यूं ही नहीं वो इंसान फ़ौजी कहलाता है ( एक फ़ौजी की कहानी ) by Vipin Dilwarya
" यूं ही नहीं वो इंसान फ़ौजी कहलाता है "
बचपन से उसका हर भाव अलग होता है
जीवन के हर पड़ाव से गुजरता है
पढ़ता है लिखता है उगती दाढ़ी को देखता है
हज़ारों की भीड़ में दौड़कर सबको पीछे
छोड़कर वो एक निकालकर आता है
यूं ही नहीं वो इंसान फ़ौजी कहलाता है
दिन रात कड़ी मेहनत करके
प्रशिक्षण के हर दौर से गुजरता है
कहीं शर्द हवा कहीं गर्म हवा , कहीं बर्फ
को झेलता है तो कहीं अग्नि में तपता है
यूं ही नहीं वो इंसान फ़ौजी कहलाता है
हर मुश्किल दौर में हंसता है
हर स्थिति हर परिस्थिति में ढलता है
हिंसा हो या हो प्राकृतिक आपदा
निडर होकर हर कठिनाई से निपटता है
यूं ही नहीं वो इंसान फ़ौजी कहलाता है
मां का आंचल छोड़कर
पिता का साया छोड़कर
बीवी को बच्चे सौंपकर
रोते बिलखते बच्चो को छोड़कर जाता है
भाई - बहन से दूर होकर
खुश ना होकर भी खुश हो जाता है
अपना टूटा दिल किसी को ना दिखता
मानो जैसे उसका दिल पत्थर बन जाता है
यूं ही नहीं वो इंसान फ़ौजी कहलाता है
जिस घर के आंगन में
बचपन बीता और आई जवानी
पिता की डांट और मां की कहानी
आज सब यादों का बस
शैलाब उमड़कर रह जाता है
वो रिश्ते नातें वो यारो दोस्तों की जमाते
वो हंसते खेलते दिन वो हसीन रातें
सब कुछ पीछे छूट जाता है
ना कोई शौक ना कोई ख्वाब
ना दिल में कोई अरमान
ना कोई पार्टी ना कोई फंक्शन ,
ना कोई त्योहार परिवार संग मनाता है
जिस घर से कभी दूर ना हुआ
उस घर में बस मेहमान बनकर रह जाता है
यूं ही नहीं वो इंसान फ़ौजी कहलाता है
उम्र छोटी मगर जिम्मेदारियों
में बहुत बड़ा हो जाता है
हर ग़म को सीने में दबाकर
सीना तान खड़ा हो जाता है
जब आती है बात मेरे देश की
अपनी जान भी कुर्बान कर जाता है
तभी तो मेरे देश की आन बान शान
तिरंगा हमेशा शीर्ष पर लहराता है
यूं ही नहीं वो इंसान फ़ौजी कहलाता है
By _ Vipin Dilwarya
Comments
Post a Comment