इस दिल को कोन समझाए जो आज भी तेरी और खींचा चला आता है by Vipin Dilwarya

 इस दिल को कोन समझाए
जो आज भी तेरी और
 खींचा चला आता है
 _____________________



   छोड़ देंगे वो शहर 
   वो गलियां जिनसे तेरा नाता है ,
   कदमों को तो मैं अपने रोक लेता हूं ,

   पर इस दिल को कोन समझाए 
   जो आज भी तेरी और 
   खींचा चला आता है  ।

   बरसो बीत गए
   तेरी गलियों को देंखे ,
   पर ये दिल आज भी तेरी 
   गलियों के चक्कर लगाता है ,

   और हा ऐसा नहीं है.... 
   कि इतने वर्षों में
   मुझे कोई चाहने वाला नहीं मिला ,
   
   लाखो मिले है मुझे चाहने वाले 
   इस दिल को प्यार करने वाले ,
   मगर इस दिल को आज 
   भी तेरा दिल ही भाता है  ।
   
   इस दिल को कोन समझाए ,
   जो आज भी तेरी और 
   खींचा चला आता है  ।

   यूं तो ज़िन्दगी चल 
   रही है हमारी कोई कमी नहीं है ,
   दौलत भी मिली
   और प्यार भी मिला ,
   शौहरत भी मिली
   और दिलदार भी मिला ,

   लाख कोशिश की मैंने 
   कि उसे भुला दूं ,
   मगर ये दिल आज 
   भी वहीं थमा बैठा है ,

   इस दिल को कोन समझाए ,
   जो आज भी तेरी और 
   खींचा चला आता है  ।

   दूर होकर भी वो पास है
   आज भी वो खास है
   यूं ही नहीं वो याद आता है ,

   बदमस्त था उसकी 
   मोहब्बत में इस कदर 
   ये दिल से दिल का नाता है ,
   यूं ही नहीं ये दिल आज 
   भी उसी के गुण गाता है ,

   इस दिल को कोन समझाए ,
   जो आज भी तेरी और 
   खींचा चला आता है  ।

   समंदर  नदियों  के
   बिना अधूरा होता है ,
   ना  ये दिन  सूरज  के
   बिना  पूरा  होता  है ,
   
   अंधियारों को भी 
   वो रोशन कर देता है
   यूं ही नहीं चांद सबको भाता है
   
   और दस्तक देता है आज 
   भी वो ख्वाबों में कुछ इस तरह ,
   उसके साथ बिताए हर 
   एक पल की याद दिला जाता है ,

   और बहुत दिनों बाद आज
   उसका  पैग़ाम आया है ,
   कि वो बहुत खुश है अपनी दुनिया में 
   उसकी इस ख़ुशी को देख 
   मेरा दिल आज भी खुश हो जाता है

   ये महज़ एक मोहब्बत
   नहीं ये रूह से रूह का नाता है ,
   इसलिए ये दिल आज भी 
   तेरी और  खींचा चला आता है  ।
   


  By _ Vipin Dilwarya

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

पेड़ों का दर्द ( Pain of trees ) by _ Vipin Dilwarya ( Published by newspaper )

" खूबसूरती निहारती आइने में " ( एसिड अटैक ) by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

" हे ईश्वर " क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? By Vipin dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )