"" कल "" by Vipin Dilwarya ( published by Amara Ujala kavya )


""  कल  ""


ना कल था ना कल है ना कल कभी होगा 
ना कल आया है , ना कल कभी आएगा ।।

कल के लिए किसी को ना टालना 
कल तो जीवन का एक धोखा हैं ,

कल करूंगा ये सोचता रहेगा
तो जीवन में कुछ नहीं कर पाएगा ।।

जो करना है आज शुरुआत कर
भूतकाल से सीख कल का ना इंतेज़ार कर ,

कल के भरोसे ना बैठ इस जीवन में
कल का इंतेज़ार ही करता रह जाएगा ।।

जीवन में कल - कल सोचकर
ये जीवन तेरा यूं ही गुजर जाएगा ,

कल - कल करता रह जाएगा
ना कल आया है , ना कल कभी आएगा ।।

' कल ' तलाशने के चक्कर में 
तेरे जीवन का ' आज ' डूब जाएगा ,

' कल आज कल ' करते करते 
जो ' आज ' तेरा डूब गया 
वो ' आज ' कभी लौटकर ना आएगा ।।
  
कल - कल करते रहते सभी
कल क्या है इसे कौन बतलाएगा ,

कल का कोई अर्थ नहीं होता
दिलवारिया तो यही समझाएगा 
ना कल आया है , ना कल कभी आएगा ।।


                                                    __ विपिन दिलवारिया

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