तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है ( गज़ल ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '
तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है
ख़िज़ां में शाख़ सूखी नज़र आ रही है
तेरे होठों की तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है
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बीच भँवर मौन छाया हुआ है
साहिल पर ये लहरें तीखी नज़र आ रही है
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खूब सुना तेरे लफ्ज़, लहजे और जुबां को
मगर आज इनमें बारीकी नज़र आ रही है
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फक़त वाह के क़ाबिल नहीं तेरे फ़साने
मुझे इनमें तारीख़ी नज़र आ रही है
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तेरी मोहब्बत के तलबगार तो हम थे मगर
ये मोहब्बत सर-ए-बाज़ार बिकी नज़र आ रही है
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__गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '
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