सब पराए है जिन्हे मैं अपना कहता हूँ by Vipin Dilwarya

      सब पराए है जिन्हे मैं अपना कहता हूँ 


डगर कठिन हो या आसान
मैं हर डगर पर अकेले चलता हूँ

यहां अपना तो है, बस अपना ही साया
जिसे मैं परछाई कहता हूँ

इस दुनियां में कोई अपना नही
सब पराए है जिन्हे मैं अपना कहता हूँ

अरे मोहताज़ नहीं हूं किसी के 
रहमों करम का मैं खुद कहता हूं

ज़ख्म दे गया हर इंसान जिसे अपना कहा
अब हर ग़म-ए-दर्द को अकेले सहता हूं

ख्वाबों की चादर ओढ़कर
महनत के मकान में रहता हूं

ईमान बेचकर कमाया तो क्या कमाया
मैं खून पसीना बहाकर कमाता हूं

तिनका तिनका समेटकर बनाया है ये घर 
मैं आज गर्व से कहता हूँ

क्या खाने में खाया जो मांगकर खाया
मैं अपनी महनत की कमाई खाता हूँ


By _ Vipin Dilwarya 

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