वृद्धाश्रम by Vipin Dilwarya ( published by newspaper )

वृद्धाश्रम


अच्छा कहूं या बुरा कहूं
कुछ समझ नहीं आता है ,
उसे घर कहूं या मंदिर जो
वृद्धाश्रम कहलाता हैं ।।

बोझ समझकर ठुकरा देता 
माता - पिता को ,
एक मात्र सहारा होता है
जो वृद्धाश्रम कहलाता हैं ।

काश दिलवारिया समझा पाता
    माता - पिता का कोई मोल नहीं होता  ,
हमारा जीवन संवारने के लिए
अपने जीवन का त्याग करता ,
हमारी एक खुशी पाने के लिए
अपनी खुशियों को कुर्बान कर देता ,
बस इंसान इतनी बात समझता 
तो इस संसार में वृद्धाश्रम ना होता ।

जिसका कोई सहारा नहीं
   उसके लिए वृद्धाश्रम मंदिर होता है ,
  सहारा होते हुए भी जो बेसहारा है
 ऐसे बेसहारों का सहारा होता 
 वो वृद्धाश्रम कहलाता हैं ।

अच्छा कहूं या बुरा कहूं
 कुछ समझ नहीं आता है ,
उसे घर कहूं या मंदिर जो
वृद्धाश्रम कहलाता है ।।



🙏🙏माता-पिता का सम्मान करे
                        और उनका सहारा बने🙏🙏



__ विपिन दिलवारिया







Comments

  1. एक बार मुझे भी पढ़ें।
    पसंद आए तो शेयर ज़रूर करें।🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बिल्कुल ,
      आपको पढ़ते है और शेयर भी करते है ।
      आप बहुत उम्दा लिखते हो ।

      Delete

Post a Comment

Popular posts from this blog

पेड़ों का दर्द ( Pain of trees ) by _ Vipin Dilwarya ( Published by newspaper )

" खूबसूरती निहारती आइने में " ( एसिड अटैक ) by Vipin Dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )

" हे ईश्वर " क्या फर्क है तेरी मिट्टी और मेरी मिट्टी में ? By Vipin dilwarya ( published by Amar Ujala kavya )