एक रोटी ( हिन्दी कविता ) by Vipin Dilwarya
" एक रोटी "
"एक रोटी" के लिये
ना जाने क्या-क्या करना पड़ता हैं..!
ज़िन्दगी के हर हालात
हर दौर से गुज़रना पड़ता है..!
दिन - रात , सुबह - शाम
कभी यहाँ , कभी वहाँ
दर-दर की ठोकर खाना पड़ता है..!
कड़कड़ाती ठंड हो
या हो तपती गर्मी
"एक रोटी" के लिये
खून पसीना एक करना पड़ता है..!
"एक रोटी" अपना बना देती है
"एक रोटी" दुश्मन बना देती है
"एक रोटी" फ़कीर बना देती है
"एक रोटी" चौर बना देती है
"एक रोटी" के लिये
ज़िन्दगी भर भटकना पड़ता है..!
जो रोटी बख़्शती है
ज़िन्दगी , उस रोटी के लिये
एक दिन मर जाना पड़ता है..!
"एक रोटी" के लिये
बहुत कुछ करना पड़ता हैं..!
बहुत कुछ छिपाना पड़ता है
बहुत कुछ दिखाना पड़ता है
कुछ लोगों को हसाँना पड़ता है
कुछ लोगों को सताना पड़ता है
कभी-कभी "दिलवरिया"
खुद का तमाशा बनाना पड़ता है..!
"एक रोटी" के लिये
हद से गुज़र जाना पड़ता है..!
"एक रोटी" के लिये
ना जाने क्या-क्या करना पड़ता हैं..!
__विपिन दिलवरिया
Nice blog
ReplyDeleteथैंक्स भाई
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