बिखरें हुए हालातों को भी समेट लेंगे ( हिन्दी कविता ) ___विपिन दिलवरिया


 बिखरें हुए हालातों को भी समेट लेंगे 



तिनका  तिनका  टूटकर   जो  बिखरें  है,
बिखरें हुए  हालातों   को  भी  समेट लेंगे!!

मुफ़लिसी    में   जो    साथ    छोड़   गये,
उनको  हम   दिल   से    निकाल  फेंकेगें!!

अपना  पराया  कोई  हो   बख्शीश  नहीं,
जो  है  गुनाहगार  हमारे  उन्हें  देख  लेंगे!!

नकाब  लगे  है  जिन  चेहरों  पर, हम उन
छुपे  हुए   चेहरों   को  भी   पहचान  लेंगे!!

जानकर  अनजान  है  हम  बस  इतना है,
वो समझतें है बहती नय्या में हाथ धो लेंगे!!

गलतफ़हमी के शिकार है कुछ लोग यहाँ,
हम वो है जो  किनारों  पर  भी  डुबा  देंगे!!

सुना है  इश्क़  के  बाज़ार  में  बैठते  है वो,
प्यार  मोहब्बत   वफ़ा   सब   ख़रीद  लेंगे!!

इश्क़ की दूनियाँ के शातिर खिलाडी है वो,
हम वो है जो  उन्हें  भी  नीलाम  कर  देंगे!!

नादान समझे है दूनियाँ तुझे "दिलवरिया",
मेरी कलम है जिसे चाहे सरेआम कर देंगे!!


___विपिन दिलवरिया 

Comments

  1. समेटना तो होगा ही क्योंकि अब वो जमाना गया जब गिरे हुए को सहारा अपनों ने बंद कर दिया, गैरों में सहारा नजर आटा है

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