ग़रीबी ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया
ग़रीबी
लात मार दे हर कोई
जो भी विधि का मारा है
साथ छोड़ दे हर कोई
जो ग़रीबी का मारा है
भूख भी क्या
चीज़ बनायी ओ रब्बा
इसमे ना मेरा ना तुम्हरा है
ज़ुर्म सबसे बड़ा ग़रीबी
ग़रीब का ना कोई सहारा है
लात मार दे हर कोई
जो भी विधि का मारा है
साथ छोड़ दे हर कोई
जो ग़रीबी का मारा है
*
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एक ने अपने प्राण गवांये
एक शिकारी कहलाया है
एक यहाँ राजा कहलाये
एक भिखारी कहलाया है
राजा और रंक तूने बनाये
ये भेद भी तूने बनाया है
एक सर पर
छत संगमरमर की
एक पर उसारा है
लात मार दे हर कोई
जो भी विधि का मारा है
साथ छोड़ दे हर कोई
जो ग़रीबी का मारा है
*
*
जग में अपना कौन पराया
किसको किसनें जाना है
रिश्ते नाते भूल सबनें
ख़ुदा दौलत को माना है
कौन अपना कौन पराया
किसको कह दें अपना यहाँ
गैरों ने तो छोड़ दिया
यहाँ अपनो नें हक मारा है
लात मार दे हर कोई
जो भी विधि का मारा है
साथ छोड़ दे हर कोई
जो ग़रीबी का मारा है
__विपिन दिलवरिया ( मेरठ )
विधि - किस्मत
उसारा - छप्पर
Bahut khoob bhai
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