" अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं , मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )
" अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं
मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं "
अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं
मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं ।
उजागर नहीं करता मैं अपने दर्द को
इस दर्द से तो मोहब्बत सी हो गई है ,
बड़े बेदर्द है इस ज़माने के लोग सभी
अपने दर्द की दवा मैं खुद बना लेता हूं ,
अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं
मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं ।
किसे बयां करूं मैं अपने गम को यहां
कोई तकल्लुफ नहीं रखता इस जहां में ,
मुफलिसी में याद किया जिसे भी
वो पहले से ही अपना गम लिए बैठा है ,
ज़माने के रंजो गम को देखकर
मेरे गम तो फ़ीके से पड़ गए ,
लगता है बस ये गम ही अपने है
अब गमो से ही मोहब्बत और बढ़ा लेता हूं ,
अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं
मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं ।
" दर्द-ए-गम " से भरी ए " गम-ए-ज़िन्दगी "
शिकायत किससे करूं बस इतना बता ,
सभी अपना कहने वाले तो गैर हो गए
कोई अपना ना रहा इस " गम-ए-दुनिया में "
अब तो इस गम को ही अपना कह लेता हूं ,
कोई " दर्द-ए-दवा " नहीं इस गम की
खुशियां कहां से ढ़ूंढ़ कर लाऊ ,
गमों का शैलाब है इस ज़िन्दगी में
अब अपने गमो में ही खुशियां ढ़ूंढ़ लेता हूं ,
अपनी ही बात पर खुद ही हंस लेता हूं
मैं गमों को अपनी बाहों में कस लेता हूं ।
By _ Vipin Dilwarya
Bahut khoob
ReplyDeleteThanks bhai
DeleteNice
ReplyDeleteThank you so much
DeleteBhut barhiya....👌👌
ReplyDeleteThank you so much 🙏 🙏
DeleteSundar👍👍👍
ReplyDeleteThanks a lot bro
DeleteThanks
ReplyDeleteSuperb 👌
ReplyDeleteThanks brother
DeleteGazab
ReplyDeleteThanks
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