरिया 

भरोसा.. ( Song ) __ Vipin Dilwarya

                  भरोसा.. ( Song ) मत पूछ मेरे दिल की कहानी बस नहीं चलता अब इस दिल पर, ये दिल करता है अपनी मनमानी समझाता हुँ पर समझता नहीं दिल, मेरी सुनता नहीं इसे बस अपनी अपनी सुनानी * * * * दिल पे नहीं है बस अब तो मेरा... तुझसे है शामें तुझसे सवेरा..... संभालें नहीं संभलें अब दिल ये मेरा.... मोहब्बत का ऐसा हवा का ये झौंका.... वादों पे तेरे इतना भरोसा खुद पे नहीं है जितना भरोसा.... * * गिला तुझसे कैसे अब मैं करू... तेरे बिना ज़िन्दगी अब मैं ड़रु... ज़ुदा तुझसे कैसे अब मैं रहूँ... हुई है मोहब्बत अब क्या करु... रोके रुके ना अब दिल ये मेरा.... लेकिन ज़मानें नें मुझको है रोका..... वादों पे तेरे इतना भरोसा खुद पे नहीं है जितना भरोसा.... * * याद आती है तेरी बीती बातें याद आते  है  बीते  हुए दिन.... कटती नहीं है अब मेरी रातें रातें कटती है तारे गिन गिन.... संभालें नहीं संभलें अब दिल ये मेरा.... मोहब्बत का ऐसा हवा का ये झौंका.... वादों पे तेरे इतना भरोसा खुद पे नहीं है जितना भरोसा.... __विपिन दिलवरिया

मंजिल वही पाते है जो संभल जाते है ( गज़ल ) __विपिन दिलवरिया

मंजिल वही पाते है जो संभल जाते है उम्र  गुजरती  है  तो  चेहरें  बदल  जाते हैं, इन्सान  है  अपनी  फितरत  बदल जाते हैं बदनाम  है   बस  मोहब्बत  तो , मोहब्बत  नहीं  मोहब्बत  करने  वाले  बदल जाते हैं अक्सर  ज़मानें  को   दोष   देते  है  लोग, ज़माना नहीं ज़मानें के लोग बदल जाते हैं ज़रा कदम क्या डगमगाये राह-ए-मंजिल, यहाँ   लोगों   के    रास्तें   बदल  जाते  हैं राहें उसुलों की  है ज़ख्म तो जरुर मिलेंगे, मंजिल वही  पाते  है  जो  संभल  जाते हैं फूँक फूँककर कदम रखता है"दिलवरिया" मेरी किस्मत  है  कि  मेरे पैर जल जाते हैं __विपिन दिलवरिया 

इश्क़ फ़रमानें का हुनर भी आता है ( Shayari ) __विपिन दिलवरिया

इश्क़ फ़रमानें का हुनर भी आता है इश्क़ है तो इश्क़  फ़रमानें का हुनर भी आता है ना हो मंजूर अगर हमें छुपाने का हुनर भी आता है मुकम्मल है मेरी मोहब्बत  सिर्फ मुझसे, हमें दूर रहकर निभानें का हुनर भी आता है गुजरनें से डरती है  जिस भँवर से कश्तियाँ, उन्हें पार लगाने का हुनर भी आता है वो तैराक बड़े कमाल के है मगर हमें कमाल डुबानें का हुनर भी आता है __विपिन दिलवरिया

मेरे ख़याल मेरे लहज़े में नहीं ( Shayari ) __विपिन दिलवरिया

मेरे ख़याल मेरे लहज़े में नहीं कुछ  मतले  कुछ  किस्से  कहानियों  में    मिलते  हैं... कुछ  फ़लसफ़े  होश में नहीं मदहोशियों   में    मिलते  हैं... ढूँढता रहा  वो  जवाब दूनियाँ    के    शोर  में, कुछ जवाब शोर में नहीं सरगोशियों  में मिलते हैं... इतना  आसाँ  नहीं  मेरे  ख़यालों से रूबरू होना, मेरे ख़याल मेरे लहज़े में नहीं  खमोशियों    में    मिलते   हैं... __विपिन दिलवरिया 

अनपढ़ शिक्षा बेच रहें हैं ( आज के दौर पर कविता ) ___विपिन दिलवरिया

अनपढ़ शिक्षा बेच रहें हैं लंगड़ें   दौड   रहें  ,  गुंगे   बोल  रहें  है  बहरे   सुन   रहें  ,  अन्धें   देख  रहें  है,  झूँठी    कसमें      झूँठे     वादे ,   और  यहाँ   सब   लम्बी  लम्बी  फेंक  रहें  है किसी को  मिले   या   ना  मिले , यहाँ सब अपनी  अपनी  रोटियां सेंक रहें है इंजीनीयर   सब्ज़ी    वकील    पकोडें, और  यहाँ  अनपढ़   शिक्षा  बेच  रहें है फ़कीरी   दिखाकर  अमीरी   लूट   गये, बनाकर  फ़कीर  ख़ुद माल खैंच  रहें है उसे    सेवक    कहुँ      या    व्यापारी, जो चाय  बेचते थे आज देश बेच रहें है तमाशबीन यहाँ की जनता"दिलवरिया" आज  सब  लोग   तमाशा   देंख  रहें है __विपिन दिलवरिया 

वो सौदा करते रहे आसूँओं का ( गज़ल ) ( Shayari ) __ Vipin Dilwarya

वो सौदा करते रहे आसूँओं का दरिया       एक       दो       किनारें   है, हम इस  पार   वो   उस  पार  बुलारें  है बड़ा  रौब   है   उनके   लहज़े  में  मगर, वो जुगनू  तो  हम  फ़लक  के सितारें है खता तो  बड़ी कर  बैठे मोहब्बत करके,  संगदिल  है  वो  जिसपे हम दिल हारें है मोहब्बत  भी  इस  कदर  की  है  उनसे, वो  शादीशुदा  हम  आज  भी  कुवांरे है इश्क़  की  बाज़ी  तो  यूं  जीत  गये  वो, नामालूम है , वो  जीते  नहीं  हम  हारें है वो सौदा करते  रहे  आसूँओं  का मगर, एक हम  है  उनके  लिये आँसू बहारें  है रह-ए-इश्क़ कुछ टुकडें इस कदर बिखरें  है , वो टूटे  दिल के  सब  टुकडें हमारें है तेरा ग़म कम है ज़मानें भर "दिलवरिया"  यहाँ सब तेरे ग़म से ज्यादा ग़म कमारें है __विपिन दिलवरिया