माँ पूरी किताब हैं ( हिन्दी कविता ) by Vipin Dilwarya


 माँ पूरी किताब हैं



नीन्द    में      जो    दिखतें 
वो   होते     अधुरें     सपनें

खुली  आँखों   से  जो देखें, 
पूरे  होते    वही   ख्वाब  है

मौत    का     सच    पहले 
ज़िन्दगी   का  झूँठ  बाद है

स्वर्ग   यहीं       नर्क   यहीं 
यहीं  कर्मो  का   हिसाब है

दिन        का        उजाला
जिससे   वो   आफ़ताब  है

चमकती       है          रात 
जिससे    वो    महताब   है

संस्कार  वहीं  "दिलवरिया"
जहाँ लाज  शर्म  हिजाब है

पिता कलमकार,बच्चे शब्द  
और   माँ  पूरी   किताब  हैं



__विपिन दिलवरिया 

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