उसका दिल , दिल नहीं एक धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

    उसका दिल , दिल नहीं एक
     धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी




प्यार का दिखावा कर
वो दिलों के साथ गेम खेला करती थी
उसका दिल , दिल नहीं एक
धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी

ये इश्क़ , ये प्यार , ये मोहब्बत ,
उसके लिए एक मजाक था
सोना बाबू बोलकर वो 
बस प्यार जताती थी और
अगले ही पल बिज़ी बताकर 
मुझसे पीछा छुड़ाकर किसी
और से मिलने का वादा करती थी

प्यार तो उसका एक दिखावा
वो दिलों के साथ गेम खेला करती थी
उसका दिल , दिल नहीं एक
धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी

ऐसा नहीं था कि वो मुझसे
प्यार नहीं करती थी
वो मुझसे मिलने आती 
मुझे प्यार करती 
बड़ा दुलार करती थी

पर उससे मिलने की खातिर
उसकी एक कॉल पर
कभी भाई कभी चाचा कभी दोस्त
कभी पापा बताकर
मुझे छोड़कर चली जाती थी

प्यार तो उसका एक दिखावा 
वो दिलों के साथ गेम खेला करती थी
उसका दिल , दिल नहीं एक
धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी

वो मुझसे मिलकर फ्राय डिनर 
को बोलती और 
उससे मिलकर लोंग ड्राइव 
को बोलती थी

बाकी बची शॉपिंग , 
पॉकेट मनी के लिए
ना जाने कितनों से मिला करती थी

मेरे पास आकर उसे भाई बोलती
उसके पास जाकर मुझे दोस्त बोलती
ना जाने ऐसे ही वो कितनों का काटती थी
और आंखो में आंखे डालकर
झूठ बोलना उसकी एक नायाब कला थी

प्यार तो उसका एक दिखावा 
वो दिलों के साथ गेम खेला करती थी
उसका दिल , दिल नहीं एक
धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी

एक दिन तो ये नकाब चेहरे 
का उठना ही था
राज़ दिलों से खेलने का 
खुलना ही था
रंग चेहरे का उड़ गया देखकर
दो आशिक़ को एक साथ पाकर

सवाल किए जब उससे तो वो
सवाल का जवाब सवाल किया करती थी

कोई फर्क नहीं पड़ा उसे
वो दोनों को छोड़कर चली गई 
ना जाने ऐसे वो कितनों से प्यार
और कितनों का इंतेज़ार करती थी

प्यार तो उसका एक दिखावा
वो दिलों के साथ गेम खेला करती थी
उसका दिल , दिल नहीं एक
धर्मशाला थी जो किराए पर मिलती थी


By_  Vipin Dilwarya

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