मजबूर है कदम मजदूर के ( कोरोना महामारी ) by Vipin Dilwarya
मजबूर है कदम मजदूर के
( कोरोना महामारी )घर के रहे ना बाहर के
काम के रहे ना नाम के
दिन के रहे ना रात के
सुबह के रहे ना शाम के
कठिन डगर मीलों का सफ़र
पूरा करना है पैदल चाल से
चल पड़े वीरान सड़कों पे
लड़खड़ाते कदम बढ़ रहे
इंसाँ बचा है ना इंसानियत
सब सियासी रोटी सेंक रहे
नन्हें पैरों में छाले पड़ गये
ज़िन्दगी - मौत से लड़ रहे
बेबस लाचार माँ - बाप
भूखे-प्यासे बच्चे मर रहे
मजबूर है कदम मजदूर के
सडकों पे निशां है खून के
काली सड़कें लाल हो गई
इन्हे ना कोई दिखायेग
किसे पड़ी है किसकी कौन
किसे आप बीती सुनाएगा
सब लगे है बचाने कोरोना से
इस भुखमरी से कौन बचायेगा
ना रोटी है ना पैसा है
सबकी है खाली जेब यहाँ
चिंता गरीब मजदूर की नहीं
सब है सियासी खेल यहाँ
देश के इस लॉकडाऊन से
ये कोरोना तो हार जाएगा
मगर किसे पता था "दिलवरिया"
दर - बदर मजदूर हो जाएगा
ये दौर कोरोना महामारी का
इतिहास में लिखा जाएगा
__विपिन दिलवरिया
Well said
ReplyDeleteBahut dhanyvad 🙏🙏🙏🙏
DeleteSachchai likhne ki koshish ki h bas
Bahut dard chipa h es poetry me
ReplyDeleteBhai ye aaj ki sachhai hai.
DeleteBahut dukh hota h garib ki bebasi or lachari par . Or log rajniti kar rahe h in pr
v .good
ReplyDeleteThank u so much 🙏🙏
DeleteHii
ReplyDeleteNice Blog
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