औकात छोटी मगर इंसानियत खड़ी है ( हिन्दी कविता ) by Vipin Dilwarya
औकात छोटी मगर इंसानियत खड़ी है
मुश्किलें हज़ार सामने खड़ी है,
कदम कदम पर इम्तिहान की घड़ी है!!
कच्ची दीवारें और छप्पर पड़ी है,
औकात छोटी मगर इंसानियत खड़ी है!!
छोटी सी कुटिया , भीड़ घनी है,
पर कुटिया मेरी गुलजार पड़ी है!!
बड़े बड़े महल दुमहले , बंगले कोठी,
दीवारें जिसकी सोने से जड़ी है!!
रुपया पैसा और धन दौलत है,
औकात बड़ी मगर सुनसान पड़ी है!!
कौन किसे देखकर खुश है जहाँ में
लोगो में नफरतों की दीवार खड़ी है!!
मतलबी ज़माने के मतलबी लोग यहाँ,
यहाँ सबको अपनी अपनी पडीं है!!
कितनी समस्या यहाँ देख "दिलवरिया",
यहाँ सबकी समस्या मुझसे बड़ी है!!
__विपिन दिलवरिया
Nice
ReplyDeleteThanks ..🙏🙏
DeleteThank u🙏🙏
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteThank u ...
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