मैं हद से गुजर जाता हूँ ( shagari ) by Vipin Dilwarya
मैं हद से गुजर जाता हूँ
रात के अंधेरों मे मैं थोडा डर जाता हूँ
उन्हे बता दो मैं डरकर भी कर जाता हूँ
जिन रहों से कोई गुजर ना सका
उन रहों से मैं यूं ही गुजर जाता हूँ
हर बाजी जीतना मेरा मकसद नही
अपनों के लिये मैं थोडा ठहर जाता हूँ
मगर बात जब मेरे गरूर की हो
तो उसके लिये मैं हद से गुजर जाता हूँ
__विपिन दिलवरिया
Hii
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Deep love poems for him in Hindi