मेरे गले लगकर रो दिये ( Shayari ) ___विपिन दिलवरिया
मेरे गले लगकर रो दिये
वो बड़ी
तल्ख-नवाई कर गये
मेरी मोहब्बत
को ठुकराकर चले गये
गये थे इश्क़ का जाम पीने
इश्क़ की बोतल में उतरकर रह गये
दर-बदर ढूँढतें रहे
मोहब्बत को इश्क़ के बाज़ार में
मोहब्बत तो ना मिली
बस जिस्मों में उलझकर रह गये
तन्हाई में जब
ना मिला कोई कांधा
वो आये और मेरे गले लगकर रो दिये
__विपिन दिलवरिया
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