माँ पूरी किताब हैं ( हिन्दी कविता ) by Vipin Dilwarya
माँ पूरी किताब हैं
नीन्द में जो दिखतें
वो होते अधुरें सपनें
खुली आँखों से जो देखें,
पूरे होते वही ख्वाब है
मौत का सच पहले
ज़िन्दगी का झूँठ बाद है
स्वर्ग यहीं नर्क यहीं
यहीं कर्मो का हिसाब है
दिन का उजाला
जिससे वो आफ़ताब है
चमकती है रात
जिससे वो महताब है
संस्कार वहीं "दिलवरिया"
जहाँ लाज शर्म हिजाब है
पिता कलमकार,बच्चे शब्द
और माँ पूरी किताब हैं
__विपिन दिलवरिया
Nice
ReplyDeleteथैंक्स ...😊😊
DeleteV.good
ReplyDeleteThank u bhai
DeleteSupper
ReplyDeleteV.nice bhai
Thank you so much brother
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