हँसता खेलता परिवार बड़ा खुश था ( हिन्दी कविता ) __विपिन दिलवरिया

हँसता खेलता परिवार बड़ा खुश था

एक  खोली थोडा  दु:ख था

सबका  साथ  बड़ा सुख था


माता - पिता     और     भाई - बहन

हँसता खेलता परिवार बड़ा खुश था


खूब  कमाई    धन    दौलत 

ज़िन्दगी के  दु:ख  छँट  गये


घर आई  भौजी  बहन  गई ससुराल 

एक पौध तो लगाई पर पेंड़ कट गये


खूब सजा था  'शाखें गुल सा'

उस घर के सारे फूल छँट गये


रिश्ते बरसते थे जिस आस्माँ से मगर

आज  रिश्तो  के सारे बादल छँट गये


जग  नाम था जिन रिश्तो का

वो रिश्ते बस नाम के बच गये


हाथ फैल  गया  बन्द मुट्ठी खुल गई

फैल गई आँगनाई पर चूल्हे बँट गये


खोली बन गयी  कोठी मगर

सबके  यहाँ  कमरे  बँट  गये


थी गरीबी रिश्ते अनमोल थे "दिलवरिया"

आई अमीरी  तो रिश्तो  के मोल घट गये



__विपिन दिलवरिया ( मेरठ )


Comments

  1. बहुत बढ़िया लिखा।
    👍👍👍🙏

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    1. जी बहुत शुक्रिया आभार 🙏🙏

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