" ये रोग भी अज़ीब है " ( कोरोना ) by Vipin Dilwarya

           " ये रोग भी अज़ीब है " ( कोरोना )



नफ़रतों के बाज़ार में अब 
ज़िन्दगी का मोल करने लगे है

ये कैसा दौर कोरोना का अब 
अपने ही अपनो से डरने लगे है

निकलते थे जो हमारी एक 
झलक पाने के लिये गलियों से

वो आज हमारी गलियों
में भी आने से डरने लगे है

ये मौसम भी बेगाना सा है
ये बादल  भी  खफ़ा से है

जो मुस्कराकर बात करते थे
वो बादल भी आज बरसनें लगे है

नफ़रतों के बाज़ार में अब 
ज़िन्दगी का मोल करने लगे है

ये कैसा दौर कोरोना का अब 
अपने भी पराये से लगनें लगे है

ये दौर भी अज़ीब है
ये रोग भी अज़ीब है

इन्सान अमीर है
मगर सोच से ग़रीब है

दिखा दिया कोरोना ने
यहाँ कोई  ना क़रीब है

एक तरफ खौफ़ है
एक तरफ शोक है

एक तरफ चेहरें पर हंसी
एक तरफ दिल में भरा द्वेष है

जिसमें दिखता था अपनापन
आज उनके स्वार्थ भी दिखने लगे है

नज़दीकियां तो दिखावे की थी
आज उसे भी दूर करने लगे है

कोई अपना नहीं यहाँ, अपना 
कहने वाले ही परहेज़ करने लगे है

नफ़रतों के बाज़ार में अब 
ज़िन्दगी का मोल करने लगे है

ये कैसा दौर कोरोना का अब 
अपने ही अपनो से डरने लगे है


By _ Vipin Dilwarya

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