"" किन्नर का दर्द "" by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )
"" किन्नर का दर्द ""
मैं आदमी नहीं ,औरत भी नहीं ,
किन्नर हूं तो क्या हुआ ,
क्या मैं कोई इंसान नहीं ?
पुरुष-स्त्री से मेरी तुलना नहीं
किन्नर है मगर इंसान है हम ,
इस समाज में
इंसान से बढ़कर तो कुछ नहीं ।
तुम्हारी खुशियों में सरींख होते
दिल से देते दुआ और देते है बधाई
फिर क्यों तुच्छ नजर से देखते हो
मैं कोई छुआ छूत की बीमारी नहीं ?
तुमसे इतनी सी उम्मीद है
समाज में मिल जाए बस
थोड़ा सी इज्ज़त और सम्मान ही ।
किन्नर बोल कर ठुकरा दिया मुझे
क्या समाज में मेरा कोई वजूद नहीं ,
आखिर मैं भी तो इंसान हूं
क्या हम इज्ज़त के हकदार नहीं ?
हमसे क्यों मुंह फेरते हो
जिस मिट्टी से तू बना है
क्या उस मिट्टी से मैं बना नहीं ?
भगवान ने तुझे बनाया
और भगवान ने मुझे बनाया ,
इंसान है तु इंसान हूं मैं
फिर समाज में मेरा क्यूं सम्मान नहीं ?
किन्नर हूं तो क्या हुआ ,
क्या मैं कोई इंसान नहीं ?
पुरुष-स्त्री से मेरी तुलना नहीं
किन्नर है मगर इंसान है हम ,
इस समाज में
इंसान से बढ़कर तो कुछ नहीं ।
तुम्हारी खुशियों में सरींख होते
दिल से देते दुआ और देते है बधाई
फिर क्यों तुच्छ नजर से देखते हो
मैं कोई छुआ छूत की बीमारी नहीं ?
तुमसे इतनी सी उम्मीद है
समाज में मिल जाए बस
थोड़ा सी इज्ज़त और सम्मान ही ।
किन्नर बोल कर ठुकरा दिया मुझे
क्या समाज में मेरा कोई वजूद नहीं ,
आखिर मैं भी तो इंसान हूं
क्या हम इज्ज़त के हकदार नहीं ?
हमसे क्यों मुंह फेरते हो
जिस मिट्टी से तू बना है
क्या उस मिट्टी से मैं बना नहीं ?
भगवान ने तुझे बनाया
और भगवान ने मुझे बनाया ,
इंसान है तु इंसान हूं मैं
फिर समाज में मेरा क्यूं सम्मान नहीं ?
__ विपिन दिलवारिया
Gajab
ReplyDeleteThanks bro
DeleteGajab
ReplyDeleteGood view
ReplyDeleteThanks brother
DeleteGud
ReplyDeleteThank u
DeleteBahut khoob
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