तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है ( गज़ल ) __गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

 तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है


                   

ख़िज़ां में शाख़ सूखी नज़र आ रही है

तेरे होठों की तबस्सुम फिक़ी नज़र आ रही है

                    ***

बीच  भँवर  मौन  छाया  हुआ  है 

साहिल पर ये लहरें तीखी नज़र आ रही है

                    ***

खूब सुना तेरे लफ्ज़, लहजे और जुबां को

मगर आज इनमें बारीकी नज़र आ रही है

                    ***

फक़त वाह के क़ाबिल नहीं तेरे फ़साने

मुझे इनमें तारीख़ी नज़र आ रही है

                    ***

तेरी मोहब्बत के तलबगार तो हम थे मगर

ये मोहब्बत सर-ए-बाज़ार बिकी नज़र आ रही है

                    ***


__गाज़ी आचार्य ' गाज़ी '

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