" बचपन " " क्या खूब थे वो बचपन के दिन , वो बचपन के दिन याद आते है " by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

                       " बचपन "                       " "क्या खूब थे वो बचपन के दिन"
     "वो बचपन के दिन याद आते है"



ना खाने की चिंता 
ना कमाने की चिंता ,

बस स्कूल में पढ़ना और
क्लास में शोर मचाना था ,

वो बारिश की बूंदे
और पानी का किनारा  ,

वो कागज़ की कश्ती
और ये दिल आवारा था ,

क्या खूब थे वो दिन
वो भी क्या जमाना था ,

वो कागज़ की कश्ती और
वो क्लास में शोर मचाने वाले दिन याद आते है
आज वो बचपन के दिन याद आते है ।

क्या खूब थे वो बचपन के दिन ,

कोई अपना था ना पराया
ज़िन्दगी बस ख़ुद में मशगूल थी ,

ना दोस्ती  का मतलब 
ना  मतलब की दोस्ती ,

अनमोल थी वो दोस्ती
जो दोस्ती फिजूल थी ,

ना  बातों  के मतलब
ना मतलब  की  बातें ,

अनमोल थी वो बातें 
जो  बातें फिजूल थी ,

पक्की सड़कें पक्के मकाँ 
मिलता नहीं वो सुकूँ यहाँ,

कोई लौटा दे वो बचपन
जहाँ सड़कों पे उड़ती धूल थी ,

क्या खूब थे वो बचपन के दिन ,

वो फिजूल की बातें और
वो फिजूल के दोस्त याद आते है
आज वो बचपन के दिन याद आते है ।

क्या खूब थे वो बचपन के दिन ,

ना किसी को सुनाना 
ना किसी की सुनना ,

वो गुड्डे - गुड़ियों के खेल
और वो तितली पकड़ना ,

वो दादी नानी की कहानियां 
वो छुपम - छुपाई खेलना ,

वो भाग - दौड़ करना
और वो टंगड़ी खेलना ,

खूब लड़ना और झगड़ना
फिर एक पल में सब भूल जाना ,

क्या खूब थे वो बचपन के दिन ,

वो दादी नानी की कहानियां 
और वो बचपन के खेल याद आते है
आज वो बचपन के दिन याद आते है ।

क्या खूब थे वो बचपन के दिन 
और वो बचपन की मासूम गलतियां ,

माता - पिता , दादा - दादी 
और बड़े  भाई - बहन  का , 

इतना समझाना , फिर भी
वो चप्पलों का उल्टा पहनना ,

गर्मी हो  या  शर्दी हो , 
फिर भी वो नंगे पांव घूमना ,

अपने को अच्छा बताना 
दूसरों की चुगली करना ,

गलतियां करके बेवजह
हंसना और बेवजह इतराना ,

क्या खूब थे वो बचपन के दिन ,

वो बचपन की गलतियां 
और वो बचपन के पल याद आते है
आज वो बचपन के दिन याद आते है ,



By _ Vipin Dilwarya

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