समन्दर भी सूख जाते है (Shayari) by Vipin Dilwarya
समन्दर भी सूख जाते है
बढ़ते कदम भी रुक जाते हैं
जब अपनों के साथ छूट जाते हैं
ये मौसम अगर साथ ना दें तो
हवाओं के रुख भी मुड़ जाते है
ना हस्ती ना हैसियत, ये वक्त है
बड़ों - बड़ों के सर झुक जाते हैं
पानी का एक कतरा भी बगावत पर
आ जाये, तो समन्दर भी सूख जाते है
__विपिन दिलवरिया
Hii
ReplyDeleteNice Blog
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Very nice bhai ji
ReplyDeleteGzb 👌
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